देवकन्या (भाग-6) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

पाणिनी  का मार्गदर्शन “”

(पहली जनपद  कल्याणी गणिका का निवार्चन)

“सभी सभासदो की उपस्थिति  में,

बिना संशय सभी के मतानुसार ,बाहुलता के अनुरूप हर जाति से  एक पदाधिकारी  चुनों”

” प्रमुख का चयन करते ही”मंत्रिपरिषद  के सुझाव के अनरूप गढंप्रमुख का चयन किया जाऐ”

व्यवधान को ही समाधान करने दो राजन्”

अन्य मंत्रीगण समीप ही खडे थे”उनमे से एक बोला”

सुझाव, उचित  है”परन्तु  चिंता  का विषय ये है की””युवाशक्ति से कैसे टकराऐगें,हिंसा इतनी फैली है,की युवाशक्ति  को एकत्रित  करने में””एडी चोटी का जोर लग जाऐगा”

आप  सत्य बोल रहे है मान्य “” हाथ पर हाथ रखकर कबतक बैठेगें””कुछ निर्णय  तो लेना होगा””

आचार्य आप ही कुछ मागदर्शन कीजिए””दूसरा पदाधिकारी  हाथ जोड निवेदन करता हुआ बोला”

युवाओ को शांत   करने के लिऐ यदि ,आपलोगो  के पास कुछ विचार हो तो जरूर रखे”सभी सभासदो सरसरी दृष्टि डालते हुऐ  आचार्य  बोले””

भगवन् क्षमाप्रार्थी  हूं पर मे अपने मन की बात रखने की आज्ञा चाहता  हूं”यदि कोई त्रुटी जाने अंजाने हो जाऐ ,तो क्षमादान करना “”‘

एक मंत्री  ने अपने विचार  रखने की अनुमति मांगी”

बोलो भन्ते “” यदि आपके विचार मे पुरी का हित है तो जरूर मान्य होगी””

आभार भगवन,””” नतमस्तक  होकर  ,हाथ जोड लिऐ सभासद ने””

यदि राजनर्तकी के पद को विस्तारित  कर जनपद कल्याणी के रूप मे बिठा दे तो  शायद युवान तरूणों को उनका यौवन बांध ले”

अर्थात नगरवधू  , बुद्धि तो नही भ्रष्ट हो गयी आपकी श्रीमान”

एक कलावन्त नर्तकी  को ,गणिका बनाकर ,स्त्री के मौलिक अधिकारों का हनन करना चाहते है”आप”

सेनापति राजनायक दक्षांक ,विरोध करने मे खुद का क्रोध न रोक सके”””

आचार्य भी निरुत्तर  हो गये!!

चारों ओर सन्नाटा फैल गया””

स्त्री तो सदा बलिदान  देती आयी है”

वज्जि नरेश  सिद्धार्थ ,का धीमा स्वर सुनायी दिया””

महाराज  ये सही नही होगा, ,राज नायक दक्षांक   ने प्रतिवाद किया”””

भन्ते””वज्जि राज्य आज समाप्त होने के कगार पर है”””

पुरी के अस्तित्व को बनाऐ रखने के लिए “राजनर्तकी को ये बलिदान देना होगा”मै असहाय हूं ,अन्य कोई उपाय नही है”

जनपद कल्याणी के अधिकार परिषद  तय कर सकती है”

मै इस प्रस्ताव के पक्ष मे नही हूं महाराज “

राजनायक दक्षांक  दृढ और पीडायुक्त  भाव से बोला”

कही ऐसा न हो ,स्त्री के साथ  ये अनैतिकता  कही एक और महाभारत का मौन आमंत्रण तो नही”

आज की व्यावस्था कही कल की प्रथा न बन जाय””‘मै इस अनैतिकता  का भागी नही बन सकता “”

राज्य के प्रति निष्ठा और समार्पण  यथा बनी रहेगी”

परन्तु सेनापति पद से त्याग पत्र देता हूं!

इतना कहकर सेनपति दक्षांक  ,तलवार महाराज के चरणों में समार्पित कर  सभागार से बाहर चला गया!

भीतर से विदिर्ण हो रहा राजनायक  धैर्य रखे आगे बढ रहा था!

नेत्रों मे क्रोध और चेहरे पर पश्चाताप  का भार था!

राजनायक दक्षांक को, आचार्य और  वज्जिनरेश से ऐसी आशा न थी””

*

गणिका  के कल्याणी  संघ मे शामिल होते ही,युवाओं का बागीपन स्थिर  हो गया””आशा अनरूप अराजकता समाप्त हो चुकी थी””‘कुछ ही दिनों में पुरी””” विलासता मे लिप्त हो चुकी,

राजनायक का मन क्षुब्ध था,

एक रात वो गंण्डक नदी जहा से झरने मे विभक्त होती है,

वही सिर झुकाऐ  बैठा, नदी की धार को तटस्थ देख रहा था,

उम्र  चालीस के आसपास ,पद से त्याग-पत्र दिये, एक वर्ष पूर्ण हो चुका  था!!

तभी राजनायक के कानों घुघरू की आवाज ने दस्तक दी””

राजनायक ने पलटकर देखा””

राजनर्तकी “”” उसकी ओर ही चली आ रही थी”

प्रणाम भन्ते””

आप यहां और इस वक्त “

भन्ते  इस समय आपसे विश्वास पात्र  पुरी में कोई नही है,आपसे सहयोग की अपेक्षा है”

हा हा बोलो देवी  मैने अपना पद छोड दिया फिर भी राज्य के प्रति पूर्णनिष्ठावान हूं””

आपसे यही आशा थी प्रिये भन्ते””

आपसे एक राज रखने की अनुमति चाहती हूं””

कैसा राज चौंक उठे राजनायक “”

ये  शिशु  राजवंश रक्त का है ,नगरवधू  ने ओढ रखी दुशाला हटा दी””

ओह ,,जिसका मुझे भय था वही हुआ “”आखिर एक निर्दोष का जीवन इस  घटिया प्रथा के चलते  भस्म हो गया!

नही राजनायक, ये सत्य नही है””” जीवन भेट चढा जरूर है,

पर ,मेरा ये अंश अभी तक ,”””समय का अभाव है,राजनायक, जीवन रहा तो,सत्य जरूर बताऊंगी “””

मै नही चाहती मेरी पुत्री भी वैश्या   बने”‘

ये तो राजद्रोह होगा  देवी””दक्षांक तटस्थता  से बोला””

राजनायक  मेरे पास कोई चारा नही है इसे त्यागने के सिवा “”

बेबसी छलक रही थी!  राजनृतकी के मुख पर””

मै क्षमाप्रार्थी  हूं देवी””

राजनायक ने नजरें झुका दी”‘”

राजनृतकी  जिस तरफ से आयी थी उसी तरफ वापस चली गयी””

चांद की किरणें झील के पानी से अठखेलियां  कर रही थी”

पर राजनायक के चेहरे पर चिंता की लकीरें थी”

जिसकी   सहयता मे पूरा दिन बीता दिया था”अब उसकी सहायता न कर पाने का क्षोभ था!

परन्तु  विद्रोही बनने का साहस भी नही जुटा पा रहे था!

वो अभी विचार मंथन  मे डूब  रहे था की “””

छपाक, पानी में जैसे कोई भारी वस्तु गिरी”” दक्षांक  को जैसे अहसास  हुआ  वो उठ खडे हुऐ””

देव””‘वो आवाज की दिशा मे भागे””

रात्रि का आखिरी पहर””सुबह होने को थी””

राजनृतकी  ने अंतिम सांस ली”‘

राजनायक  को शिशु का ख्याल”””आया”

दक्षांक,  ने राजनृतकी को अंतिम विदाई  दी”””

राजनायक दक्षांक की मानसिक स्थिति,  काफी हद तक शून्य हो चुकी थी,अचानक ही इतना कुछ घटित हो गया था! की विचार शून्य हो गये!!

सूर्योदय  के पहले नवजात के पीछे पीछे  झरने के   नीचे तट पर  वो कब आ पहुंचा  उसे पता न चला “

कितनी बार उस टोकरी को काल के गाल मे समाकर वापस तैर जाना मां गंगा का आशीर्वाद  ही था!

शायद राजनायक की  पूजापाठ से ही निसंतान     को गंगा मैया ने अशीर्वाद स्वरूप शिशु प्रदान किया था”

शिशु का इतनी विपादाओं से जीवित बच पना संयोग मात्र था!!

मनोदशा व्यथित होने के बावजूद  ,भी दक्षांक के पास उस शिशु का पहुंचना, नियति का बहुत बडा प्रबंध था!!

गण्डंक नदी के किनारे, ,दक्षांक उस शिशु को गोद मे लिऐ”बीते कल से आज मे खडा था!

उस कन्या के जन्म के साथ ही एक नये परिषद का निर्माण हुआ संसार का पहला लोकतांत्रिक गणराज्य बना””

जिसमें विदेह ,वज्जी ज्ञातुक, लिच्छवी  जाति की बहुलता  थी”

जिसे वज्जिसंघ कहा गया!!!

टप टप ,,घोडे के टाप की आवाज राजनायक के कानों मे पडी,,

उनकी तन्द्रा टूटी””

उन्होने  अधमुदी आंखों से देखा, उनकी  पुत्री  युवा हर्षदेव  के साथ घोडे पर बैठी उन्ही की ओर आ रही थी!!

घोडे के नजदीक आते ही ,दक्षांक  उठ खडे हुऐ”””

वो युवक  घोडे को ऐड मारकर नीचे उतरा, ,

“” आप निश्चित  रहिऐ ,वैद्य  ने पुडिया खिला दी है ताप अब कम है”””आप चिन्ता न करे , आदित्य के अशीर्वाद  से प्रात: स्वस्थ  हो जाऐगी””

दक्षांक को ,हर्षदेव की आवाज कुछ बदली सी लगी””””

उसने इस बात पर ध्यान न दिया!

घोडे से अम्बा को उतारकर कंधे पर डालते हुए  युवक  बोला “”

युवक के आगे बढते ही दूसरे युवक ने लगाम थाम ली””

अब चले”””

हा””

दक्षांक को इस भवन मे आये बाराह वर्ष गुजर गये थे!

सबकुछ पहले जैसा ही था “

वही कीमती पत्थर वही सजोसज्जा, बस पर्दे कालीन और बदलने लायक कुछ चीजे बदल दी गयी थी””

सबसे बडा बदलाव ,वहां पहले जैसी रौनक नही थी””

इतने बडे भवन मे सन्नाटा खाने को दौड रहा था””

वो नवयुवक  तेजी से गलियारा  पार कर एक कक्ष की ओर बढ  गया””

ठहरो आप जनाना  कक्ष मे नही प्रवेश कर सकते,एक दासी ने दक्षांक को रोका “”

वो मेरी पुत्री है,,,राजनायक  ठिठकते हुऐ बोला “

उन्हें आने दो””

युवक पीछे मुडकर बोला “”

दासी एक किनारे चली गयी”””

कक्ष   के अंदर मद्धिम रोशनी  बिखरी थी”””

छोटे छोटे लैम्प  की रौशनी  नन्हे नन्हे  तारों  का अहसास दिला रही थी,नक्काशीदार  छत के बीच लगा  बडा झूमर, जगमगा रहा था!

युवक ने एक रस्सी खीची ,तो झूमर की रौशनी बढ गयी,उस रौशनी से कक्ष जगमगा उठा “”

युवक ने अमरा को शैय्या पर सुला दिया ,अमरा  के काले घने लम्बे  बाल उसके मुखाकृति को ढके हुए थे””

अभी तक उस युवक ने अमरा का  मुख भी न देखा  था!!

दक्षांक पुत्री को ध्यान   से देख रहा था””

उसे पछतावा  हुआ  की अपनी जिद मे उसने अपनी पुत्री का  ध्यान   न रख सका,,

कुछ अश्रु की बूदे उसकी आंखो से ढुलककर ,नीचे बिछे कालीन में छुप गयी!

युवक पलटा तो,सीधे,झूमर की रौशनी उसके मुख पर पडी”

अकस्मात, राजनायक की दृष्टि, उसपर पडी,,वो चौंक उठा”

तुम ,,,,उसे ,नटराज शिवालय की सारी घटनाऐं याद आ गयी”

वो कुछ बोलता, उससे पहले,उसे ब्राम्हण  दिवाकर,   की बात याद आ गयी”””

हर्षदेव   अब भी तटस्थ था””जैसे उसे कुछ फर्क ही न पडा हो””

अगला भाग

देवकन्या (भाग-7) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

रीमा महेंद्र ठाकुर “वरिष्ठ लेखिका”

द्धारा लिखित, (अनुपम-कृति)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!