मोहताज – सीमा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

“नमस्ते आंटी! आंटी, मैंने बैंक की लिपिक भर्ती परीक्षा पास कर ली है! अगले हफ्ते मेरी ज्वाइनिंग है!” शालू ने मिठाई का डिब्बा मेरे हाथ में पकड़ाते हुए ख़ुशी से कहा। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की एक नई चमक थी।

मैं खुशी से झूम उठी। “वाह! ये तो बहुत बड़ी बात है, शालू! बहुत-बहुत बधाई! पहले तुम अपना मुंह मीठा करो।” उसके मुंह में बर्फी डालते हुए मैंने कहा, और उसे बैठने का इशारा किया। साथ आई उसकी मम्मी रेखा को भी मैंने बुला लिया, “रेखा, आ बैठ। पहले बेटी की ख़ुशी मनाते हैं, फिर काम पर लगना।”

फिर मैं चाय बनाने रसोई में चली गई। चाय बनाने के दौरान, जब मैंने नाश्ता प्लेट में रखा, मेरे हाथ रुक गए। अचानक, जैसे समय पीछे लौट आया हो, दस साल पहले की एक घटना मेरे ज़ेहन में तैरने लगी।

रेखा मेरे घर में काम करती थी। बर्तन धोना और झाड़ू-पोंछा करना उसकी जिम्मेदारी थी। कभी-कभी जब मैं वाशिंग मशीन से कपड़े धोकर निकालती, तो उन्हें छत पर सुखाने का काम भी वही करती थी।

मेरी बेटी ट्विंकल, शालू के साथ लगभग एक जैसी उम्र की थी। एक दिन, ट्विंकल की दोस्त वैशाली के जन्मदिन की पार्टी थी, और ट्विंकल को जिस फ्रॉक में जाना था, वह बहुत खोजने के बाद भी कहीं नजर नहीं आ रही थी।

तभी मुझे याद आया कि कुछ दिन पहले शालू ने उसी फ्रॉक को बड़ी ललचाई नजरों से देखा था। वह अपनी मां से वही फ्रॉक दिलवाने की जिद कर रही थी, और रेखा ने उसे यह कहकर डांट दिया था कि अपनी हैसियत के हिसाब से चीजों की मांग करनी चाहिए।

फिर मेरे मन में शंका का बीज पड़ गया। जब वह फ्रॉक कहीं नहीं मिली, तो मुझे लगा कि रेखा और शालू ने इसे चुराया है। मेरे गुस्से का कोई ठिकाना नहीं था।

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“रेखा, तुमने कपड़े सुखाने का बहाना बनाकर फ्रॉक चुरा लिया!” मेरी आवाज़ में क्रोध था,  “अगर तुम्हें हमसे काम नहीं मिलेगा, जानती हो! तुम्हारी हालत क्या होगी? तुम दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हो जाओगी। तुम्हारी बदनामी होगी, सो अलग! सारा मोहल्ला तुम्हारी करतूतों को जान जाएगा।” मेरे शब्दों में अहम था, जैसे मैं अपनी शक्ति का गुस्सा निकाल रही थी।

रेखा के चेहरे पर मायूसी थी, और उसने विनती की, “मैडम, विश्वास कीजिए, हमने ऐसा नहीं किया है। प्लीज़, आप मेरी इस महीने की पगार काट लीजिए, पर मोहल्ले में मेरी बदनामी मत कीजिए। मेरे पास पहले से ही कर्ज है, अगर आप सब मुझे काम से निकाल देंगे, तो मैं कैसे चुकाऊंगी?”

लेकिन उस समय मेरे घमंड और अहंकार ने मुझे अंधा बना दिया। मैंने उसकी विनती को नजरअंदाज कर दिया और उसे काम से निकाल दिया।

अगले दिन, सारा काम खुद करने के बाद, मैं थककर चूर हो गई। और अचानक, मुझे यह महसूस हुआ कि हम जैसे लोग जिनकी जिंदगी आरामदायक है, रेखा जैसे लोगों के मोहताज हैं। उनके बिना हमारा जीवन कितना कठिन है!

पर मानव मन का अहंकार उसे जल्दी हार कहां मानने देता है! सोचते-सोचते मैंने भी तय किया कि मैं अपनी पड़ोसी, मिसेज अवस्थी के पास जाती हूं, और उनसे पूछती हूं कि क्या उनकी कामवाली बाई को मैं रख सकती हूं। अरे पैसे देकर किसी से भी काम करवा लूंगी। हम लोग रेखा के मोहताज थोड़े ना हैं।

जब मैं मिसेज अवस्थी के घर पहुंची, तो वहां कुछ और ही हुआ। उन्होंने मुझे बताया कि कुछ दिन पहले बाथरूम में गिरने से उनका पैर फ्रैक्चर हो गया था। अब वे वृद्धावस्था में दूसरों की मोहताज हो चुकी हैं।

वे कहने लगीं, “आजकल घर में सबकी अपनी व्यस्तताएं हैं। ऐसे में रेखा ने मेरी बहुत मदद की है, अगर वह न होती, तो मैं क्या करती? पर आज पता नहीं वह क्यों नहीं आई है?”

मैं कुछ कहने को हुई, तभी मिसेज अवस्थी के पोते तन्मय ने मेरी बेटी ट्विंकल की खोई हुई फ्रॉक लाकर मुझे दी। “आंटी, यह फ्रॉक हमारी छत पर गिरी मिली। जब मैं बॉल ढूंढ़ने गया, तो यह मुझे मिली। शायद बहुत दिन पहले गिरी होगी, इसलिए यह मिट्टी में सनी है।”

मेरे भीतर जैसे किसी ने ज़ोर से धक्का दिया हो, और एक पल के लिए मैं थम गई। सिर झुक गया, और शर्म ने जैसे मुझे घेर लिया। वह शक, वह नफरत—सारी भावनाएँ एक ही पल में चूर हो गईं।

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रेखा पर मैंने जो आरोप लगाए थे, वे सचमुच नाइंसाफी थी। खुद को देखा तो एक अजनबी सी महसूस हुई—मेरी स्वयं की बड़ी औकात का अहंकार तो चूर हो गया था।

उस दिन मेरी आंखें खुलीं। मुझे समझ में आया कि हम चार पैसे अधिक होने के गुमान में मानवीय मूल्यों को भूल जाते हैं।

मैंने मिसेज अवस्थी को पूरी घटना बताई और अपनी गलती के लिए माफी मांगी। “मिसेज अवस्थी, मैं जानती हूं कि मैंने बहुत गलत किया! मुझे अहंकारवश समझ में नहीं आया कि मैंने रेखा के साथ नाजायज व्यवहार किया। उसके साथ-साथ मैं आपकी भी गुनाहगार हूं। मेरी वजह से वह आज आपकी देखभाल करने भी नहीं आई। मुझे माफ कर दीजिए।”

मिसेज अवस्थी मुस्कुराई और बोली, “सविता बेटी, गलती हर किसी से हो जाती है। तुम्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है, यह काफी है। अच्छा तुम मेरा एक काम करोगी? रेखा ने मेरी बहुत सेवा की है, और वह हमेशा हमारे साथ खड़ी रही है। वह कह रही थी कि उसकी बेटी शालू मैथ्स में कमजोर है, क्या तुम उसके लिए ट्यूशन ढूंढने में मदद कर सकती हो?”

मिसेज अवस्थी की सहृदयता अनुभव कर मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं सोचने लगी, “मैं दूसरों की मदद क्यों नहीं करती? मिसेज अवस्थी इस उम्र में भी रेखा की मदद करना चाहती हैं, तो मैं क्यों नहीं?”

मैंने मिसेज अवस्थी से वादा किया कि अब मैं रेखा की मदद करूंगी। ट्विंकल की शिक्षिका से मिलकर उसकी बेटी की ट्यूशन भी रखवांऊगी और फीस भी आपके साथ मिलकर वहन करूंगी।

अगले दिन, मैंने रेखा को घर बुलवाया और कहा, “रेखा, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारा बहुत अनादर किया, केवल अपनी गलत सोच की वजह से। अब मुझे समझ में आ गया है कि मैंने तुम्हें पहचानने में बड़ी भूल कर दी। अगर तुम मेरे और मिसेज अवस्थी के यहां फिर से काम संभाल लोगी, तो मैं तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी।”

रेखा ने मेरी माफी को स्वीकार करते हुए कहा, “सविता दीदी, आप मेरे लिए आशीर्वाद की तरह हैं। मैं कभी आपको नज़रअंदाज नहीं कर सकती। मैं अपनी बेटी शालू को ट्यूशन पढ़वाने के लिए आप लोगों का धन्यवाद करती हूं।”

छठी कक्षा से दसवीं कक्षा तक, मिसेज अवस्थी और हम पति-पत्नी के सहयोग से शालू ट्यूशन पढ़ती रही। दसवीं कक्षा में उसने बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए और उसके बाद उसे छात्रवृत्ति मिलने लगी।

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शालू अब खुद छोटे बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी और अपनी पढ़ाई का खर्च स्वयं वहन करने लगी। पर मां-बेटी दोनों ही हमेशा हमारा उपकार मानती रहीं। शालू की सफलता पर मैं उतनी ही खुश हूं जितना कि उसकी मां रेखा होगी।

मिसेज अवस्थी अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मैं उनकी बहुत शुक्रगुजार हूं। उन्होंने मुझे मानवता का सही पाठ पढ़ाया। उनसे मैंने सीखा कि किसी की मेहनत और संघर्ष की कद्र करनी चाहिए। हम ऐसे व्यक्ति को मोहताज नहीं मान सकते।

रेखा और शालू ने परोक्ष रूप से हमें यह सिखाया कि असली सम्मान दूसरों के साथ समानता और समझदारी से पेश आकर ही मिल सकता है। उन दोनों ने हमें एक नई दिशा दिखाई, और उन्होंने हमारी हर तकलीफ में हमेशा हमें अपनों से बढ़कर सहयोग दिया।

शालू ने हमें बैंक की मासिक आय योजना और बैंक की कई अन्य योजनाओं के बारे में अवगत कराकर हमें भविष्य के लिए छोटी-छोटी बचत करने को प्रोत्साहित किया।

समय गुजरने के साथ, हम पति-पत्नी वृद्धावस्था में हैं। हमारे बच्चों की शादियां हो चुकी हैं, और उनके भी बच्चे हो गए हैं। सब अपने में व्यस्त हैं। किसी को भी बूढ़े हो चुके हम पति-पत्नी की आवश्यकता नहीं है।

ऐसे समय में शालू अपने बच्चों से बढ़कर हमारा ख्याल रखती है। उसके द्वारा शुरू करवाई गई बचत योजनाओं ने हमें बुढ़ापे में भी आत्मनिर्भर रखा है। किसी समय में जिन पर मैंने मोहताज होने का झूठा तंज कसा था, उन्होंनेे हमें अपने बच्चों का #मोहताज होने से बचा लिया है।

– सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)

साप्ताहिक विषय: #मोहताज

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