सब कुछ है, पर न जाने क्यों हमारा ही घर खुशियां तलाशता रहता है, मन ही मन रमा सोच रही थी। फिर हिम्मत कर महेश से बोली, “सुनो जी! विभू नए लैपटॉप के लिए बोल रहा है।”
“अभी दो साल पहले ही तो उसे लैपटॉप दिलवाया था, नए की क्या जरूरत है?” महेश जी मानो खुद से ही बोले।
“कह रहा था कि उसे पढ़ाई के लिए लेटेस्ट लैपटॉप की जरूरत है और … ” कुछ क्षण रुक झिझकते हुए रमा फिर से बोली, “नए फैशन के हिसाब से कपड़े और जूते खरीदने के लिए उसे 10 हज़ार भी चाहिए थे।”
“समझ नहीं आ रहा कि वो क्यों अपनी चादर देख कर पांव नहीं पसार रहा।” महेश जी झल्ला कर बोले।
“क्योंकि आपकी चादर रुमाल से भी ज्यादा छोटी है, इसलिए।” दरवाज़े पर खड़ा विभू बद्तमीजी से बोला, “और जब खर्चा नहीं उठा सकते थे, तो पैदा क्यों किया?”
बेटे की यह बात जिधर महेश को कांच की तरह चुभी, वहीं रमा को अपने भीतर कुछ टूटता सा प्रतीत हुआ। क्या उसने और महेश ने जीवन में संघर्ष नहीं किया था, क्या अपनी मेहनत से वो गरीबी रेखा से उठ कर मध्यम वर्ग तक नहीं पहुंचे थे? उसे ऐसा लगा कि मानो विभू पढ़ाई करके उन दोनों पर एहसान कर रहा है। नहीं… हर चीज़ आसानी से मिल जाने की वजह से विभू ज़िद्दी हो चुका है। उसे मेहनत करना और पैसे की अहमियत सिखाने का वक्त आ चुका है। खुशियों की तलाश बाहर से नहीं बल्कि भीतर से ही होती है। अगर आज विभू सबक न मिला तो ज़िंदगी भर वो उनके ऊपर हावी रहेगा।
थोड़ा कठोर स्वर बनाते हुए रमा बोली, “सुन विभू,चादर से पैर तूने ही बाहर निकाले हैं, इसलिए ऊपर की जरूरतें भी तुझे ही पूरी करनी पड़ेंगी। तूने ही अपने सुंदर भविष्य के लिए इस कॉलेज में पढ़ने की जिद्द की थी। हमने तुझे उसी समय बोला था कि अपने दोस्तों की तरह सरकारी कॉलेज में एडमिशन ले ले। पर तेरे ही सपने ऊंचे थे, तो अब उन ऊंचे सपनों को पूरा करने के लिए कोई पार्ट टाइम नौकरी पकड़ ले
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ताकि अपने नए दोस्तों की बराबरी कर सको। और… यह मत सोचना कि हम तेरे ऊपर कोई अत्याचार कर रहे हैं। मैंने और तेरे पापा ने भी ऐसा ही किया था और अगर तुझे भूल गया हो तो तूने उस समय खुद ही पार्ट टाइम नौकरी करने का प्रस्ताव हमारे सामने रखा था और अब मुझे लगता है अपना जीवन सुधारने के लिए तुम इतना तो कर ही सकते हो।”
झटका तगड़ा था, पर ज़रूरी भी था। रमा और महेश बखूबी जानते थे कि विभू को मेहनत की आदत नहीं है इसलिए शुरुआत में वो थोड़ा लड़खड़ा सकता है, पर ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए आखिर कब तक वे दोनों उसकी बैसाखी बने रहते । कम से कम अब वो अपनी अनुचित मांगें तो उनपर नहीं लादेगा या उन्हें ही ज़ली कटी सुनाएगा।
दोनों ने विभू की तरफ देखा, उसकी नीची नजरें बता रहीं थीं कि आज एक नए विभू का जन्म हुआ था, मेहनती और जिम्मेदारियों को समझने वाले विभू का। शायद रमा की खुशियों की तलाश अब पूरी हो जाए ।
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’