सुनहरी धूप – अनुज सारस्वत  : Moral Stories in Hindi

“मम्मी आप मुझे यूं आप भाभी से छुप छुप के सामान रूपये मत दिया करो।ये बहुत नाराज होते हैं।कहते हैं कोई कमी रखी जा रही जो यह काम हो रहा ।वो तो मैं कह देती हूँ कि माँ बाप का प्यार है मैं कैसे मना करूं।लेकिन आपको तो पता है ये बहुत खुद्दार हैं।शुरू से बहुत मेहनती रहे हैं। किसी का कर्जा नही रखा ना मांगा।”

शालिनी ने अपनी माँ से फोन पर यह बात कह रही थी।

माँ बोली “अरे हीरा हैं दामाद जी कोई बात नही कह देना फिर प्यार ही तो है।और रही बात बहू की तो मुझे क्या पता उसकी माँ भी तो भेजती होगी तू ज्यादा मत सोच “

माँ ने फोन रख दिया ।उधर शालिनी के पापा सोफे पर बैठे चाय पी रहे थे।

“देखो जी मैं कोई गलत थोड़े ना कह रही थी सब माँ  अपने बच्चों का ध्यान रखते हैं।हम भी रख रहे।”

शालिनी के पापा मुस्कुराए और चाय का आखिरी घूंट पीकर ।मार्केट की तरफ निकल गये ।

इधर शालिनी के पतिदेव का फोन आया

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शालिनी के पास। के दो दिन बाद किसी टूर पर जाना है।टूर का नाम सुनते ही शालिनी के चेहरे का रंग उड़ जाता अकेले सब कुछ मैनेज करना होता दो बच्चों के साथ।इसी कारण शालिनी के पति ने सिक्योरिटी रीजन से घर एक अच्छी कॉलोनी में घर लिया था।

“क्या यार फिर टूर अभी तो होकर आये थे मुझपर लोड पड़ जाता कितना पता है आपको?”

“हाँ पता है तभी तो और जा टूर पर “

हँस कर शालिनी के पति ने कहा।

टूर वाला दिन आ गया था।शालिनी के पति ने कहा

“शालिनी चलो टूर पर चलना है”

यह सुनते ही शालिनी बोली

“टूर तो आपका है हमेशा की तरह फैमिली कहाँ जाती और मैं कैसे चलूं कोई पैकिंग नही है खुद ही जाओ”

“अरे अबकी बार टूर पास में ही है मात्र बीस किलोमीटर और फैमिली अलाऊड है”

यह सुन शालिनी के चेहरे पर चमक आ गयी।एक घंटे में पूरी पैकिंग की बच्चों को तैयार करा चल पड़े।एक बहुत सुंदर रिसोर्ट था नदी किनारे ।चारो तरफ सुंदर पहाड़ थे।उस क्षेत्र की सुगंध पूरे चित्त को शांति प्रदान कर रही थी।रिसोर्ट के रूम में तरोताजा होने के बाद ।

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रिसोर्ट के डाइनिंग हाॅल में पहुंते ही शालिनी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी।क्योंकि वहाँ पर शालिनी की माँ ,पिताजी, दोनो भाई और तीनो बहन थे।इधर शालिनी ने अपने पतिदेव की तरफ देखा।और मुस्कराकर पूछा

“तो यह था आपका टूर”

फिर पतिदेव बोले यह सब तुम्हारे पिताजी की माया है ।वो बोले आना है तो आना है

अब सारे लोग अचंभित थे कि क्या कारण  था ऐसा करने का।

फिर पिताजी बोले

“यार कभी कभी वेकेशन भी जरूरी है जिंदगी की भाग दौड़ से वो भी अपनों के साथ।अकेले जीये तो क्या जीये वो स्वार्थीपन होता।”

तभी शालिनी की मम्मी तपाक से बोलीं

“ऐ जी हमें तो ना ले गये कभी तुम घुमाने “

सभी लोग यह बात सुनकर हंसने लगे।

तभी पिताजी ने अपने तीनों दामादों और दोनो बेटे को बुलाया और कहा

“देखो अब हमारी उम्र तो हो चली लेकिन इस उम्र में बहुत गलतियाँ हुयीं।पहली परिवार छोड़कर दूर देश कमाने की होड़ इतनी लगी कि अपने बूढ़े माँ बाप और पत्नी को उचित समय नही दे पाया।पैसा खूब कमाया जाहिर है जब पैसा आया तो थोड़ा अहंकार भी ब्याज में आया।लेकिन रिश्ते निकल चुके थे हाथों से।

लेकिन ऊपर वाला सारा बैलेंस रखता है।जितना नाम दिया बदनामी भी खूब हुयी वो भी एक संतान के कारण।संतान गलत नही थी गलत हम थे जो सही समय पर उसको नही टोका। संतान हो या पत्नी अगर सही समय पर नही टोका और रोका गया तो कुछ चीजें अवरूद्ध हो जाती हैं।

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खैर इसमें भी ईश्वर की भलाई थी फिर जब तीनों बेटियों की शादी की। फिर किसी रिश्तेदार ने मुझसे पूछा इतने साधारण परिवारों में क्यूं शादी की आपने आप चाहते थो करोडपति मिल सकते थे।फिर मैनें कहा यह लोग ही मेरी संतान के उत्थान का जरिया बनेंगे।जो शालीनता ईमानदारी और खुद्दारी इन सब में मिली वो मुझमें भी नही है।आज भी मैं रूपयों से सब कुछ खरीद सकने की भावना रखता हूँ। लेकिन इन लोगों को नही ।

जिन्होंने बिना किसी मांग के मेरी बेटियों को स्वीकार किया।मैनें अपनी बेटियों को हमेशा यही बोला कि जैसी भी परिस्थिति में रखें तुम लोगों को एक दूसरे को मजबूत करना है।मेरा घर केवल तीज त्यौहार के लिये खुला है तुम लोगों के लिये।बाकी अपना जीवन मिल बांटकर काटो।हर बात पति से शेयर करो ना कि हमसे ।हमने अपना दायित्व निभा दिया है।

मैं इनकी खुद्दारी पर चोट नही कर सकता।पैसों को बीच में लाकर।

इधर शालिनी की माँ को लाज आने लगी।

उन्हे बीच में रोकते हुये बोली मुझे मालूम पड़ गया यह सब आपने मुझे समझाने के लिये करा है।

“मै ही भेद रख रही थी बेटी और बहू में समझ आ गया कि चाय में चीनी उतनी ही डाली जाये जितना स्वाद आ सके ज्यादा मीठा और नमक हानिकारक है।मैं बेटियों को पंगु बना रही थी पीछे से सपोर्ट देते देते।”

इतने में उनका पोता बोला “पर दादी आपको तो शुगर और बीपी दोनो ही हैं बच कर रहिये”

यह सुन सब हँस पड़ें। इधर शालिनी की भाभी बोली “अगर आप सब लोग की आज्ञा हो तो कुछ कहूं।मैं भी कुछ भटक गयी थी क्योंकि पैसों की चकाचौंध ने स्वार्थी बना दिया था कुछ घृणित कदम भी मुझसे उठ गये जो इस परिवार को तोड़ने की स्थिति में ले गये”

वो बोल ही रही थी की शालिनी के भाई के आंखो झर ज

झर आँसू बह निकले और बोला “आप सब लोग सही हैं मेरी ही वजह से इतना दुख देखना पड़ गया परिवार को ।अथाह संपत्ति के नशे में चूर होकर ना घर वालों की सुनी ना किसी रिश्ते को मान दिया।इतना नीच होने के बावजूद भी मेरे जीजाओं और बहनों ने हर कदम मुझे सपोर्ट किया और रिश्ता बचाये रखने की हर दम कोशिश की।पापा मैं आपका सबसे नालायक बेटा हूँ”

तब पिताजी बोले

“मेरा  बेटा हमेशा से लायक है।सब भूल जाओ और इस प्राकृतिक जगह का आनंद लो बहुत हो गया रोना धोना। जिंदगी परम आनंद से जीना चाहिए। जब तक कुछ काली घाटियाँ नही आयेंगी तब तक कैसी सुनहरी धूप की महत्ता मालूम पड़ेगी ।

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सभी लोग नदी किनारे चल दीये वहाँ से दूर बर्फ की चोटियों पर धूप सुनहरी हो उठी थी।

तभी पोता बोला” दादू आपके डायलॉग वाली सुनहरी धूप वो रही।”

सब हंस दिये और सबके ह्रदय निर्मल हो चले थे आज सास बहू बेटी बेटा दामाद ससुर एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले बड़ चले नये रिश्तों की डोर थामे।

-अनुज सारस्वत की कलम से   

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