उमेश जी और विनीता जी पति-पत्नी में माँ को लेकर एक बार फिर से लड़ाई हो रही है।
उमेश जी -” विनीता! माँ की तबीयत खराब है।मैं कल माँ को लेने गाँव जा रहा हूँ।”
विनीता जी तमकते हुए-” देखो जी!अब मैं भी कोई नई-नवेली दुल्हन नहीं रही कि आपकी और आपकी माँ की कटु बातें सुनती रहूँगी। माँ जी ने मेरे साथ कितने दुर्व्यवहार किए! और आप खामोशी से सब देखते -सुनते रहें,सभी बातें मुझे अभी भी याद हैं!”
उमेश जी -” विनीता!मैंने तो सदैव तुम्हारा साथ दिया है।हमेशा क्यों पुरानी बातें याद कर गड़े मुर्दें उखाड़ती रहती हो?अब तो उन पर मिट्टी डाल दो।”
विनीता जी व्यंग्य से -” पतिदेव! पुरानी बातें भूल जाओ, कहना आसान है,परन्तु जिस पर यह बीती है,उसके दिल में उन जख्मों के निशान अभी भी हरे हैं! क्या मुझे याद नहीं है कि चारों बेटियों के जन्म के बाद हर बार माँ जी मुझे कैसे कोसा करती थीं?जैसे बेटियों को जन्म देकर मैंने कोई बड़ा अनर्थ कर दिया हो!”
उमेश जी -” विनीता!मैंने तो तुम्हें कभी कुछ नहीं कहा।माँ के उग्र स्वभाव को भी मैं नहीं नकारता हूँ,परन्तु 92वें साल की उम्र में माँ बीमार गाँव में अकेली रहें,तुम्हीं बताओ क्या यह उचित है?”
विनीता जी -“अपने छोटे भाई को बोलो कि वह माँ जी को अपने पास ले जाएँ।माँ जी को देखते ही मुझे पुरानी बातें याद आ जाती हैं।बेटियों के जन्म के समय घी और दूध की बात तो दूर,माँ जी मुझे भरपेट खाना तक नहीं देती थीं।हमेशा मेरी बेटियों को कोसते हुए कहती थीं कि तुमने खानदान का एक वारिस न पैदा कर बेटियों की फौज खड़ी कर दी।माँ जी की बातें सोचकर आज भी मेरा मन कसैला हो उठता है।”
उमेश जी -” विनीता!अगर हम जब-तब गड़े मुर्दें उखाड़ते रहेंगे,तो अपने कर्त्तव्य-पथ से विमुख हो जाऐंगे।कल ही चचेरे भाई ने फोन पर माँ की खराब तबीयत की खबर दी है।माँ को नहीं लाने से समाज में बेइज्जती अलग होगी और मैं भी खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊँगा!”
विनीता -” पतिदेव!आपके छोटे भाई का भी तो माँ के प्रति कुछ फर्ज बनता है,उसे बोलो कि माँ को अपने पास रखें।”
उमेश जी -” विनीता!अगर छोटा बेटा माँ को अपने पास नहीं रखना चाहता है,तो बड़ा बेटा होने के नाते माँ को अपने पास रखना मेरा कर्त्तव्य है!”
विनीता -” आपकी माँ को अपने पास रखने से मुझे कोई एतराज नहीं है,परन्तु पहली बात कि आज भी वे जब-तब मुझे गालियाँ देती हैं,जो अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है।दूसरी बात अब मेरी भी उम्र साठ के पार हो गई है,अब मैं उनकी सेवा नहीं कर पाऊँगी।”
उमेश जी पत्नी का हाथ पकड़कर-“देखो विनीता!जिन्दगी के अच्छे और बुरे वक्त में तुमने हमेशा मेरा साथ दिया है।अब माँ कितने दिन और जीवित रहेंगी?अंत समय में मुझे पुत्र-धर्म से मत रोको।जहाँ तक सेवा करने की बात है,तो माँ के सारे काम मैं खुद करूँगा।”
विनीता जी कुछ नर्म पड़ते हुए -” पतिदेव!जब आप दफ्तर के काम से टूर पर जाऐंगे,तो माँ जी का काम कौन करेगा?”
उमेश जी मुस्कराते हुए -” विनीता!बस उन दिनों तुम माँ को सँभाल लेना।मेरी इज्जत रख लो ।”
विनीता जी -” आखिरकार!आपने अपनी बात मनवा ही लीं! कल ही गाँव जाकर माँ जी को ले आओ।”
उमेश जी खुशी से पत्नी को गले लगाते हुए कहते हैं -“विनीता!तुमने मेरी इज्जत रख ली।मुझे तुझपर गर्व है।”
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)