आज फिर गंवार की तरह मांग भर सिंदूर लगा कर चल दी ,कितनी बार कहा है मुझे तुम्हारा इस तरह तैयार होना अच्छा नहीं लगता ।
अरे प्रवेश सुहागिन को सिंदूर लगाना चाहिए इसीलिए लगाती हूं
अच्छा अगर नही लगाओगी तो सुहागन नही हो ,तुम मेरी पत्नी हो ये सब जानते है पर इस तरह रेड लाइट लगाने की जरूरत नहीं है ।
मेरे सिंदूर लगाने से मैं इनकी पार्टी में जाने लायक नही हूं
अब मैंने बालो के अंदर अपने सुहाग चिन्ह को लगाना शुरू कर दिया ।
कुछ मॉर्डन महिलाए खुले बाल न सिंदूर नही हांथ में कांच की चूड़ी की जगह मेटल का कंगन पहने होती वही प्रवेश को अच्छी लगती ।
मेरा पढ़ा लिखा होने का कोई मतलब नहीं मेरा मॉर्डन होना उन्हें पसंद है ,
जब मैं मॉर्डन तरीके से तैयार होती तो प्रवेश को मुझपर बहुत प्यार आता ,
तब मुझे लगता पीठ पर बाया हांथ रखकर दाहिने हाथ से जो तुमने मेरी मांग में सिंदूर डाला था वह पल वह तुम्हारा स्पर्श मुझे हमेशा याद रहेगा परंतु तुम हो की मंडप के नीचे अग्नि को साक्षी मानकर मांग में भरे सिंदूर को लगाने पर मुझे गंवार कहते हो ।
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क्या संस्कारों को खो देना ही सभ्य समाज कहलाता है ,मुझे आज भी शादी के पहले वह दिन याद हैं
जब मैं अपनी भाभी को मांग में सिंदूर भरते देखती भाभी बहुत सुंदर लगती थी ,कभी कभी भाभी के नाक पर सिंदूर गिर जाता उसे देख बोलती आज भैया ज्यादा प्यार किए है चल भाग छोटी, तुम हमारा श्रृंगार ही देखा करती , तुम्हारे लिए भी बहुत प्यार वाला पति ढूंढना है।
उसके लिए तो मुझे खूब नाक पर सिंदूर गिराना होगा तभी प्यार करेगा मैं भाभी की बात का मजाक बनाती थी
भाभी तुम्ही तो कहती हो की नाक पर सिंदूर गिरी तो समझो पति बहुत प्यार करता है ।
छोटी सीता मैया को सिंदूर लगाते हनुमान जी देखे तो पूछे मैया ये क्यों लगाती हो ?
मैया बोली ये स्वामी को प्रिय है इसी खातिर हम लगाती हैं
फिर क्या हनुमान जी रामजी के प्रिय बनने के लिए पूरे बदन में सिंदूर पोत लिए ।
अब तुम शादी के बाद खूब सिंदूर रोज लगाई फिर क्या हमारे ननदोई बाबू तुम्हारे पीछे घूमे फिरेंगे
भाभी आप तो मेरी शादी के पीछे पड़ी हैं ,अभी हमको पढ़ाई करके कुछ अच्छी नौकरी करनी है ।
समय निकल गया अब पढलिख कर शादी लायक हो गई ,अच्छा पढ़ा लिखा समाज पाकर इंजीनियर लड़के प्रवेश के संग विवाह कर दिया गया ।
हम लोग आधुनिक विचारों के नही थे धीरे धीरे मुझे इनके परिवार के साथ चलने के लिए अपने विचार बदलने पड़े ,परंतु मैने सिंदूर मेरे सौभाग्य का प्रतीक लगाना नही छोड़ा ,अब प्रवेश ने भी टोकना छोड़ दिया ।
दक्षिण भारतीय अपना हल्दी कुमकुम नही छोड़े है
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फिर हम क्यों अपने सिंदूर को छोड़ दे ।
एक बार ऑफिस के काम से पंद्रह दिन के लिए प्रवेश को अमेरिका जाना था मैं भी साथ चली गई ,अमेरिका घूमने का बहुत मन था ,प्रवेश ने मुझे जींस टॉप दिलाए वहा पहनने के लिए मैंने कपड़े इनके मन से पहने परंतु माथे की बिंदी और सिंदूर थोड़ा सा जरूर लगाया एक मॉल में हम लोग काफी पी रहे थे तभी एक महिला को देखा वह हम दोनो को देखकर मुस्करा रही थी ,जब चलने लगे तो उसने पूछ ही लिया आप इंडिया से है
मैने कहा जी मैं इंडिया से हूं
आपको देख कर मैं जान गई ,आई लव इंडिया
अंग्रेजी में बोला गया ये सम्बाद मुझे गर्व महसूस करवा रहा था उसने हमारे सुहाग चिन्हों से मुझे पहचाना था की मैं भारतीय हूं ।
आज प्रवेश को ये बात समझ में आ गई ।
पूजा मिश्रा
कानपुर