शीला भाभी की आँखों में आज एक अजीब सा भाव था। वह एक ओर अपनी ज़िम्मेदारी और संतुलन बनाए रखने के प्रयास में लगी रही थी, तो दूसरी ओर अपने देवर मनोज के दिल में अपने प्रति बनी गलतफहमी के दर्द से भी जूझ रही थी। माता-पिता के गुजरने के बाद से सुधीर ने ही अपने छोटे भाई मनोज की पढ़ाई-लिखाई का ध्यान रखा था, उसे इंजीनियर बनाने में एक पिता जैसी भूमिका निभाई थी। सुधीर के साथ ही उसकी पत्नी शीला ने भी मनोज को बेटे की तरह ही संभाला था, लेकिन जब समय बदला, तो मानो रिश्तों की दूरी ने अलग ही कहानी बुन डाली थी।
मनोज मुंबई में अपनी सहकर्मी आशी के साथ शादी कर चुका था। नौकरी और अपनी गृहस्थी में मनोज भले ही बाहर से खुशहाल और व्यवस्थित दिख रहा था, पर मन के किसी कोने में वह अपने भाई और भाभी के रिश्ते की ओर भी खिंचाव महसूस करता था। मनोज की ख़ुशी में ही शीला भाभी और सुधीर भाई की सच्ची ख़ुशी थी। लेकिन फिर, नियति ने जैसे कुछ और ही सोच रखा था।
सुधीर को एक गंभीर बीमारी ने घेर लिया। इलाज महंगा था और शीला के लिए यह कठिनाई का समय था। घर का खर्च और बच्चों की परवरिश की चिंता उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। एक दिन शीला ने अपने छोटे देवर मनोज से मदद की बात की। उसने सोचा, मनोज के पास अच्छी नौकरी है, शायद वह अपने भाई की मदद कर सके। लेकिन जब शीला ने मनोज से आर्थिक सहायता की बात की, तो उस समय उसकी पत्नी आशी ने इस स्थिति को सहजता से नहीं लिया। आशी को लगा कि शायद अब वह अपने पति और उसकी मेहनत के पैसों का इस्तेमाल अपने भाई के परिवार पर नहीं करने देगी। इस बात को लेकर दोनों में बहस हुई, और आशी ने न सिर्फ मनोज को, बल्कि शीला को भी बुरा-भला कहा।
यह सुनकर शीला का मन टूट गया। उसने मनोज से आर्थिक सहायता माँगने का निर्णय खुद से ही वापस ले लिया। वह मन में यह सोचकर चुप हो गई कि शायद अब वक्त बदल चुका है और उसका घर, उसके अपने रिश्ते अब मनोज के लिए उतने अहम नहीं रहे। वह अपनी खामोशी और अपने आंसुओं के साथ इस कठिनाई से खुद ही जूझने लगी। इसी बीच सुधीर की तबीयत और बिगड़ गई, और फिर एक दिन उसने अंतिम सांस ली।
सुधीर के चले जाने के बाद मनोज ने अपनी भाभी शीला को अपने साथ मुंबई ले जाने की इच्छा जताई। लेकिन शीला ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। वह जानती थी कि मनोज अब अपनी गृहस्थी में रमा हुआ है और आशी को भी उसकी जिम्मेदारियों में किसी तीसरे का हस्तक्षेप पसंद नहीं है। इसलिए उसने मनोज का प्रस्ताव विनम्रता से अस्वीकार कर दिया और गाँव में ही रहकर अपनी बेटी मिनी का पालन-पोषण करने का निश्चय किया।
समय बीतता गया, और शीला ने अकेले ही मिनी को पाल पोस कर बड़ा किया। वह खुद ही मिनी की माँ और पिता दोनों बन गई। मिनी धीरे-धीरे बड़ी हो गई, उसकी पढ़ाई पूरी हुई, और फिर एक समय आया जब मिनी के विवाह की चर्चा शुरू हुई। मिनी के लिए रिश्ते आने लगे, और शीला ने इस निश्चय के साथ अपने बचाए हुए पैसों से उसकी शादी की योजना बनाई कि वह अपनी बेटी के विवाह में कोई कमी नहीं रखेगी।
इसी बीच जब मनोज को किसी माध्यम से अपनी भतीजी मिनी के विवाह की जानकारी मिली, तो उसका मन भर आया। उसे अपने बचपन के दिन याद आ गए, जब उसका भाई सुधीर और भाभी शीला ने उसकी हर जरूरत का ख्याल रखा था। मनोज के मन में अपने भाई के प्रति कृतज्ञता का भाव जाग उठा, और उसे यह महसूस हुआ कि शायद अपने परिवार की मदद करने में उसने बहुत देरी कर दी।
मनोज ने बिना समय गंवाए शीला भाभी को फोन किया और उनसे बातचीत करने का प्रस्ताव रखा। शीला, जो अपने देवर के संपर्क से बहुत दूर हो चुकी थी, यह सुनकर हैरान रह गई। वह मनोज से मिलने के लिए तैयार हो गई, और मनोज उसके घर आया।
मनोज ने धीरे से अपनी भाभी शीला से कहा, “भाभी, मिनी पर मेरा भी तो हक है। उसकी शादी की ज़िम्मेदारी केवल आपकी नहीं, मेरी भी है। क्या मुझे अपनी भतीजी की शादी में कोई भूमिका निभाने का हक नहीं है?”
शीला यह सुनकर चौंक गई और उसकी आँखों में आंसू भर आए। उसकी आवाज़ लड़खड़ा गई, “मनोज… मैं… मैं तुमसे कैसे कहती?”
मनोज ने भाभी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, “भाभी, भाई के चले जाने से हमारा रिश्ता तो खत्म नहीं हुआ है। मैंने भले ही अपने जीवन में व्यस्तता के कारण आपसे दूरी बना ली, पर मेरे मन में आपका और भैया का स्थान वही है। उसी रिश्ते के अधिकार से मिनी की शादी की पूरी जिम्मेदारी अब मेरी है। आप बस बैठ जाइये और मुझे आदेश दीजिए।”
शीला भाभी की आँखें भर आईं और उसकी ममता फिर से जाग उठी। वह अपने देवर को देख रही थी, जो उसके लिए बेटे के समान ही था। मनोज ने अपनी भाभी के प्रति जो भाव और ज़िम्मेदारी दिखाए, उसने शीला के मन के सारे गिले-शिकवे मिटा दिए।
मनोज ने अपनी पत्नी आशी को भी इस शादी में साथ देने का आग्रह किया। आशी भी इस समय की गंभीरता को समझ गई और मनोज के साथ अपनी भतीजी की शादी के हर आयोजन में शामिल हुई। दोनों ने मिलकर शादी की तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ी, और मिनी का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ।
इस तरह, मनोज ने अपने रिश्तों की डोर को फिर से मजबूती से बांध दिया और अपने भाई के ऋण को चुकाने की भरपूर कोशिश की। वहीं, शीला के दिल में भी रिश्तों का वो प्यार फिर से लौट आया, जो वर्षों की दूरी और गलतफहमी के कारण कहीं खो गया था।
मौलिक रचना
विभा गुप्ता
बैंगलुरु