” मुकुल, इस समय दक्षिणा को हमारी बहुत जरूरत है। उसने कभी मुझे नहीं बताया लेकिन जब उसकी ऐसी हालत सुनकर भी अभी तक ससुराल से कोई नहीं आया तो वे लोग कैसे होंगे, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है?”
” तुम जो करना चाहती हो बताओ मैं तुम्हारे साथ हूॅ।”
” तुम घर की व्यवस्था में मेरा सहयोग कर दो। मैं उसके माता-पिता के लिए खाना लेकर रोज अस्पताल जाना चाहती हूॅ और पूरा दिन वहाॅ बिताना चाहती हूॅ ताकि उसके माता-पिता को कुछ आराम मिल सके। वे वृद्ध लोग बहुत परेशान हैं। कुछ पैसे भी निकाल कर मुझे दे दो।”
” कल सुबह मैं तुम्हारे साथ उठ जाऊॅगा और सारे काम तुम्हारे साथ करवा कर तुम्हें अस्पताल छोड़ दूॅगा।”
” तुम नहीं चलोगे ?”
“अहिल्या मुझसे उसकी हालत देखी नहीं जायेगी और तुम जानती हो कि हम लोगों का दक्षिणा से बेहद आत्मीय सम्बन्ध है लेकिन ऑफिस में इसे चर्चा का विषय बनाना उचित नहीं है। तुम और मैं तो एक ही है। ऑफिस नियमानुसार जो सहायता हो सकेगी वह मैं करूॅगा।”
” आप सही कह रहे हैं। कहने वाले का मुॅह बन्द नहीं किया जा सकता।”
अहिल्या रोज अस्पताल जाती और लौटकर सब कुछ मुकुल को बताती। दक्षिणा की स्थिति में इतना सुधार हुआ उसे स्पर्श का आभास और इंजेक्शन लगने की अनुभूति होने लगी। धीरे-धीरे अहिल्या कुछ खिलाने के लिए चम्मच मुॅह तक ले जाती तो वह मुॅह खोल देती। बाथरूम में ले जाकर बैठाने पर पेशाब कर लेती लेकिन उसकी ऑखों में अजनबीपन के बादल वैसे ही थे। वह सब को टुकुर-टुकुर ताकती रहती थी। शब्दहीन थी आज भी वह।
करीब बीस दिन बाद एक दिन अहिल्या ने आकर बताया कि डॉक्टर के अनुसार अब दक्षिणा में स्वयं धीरे-धीरे सुधार होगा। दोबारा कोई बड़ा सदमा या खुशी उसे पूर्णतः सामान्य कर पायेगा। डॉक्टर ने दक्षिणा के पति को फोन करके बुलाया कि अब वे लोग मरीज को घर ले जा सकते हैं लेकिन उसके ससुराल वालों ने घर ले जाने से मना कर दिया –
” हमसे नहीं होगा इस पागल ठूॅठ की सेवा। ले जाकर पागलखाने में डाल दो।”
डॉक्टर ने समझाया कि दक्षिणा पागल नहीं है। धीरे-धीरे ठीक हो जायेगी। उसे प्यार और स्नेह की जरूरत है लेकिन वे लोग चले गये और दक्षिणा के मम्मी – पापा रोते रह गये।
” अब क्या होगा मुकुल, क्या हम उसे अपने घर ले आयें? उसके मम्मी – पापा इस हालत में उसे कैसे सम्हाल पायेंगे?” अहिल्या बिलख बिलख कर रो रही थी।
” शायद उसकी मम्मी पापा का स्वाभिमान स्वीकार नहीं करेगा और एक विवाहिता स्त्री को बिना किसी सम्बन्ध के हम कब तक अपने घर में रख पायेंगे ?”
” तो क्या हम उसके लिए कुछ नहीं कर सकते ?”
” तुम एक काम करो ।कल उसके पापा को ऑफिस भेज देना। दक्षिणा सबको बहुत प्रिय है। उसके पापा जब वहाॅ आकर सबके सामने अपनी समस्या बतायेंगें तो कोई न कोई रास्ता निकल आयेगा।”
दक्षिणा के पापा की समस्या का सबने मिलकर समाधान निकाल लिया। सबसे पहले दक्षिणा का सारा केस कानपुर के रिजेंसी अस्पताल में स्थानान्तरण करवा दिया गया। घर में दक्षिणा की देखभाल की व्यवस्था भी अस्पताल द्वारा कर दी गई। यह भी तय किया गया कि जबतक दक्षिणा के पास छुट्टियॉ है, उसका वेतन बराबर उसे मिलता रहेगा। चिकित्सा बिलों का भुगतान भी यथाशीघ्र बराबर करवा दिया जायेगा।
अनेक प्रार्थना पत्रों में दक्षिणा का हाथ पकड़ कर हस्ताक्षर ले लिये गये। दो सहकर्मी कानपुर से नित्य लखनऊ आते थे उन्होंने वादा किया कि वे हर रविवार को दक्षिणा को देखने उसके घर आयेंगे। साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उन लोगों ने हर प्रकार की सहायता देने का वादा भी दक्षिणा के पापा से किया।
मेडिकल कॉलेज से दक्षिणा को पन्द्रह दिन की दवाइयाॅ देकर छुट्टी कर दी गई। जाने से एक दिन पहले –
” वैसे तो बहुत दक्षिणा •••• दक्षिणा •••• करते थे, जाओ, एक बार देख आओ । कल तो वह चली ही जायेगी। ऑफिस के सभी लोग तो आते हैं।”
” तुम चली जाना।”
” मैं तो जाऊॅगी ही। तुम्हारा मन नहीं करता क्या ?”
” बहुत करता है लेकिन उस जीवन्त, ऊर्जावान दक्षिणा को वैसी हालत में देखने की कल्पना भी मुझे दहला देती है। साहस नहीं जुटा पाता हू्ॅ।”
दक्षिणा को एम्बुलेंस से लेकर उसके मम्मी पापा कानपुर चले गये। चलते समय अहिल्या को उन लोगों ने अपने से लिपटाकर रोते हुये कहा –
” ऐसे समय जब अपनों ने साथ छोड़ दिया, तुमने मेरा इतना साथ दिया कि हम बस तुम्हें आशीर्वाद ही दे सकते हैं। हमेशा सुखी रहो।”
” आप ऐसे मत कहिये ,मैं भी आपकी बेटी ही हूॅ। मैं कानपुर आऊॅगी। फोन से पता करती रहूॅगी। जब भी जरूरत हो फोन कर दीजिएगा, मैं दो घंटे में आपके पास पहुॅच जाऊॅगी। चिंता मत करिये , दक्षिणा बिल्कुल ठीक हो जायेगी शायद अपने घर जाकर उसे और अच्छा लगे।”
अहिल्या बराबर दक्षिणा के मम्मी पापा को फोन करती रहती और एक दिन उसने मुकुल को बताया कि एक महीने बाद दुबारा हुये चेकअप में पता चला है कि दक्षिणा के भीतर एक नन्हा जीव पल रहा है।
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उपहार (भाग-12) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर