दोपहर का काम खत्म करके लेटी ही थी कि कॉल बेल बज उठी।
“ ओहो ! इस समय कौन आ गया ? “ बुदबुदाते हुए दरवाज़ा खोला तो सुखद आश्चर्य से भर उठी ।
“ अरे कमली तू ! तू तो बिलकुल ही बदल गई है ?” मैंने उसे अन्दर आने की जगह देते हुए कहा ।
“हां, भाभीजी । ये सब आपके कारण ही संभव हो पाया है ।“ कमली ने अंदर आते हुए कहा और मैं ठगी सी उसका आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व निहारने लगी । तभी कमली की आवाज से जैसे मैं होश में आई ।
“ भाभीजी ! कहां खो गई ? आप । पहले तो आप ये बताएं कि आपको मेरे हाथ की चाय का स्वाद याद है या भूल गईं ? आप कहें तो बना लाऊं ? चाय की चुस्कियों के साथ मैं आपको अपनी कहानी सुनाती हूं।“
“ हां, क्यों नहीं। इस बहाने मुझे तेरे हाथ की चाय भी पीने को मिल जायेगी। “ मैंने कहा।
कमली रसोई में चाय बनाने चली गई और मैं कमली में दस साल पहले की कमली ढूंढने लगी।
दस साल पहले ये कमली जिसका नाम कमलेश्वरी था और मैंने उसे छोटा कर के कमली कर दिया था । घरों में झाड़ू – पोंछा, बर्तन करके अपना और अपने परिवार का गुजारा किया करती थी , झारखंड से अपने पति के साथ आई हुई एक सीधी साधी सी नवविवाहिता थी। जिसे ना तो ठीक से हिंदी बोलना आता था और न ही ठीक से साड़ी पहनना आता था ।
पति को परमेश्वर समझने वाली कमली अपने शराबी पति की रोज़ मार खाना अपना सौभाग्य समझती थी और अक्सर बुरी तरह पिटने के बाद मेरे घर पर आ कर शरण लेती थी।
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मैंने उसको कई बार समझाने की कोशिश की कि,
“ कमली ! कब तक तू उसकी मार खाती रहेगी ? तू उसके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाती है ? तू अगर कुछ नहीं बोलेगी तो उसके हौंसले और बुलंद होते जायेगें ।“
“ भाभीजी ! प्यार करता है तभी तो मारता है। उसका हक जताने का तरीका है, ये। अपनी जोरू को नहीं मारेगा तो क्या पड़ोसन को मारने जायेगा ? “ कमली हंसते हुए कह देती ।
इसी तरह से कमली की शादी को दो साल निकल गए । लेकिन वो मां ना बन सकी। जिस कारण से उसके पति के अत्याचार उस पर और भी बढ़ गए।
एक रात एक बजे पति से मार खाकर उसने मेरा दरवाजा खटखटाया । लेकिन मैंने भी निश्चय कर लिया था कि आज दरवाजा नहीं खोलूंगी । मेरे दरवाजा ना खोलने पर थोड़ी देर में वो चली गई। लेकिन उसके बाद से उसका कुछ पता नहीं चला और आज दस साल बाद वो अपने इस रूप में खड़ी थी ।
“ भाभीजी ! चाय । कहां खो गईं ?” कमली ने आवाज लगाई तो मेरी तंद्रा भंग हुई।
“ कहीं नहीं । आज तुझको इस तरह से देख कर बहुत अच्छा लग रहा है । नहीं तो मैं अपने को तेरी गुनहगार समझ रही थी । क्योंकि उस दिन के बाद से ना तो तेरा और न ही तेरे पति का कुछ पता नहीं चला ।“ मैंने कहा ।
“ तभी तो आपसे मिलने आई हूं। “ उसने मेरे पास कुर्सी खिसकाते हुए कहा।
“ भाभीजी ! उस दिन जब मैं आपके पास आई तो वो भी मुझे मारता हुआ मेरे पीछे – पीछे आ गया । इधर आपने दरवाजा नहीं खोला और उधर उसने पीछे से आकर मेरे बाल पकड़कर खसीटते हुए दो – तीन लात मेरे पेट में मार दीं और मैं वहीं बेसुध हो गई ।“ कहते – कहते कमली की आंखों में आसूं आ गए। थोड़ा रुक कर उसने फिर कहना शुरू किया ।
“ जब मुझे होश आया तो मैं पुलिस स्टेशन चली गई और उसकी रिपोर्ट लिखवा दी। पुलिस ने भी तुरंत कार्यवाही की और उसको पकड़ लाए । मुझे महिला मुक्ति मोर्चा में भेज दिया गया। वहां पर में साफ – सफाई का काम करने लगी । वहां पर आपके जैसी ही ममता मैम हैं, बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप । उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए और उससे तलाक़ लेने के लिए प्रेरित किया । शुरू में तलाक़ के नाम से मुझे बहुत अटपटा लगता ।
लेकिन उन्होंने मुझे बहुत सी ऐसी महिलाओं से मिलवाया जो तलाक़ लेकर एक खुशहाल जिंदगी जी रहीं थीं। I उनकी बात मानकर मैंने तलाक़ के पेपर साइन कर दिए । उसने साइन करने में पहले ना – नुकूर की, फिर मैम के दवाब डालने से मान गया।
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मैम के कहने पर मैंने पढ़ना और लिखना सीखना शुरू कर दिया । साथ ही साथ मैंने ब्यूटी पार्लर का कोर्स भी ज्वाइन कर लिया । ममता मैम ने पांच साल मेरे ऊपर मेहनत की है । तब जाकर मैं आपके सामने इस रूप में खड़ी हूं। आज मेरा नाम शहर की अच्छी ब्यूटीशियन में आता है।
सच कहती हूं भाभीजी अगर उस दिन भी आप मेरी मदद कर देती तो आपके सामने अभी दस साल पहले वाली कमली खड़ी होती और मुझे कभी सुख किसे कहते हैं,पता ही नहीं चलता। आपके कारण ही आज मैं उस दुखमय जिंदगी से निकल कर सुखमय जिंदगी का हाथ थाम सकी हूं।“ कहते – कहते कमली की आंखे भर आईं।
उसकी बातें सुनते हुए मैं भी भावुक हो उठी थी । इसलिए वातावरण को हल्का करने के उद्देश्य से मैंने कहा ,
“ चल अब बातें ही करती रहेगी कि मेरा फेशियल भी करेगी ? ब्यूटीशियन कमली ।“
“क्यों नहीं , भाभीजी । कमली ने कहा और हम दोनों उठकर मेरे मेकअप रूम में आ गए।
अनिता गुप्ता
# सुख – दुख का संगम