दक्षिणा ने भले ही अहिल्या को कुछ नहीं बताया लेकिन धीरे-धीरे मुकुल के सामने स्पष्ट हो गया कि दक्षिणा के जीवन में कष्ट , परेशानी और दुख के सिवा कुछ न था। समीपता बढ़ने के साथ ही उसके अंदर की घुटन ने मुकुल को छू लिया और मुकुल भीतर तक तड़प कर रह गया –
” अगर तुम मुझे अपना दोस्त हितेेषी या शुभचिंतक कुछ भी मानती हो तो बताओ कि किस पीड़ा से तुम भीतर ही भीतर तड़पती रहती हो? जब मैं अपनी और अहिल्या की बात करता हूॅ तो तुम्हारी नजरों में सूनापन क्यों तैरने लगता है ? ऑखों में एक नमी के साथ कोई हसरत क्यों तड़पने लगती है? होंठ असहनीय पीड़ा से व्याकुल होकर कॉपने क्यों लगते हैं ?”
” कुछ नहीं बेकार का भ्रम है आपको ।”
” भ्रम तो नहीं है लेकिन शायद तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है , इसलिए बताना नहीं चाहती ।” मुकुल का स्वर उदास हो गया।
” नहीं ,ऐसी बात नहीं लेकिन जानकर आप क्या करेंगे?”
” शायद कुछ नहीं, लेकिन तुम्हारी पीड़ा को सहला तो सकता हूॅ, सान्त्वना तो दे ही सकता हूॅ।”
तब पता चला मुकुल को कि शादी के सात साल बाद भी वह सन्तान को तरस रही है। माॅ के परम आज्ञाकारी उसके पति किसी डॉक्टर के पास जाने को तैयार नहीं है क्योंकि माॅ ने कह दिया है –
” खुद बॉझ है और मेरे बेटे को डॉक्टर के पास जाने को कहती है। तुम मर्द हो, तुम्हें डाक्टरों की चोचलेबाजी में पड़ने की जरूरत नहीं है। दूसरी शादी कर लो, साल भर के भीतर बाप बन जाओगे। मैं इसे निकालने को तो कह नहीं रही हूॅ । यह भी इसी घर में रह लेगी।”
” दूसरी शादी के लिए मेरा तलाक देना जरूरी है और जब हमारे बीच में तलाक हो जायेगा तो मैं इस घर में क्यों रहूॅगी ? बिना मेरी मर्जी के तलाक मिलना असंभव है।”
” पति का वंश चलाने के लिए औरतें न जाने कितने जतन करती है लेकिन इसे तो कोई परवाह ही नहीं है।”
दक्षिणा के पति को अच्छी तरह पता था कि दक्षिणा सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है जो हर महीने अपना मोटा वेतन सोने के अंडे के रूप में देती है। पति को अच्छी तरह मालूम था कि तीन बहनों की शादी और दो अकर्मण्य भाइयों का खर्चा अकेले उनके वेतन से चल पाना सम्भव नहीं है। दो ननदों की शादी होने के बाद भी उनकी सारी ज़रूरतें, सारे खर्चे मायके से ही पूरे किये जाते हैं। उन दोनों के बच्चे हो जाने के बाद तो दक्षिणा दुनिया की सबसे निकृष्ट और कचरा वस्तु हो गई थी उस घर के लिये।
कई बार दक्षिणा की सास उसे सुनाते हुये कहतीं-
” एक कुतिया या बिल्ली भी पाली होती तो सात साल में न जाने कितने बच्चे पैदा हो जाते, यह तो उनसे भी गई बीती है।”
मुकुल का मन वेदना से भर गया। कोई दक्षिणा को इतनी बेहूदी बात कैसे कह सकता है?
दक्षिणा ने कहा -” जानते हैं मुकुल, मैंने अपने आप को गायनाकालजिस्ट को दिखाकर सारे परीक्षण करवा लिये हैं। मैं मां बनने में पूर्ण सक्षम हूॅ लेकिन बॉझ कहलाती हूॅ । घर वालों के ताने सुनती हूॅ।”
” तुम कोई विरोध क्यों नहीं करती?”
” मेरे जरा सा बोलते ही छह लोग एक साथ बदतमीजी और गाली गलौज करने लगते हैं। सास और ननदें तो यहाॅ तक कहतीं कि है ले आओ मिट्टी का तेल, अभी आग लगा देते हैं ,देखो कोई क्या कर लेगा?”
” तुम्हारे पति कुछ नहीं करते?” मुकुल का आश्चर्यमिश्रित स्वर।
” वह कहते हैं ये लोग सही कह रहे हैं, तुम इसी लायक हो।”
” इतनी मानसिक वेदना सहकर कैसे इतनी तत्परता, इतनी सरलता और इतनी ऊर्जा शेष रह जाती है तुममें ?”
” ऑफिस मेरे लिए स्वर्ग जैसा है। घर जाने का मन ही नहीं होता है । समझ लीजिये यहाॅ पर मुझे जितना प्यार, अपनापन, सम्मान और सराहना मिलती है, घर पहुॅचते ही उतनी ही पीड़ा ,अपमान और दुत्कार।”
” क्यों सहती हो इतना? किसी पर आश्रित नहीं हो , पूर्ण समर्थ हो। छोड़कर अलग क्यों नहीं हो जाती ऐसे पति को जो सिर्फ तुम्हारे वेतन से प्यार करते हैं।”
” संस्कारों और मर्यादा वश ।”
” मैंने तुम्हारी जैसी बेवकूफ लड़की आज तक नहीं देखी। भाड़ में जाए तुम्हारे संस्कार और मर्यादा।” मुकुल को क्रोध आ रहा था।
” छोड़िये ,आप नहीं समझेंगे। ” गीली ऑखों में भी मुस्कुरा दी वह।
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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर