*निःशब्द त्याग* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  जानकी, तुम?कितने बरस बाद दिखाई दी हो? कहाँ खो गयी थी? नही-नही, मुझे तुमसे यह पूछने का अधिकार नही है,मैं ही कायर निकला, तुम नही खोयी थी,मैंने ही तुम्हे खोया था।

      बीती बात छोड़ो रमेश,बताओ तुम कैसे हो?तुम्हारी गृहस्थी कैसी चल रही है?

      रमेश और जानकी में होश संभालते ही परस्पर आकर्षण पैदा हो गया था।पड़ोस में रहने वाले दोनो आकर्षण के बाद कब प्रेम पाश में बंध गये उन्हें भी नही पता चला।प्यार की पींगे बढ़ने लगी।

एक दूसरे से जुदा न होने की कसम भी खायी जाने लगी।भविष्य में कैसे जियेंगे उसकी भी योजना बनने लगी।यहां तक कि शादी बाद अपने होने वाले बेटे का नाम अभिषेक भी दोनो ने निश्चित कर लिया।

         गर्मियों की छुट्टियों में परिवार सहित जानकी को अपनी मौसी के यहां शादी में जाना पड़ा।जानकी के जाने के अगले दिन  रमेश के पिता ने कहा कि रमेश के लिये लड़की देखने चलना है,

बड़ा खानदान है,खूब पैसे वाले हैं, सुंदर लड़की है, सो यह रिश्ता करना ही है,बस फॉर्मेलिटी पूरी करने को लड़की वालों के यहां जाना है।रमेश हक्का बक्का रह गया,वह मना करना चाहता भी था,

पर कह ही नही पा रहा था।पिता के सामने कैसे बोले हिम्मत ही नही पड़ रही थी।रश्मि को देखने पूरा परिवार चला गया।सारी स्थिति वैसी ही थी जैसे उसके पिता ने घर पर बताई थी,रश्मि को नापसंद करने का कोई कारण नही था,

रमेश के  माता पिता ने तो रश्मि को देखते ही हां कर दी,एक बार भी रमेश से उस बारे में पूछा तक नही।रमेश जानकी के बारे में कहना चाहकर भी कुछ भी न कह पाया।

रश्मि के पिता ने तभी एक लाख रुपयों और नारियल से रमेश का तिलक लगा रोकना कर दिया।पूरे मोहल्ले में पता चल गया कि रमेश की शादी बड़े घर मे तय हो गयी है।

      जानकी परिवार के साथ जब वापस आयी तो उसे भी रमेश की शादी तय हो जाने के विषय मे जानकारी प्राप्त हुई।वह धक से रह गयी,सारे सपने धराशायी हो चुके थे।पर वह कर ही क्या सकती थी।काश रमेश साथ देता तो वह दुनिया से भी टक्कर ले लेती,पर यहां तो रमेश कही था ही नही।वीरान राह में उसे छोड़ वह तो दूसरी मंजिल की ओर बढ़ गया था।

      जानकी ने अपने पिता से आगे पढ़ने की अनुमति मांगी और अपनी मौसी के पास चली गयी।साफ था उसने पलायन किया था,रमेश से दूर चले जाने के लिये।अपनी मौसी के यहां जाने पर उसने पढ़ाई पूरी कर वही अध्यापिका की नौकरी प्राप्त कर ली।अब उसने एक कमरा अलग से किराये पर लेकर रहना शुरू कर दिया।

         इधर रमेश की शादी रश्मि से हो गयी।रमेश कमजोर ही साबित हुआ वह एक बार भी जानकी के विषय मे अपने पिता से बात न कर सका।जानकी के विषय मे भी उसे कोई जानकारी नही मिली,या यूं कहा जा सकता है कि उसने ही जानकी के बारे कोई उत्सुकता नही दिखाई।

         उनकी कार के सड़क दुर्घटना में एक साथ ही रमेश के पिता,उसकी सौतेली माँ तथा रश्मि की मौके पर ही मौत हो गयी।रमेश और उसका चार वर्षीय सौतेला भाई ही बच पाये।

पूरा परिवार इस प्रकार एक झटके में ही ऐसे दर्दनाक हादसे से बिखर जायेगा, इसकी कल्पना  से ही सबके रौंगटे खड़े हो जाते थे।छोटे भाई की जिम्मेदारी अब रमेश पर थी।वह बड़ी मुश्किल से अपनी नौकरी और भाई की परवरिश के बीच सामंजस्य स्थापित कर पा रहा था।

        उस दिन अचानक जानकी सामने टकरा गयी तो उसके सामने जानकी के साथ बिताये पल तैर गये।जानकी के प्रश्न से उसकी तंद्रा भंग हुई तब उसने उसे बताया कि कैसे रश्मि से उसकी शादी हुई थी,कैसे वह पिता के सामने बोल नही पाया था।

कैसे फिर दुर्घटना में मां पिता और पत्नी की मृत्यु हो गयी। बताते बताते रमेश की आंखों में आँसू छलक आये।फिर संयत हो बोला,जानकी तुम बताओ इतने दिन बाद मिली हो,तुम्हारे पति क्या करते हैं?तुम कहाँ चली गयी थी।

      तुम्हारी शादी की बात सुन रमेश मैंने यह शहर ही छोड़ दिया था।अध्यापिका  की नौकरी करती हूं,मेरा यहां तबादला हुआ है,इसी कारण तुमसे मिलना हो पाया है।

ओह-जानकी तुमने अपनी गृहस्थी के बारे में तो कुछ बताया ही नही। एक लंबी सांस ले जानकी बोली- गृहस्थी- मैंने तुमसे बिछड़ कर शादी ही कहाँ की रमेश,फिर गृहस्थी कैसी?

       आश्चर्य से रमेश जानकी का मुँह देखता रह गया।उसके लिये जानकी का इतना बड़ा निर्णय और एक वह था जो कायरता की सीमा को भी लांघ गया था। वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था।

       एक दो बार और राह में ही जानकी मिली।रास्ते मे ही  बात हो जाती।एक बार रमेश जानकी को आग्रह से अपने घर ले आया।उसको ड्राइंग रूम में बिठा वह चाय खुद बनाने रसोई में चला गया।

रसोई से आवाज आने पर जानकी ने समझ लिया कि रमेश चाय बनाने का उपक्रम कर रहा है,वह बोली रमेश तुम बैठो, चाय मैं बनाती हूँ।रमेश चुप चाप रसोई से हट गया।

तभी उसका सौतेला भाई विक्की भी आ गया।एकाएक विक्की सामने जानकी को देख चौक गया,वह तो जानकी को पहचानता नही था,वह बड़े भाई रमेश की ओर देखने लगा।रमेश भी अचकचा गया,उसकी समझ ही नही आ रहा था कि वह जानकी का क्या कह कर परिचय कराये?

     तभी जानकी आगे बढ़ी और विक्की से बोली,विक्की जानते हो मैं कौन हूँ?विक्की क्या बोले वह तो जानकी को आज पहली बार देख रहा था।जानकी उसके पास विक्की के सिर पर हाथ फिराते हुए बोली, विक्की मैं हूँ तुम्हारी भाभी।जानकी के शब्द सुन रमेश भौचक्का रह गया,उसने भावावेश में जानकी का हाथ पकड़ लिया।

      जानकी और रमेश ने मंदिर में शादी कर ली।जानकी ने निश्चय कर लिया कि वह विक्की के बड़ा होने तक माँ नही बनेगी।जानकी ने विक्की को ही बेटा मान उसकी परवरिश में अपने को लगा दिया। जानकी अध्यापिका तो थी ही इसलिये उसे विक्की की परवरिश में कोई समस्या भी नही आयी। 

         आज विक्की को डिग्री प्राप्त हुई थी,वह सबसे पहले घर दौड़ता हुआ गया,और जानकी के चरण स्पर्श कर बोला, आज मैं ग्रेजुएट हो गया हूँ,प्रथम स्थान प्राप्त किया है मैंने, जानती हो इसका श्रेय किसे है?जानकी प्रसन्न हो उसका चेहरा देखने लगी।विक्की बोला सब कुछ आप की ही देन है भाभी माँ।

     माँ शब्द सुन जानकी ने विक्की को अपने मे समेट लिया।मानो उसकी छाती में दूध उतर आया हो।दूर खड़ा रमेश इस भाव पूर्ण मिलन को देख अपने आंसू पौछ रहा था,वह क्या बताता कि जानकी ने ही उसके बिखरे जीवन को संवारा है,उसके त्याग और प्यार का मूल्य भला कौन चुका सकता था।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

*#भाभी* साप्ताहिक शब्द पर आधारित कहानी:

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