“जरी जरी मेरी साड़ी सलमा सितारा जरी
सड़िया पहन मैं छत पर गई थी
गरी गरी मेरी साडी़ सजना के दिल में गडी़। “
झूमर गाती महिलाएं … रमा को अपना पति यश याद आ गया।
ढोलक पर थाप देती ललनाओं की मंडली… गाने के धुन पर नाचती… बहु बेटियां… संपूर्ण घर आँगन में विवाहोत्सव का खुशनुमा माहौल उल्लास अपनेपन से सराबोर था ।
आज ही रमा छोटी बहन की शादी में शरीक होने आई है।
“कैसी मुरझा गई है बिटिया… दामादजी नहीं आये। “मां ने पूछा।
“उन्हें छुट्टी नहीं मिली “रमा लापरवाही से बोली।
मायके वालों को समझते देर नहीं लगी कि उनकी नकचढी खूबसूरत स्वार्थी बिटिया अपने सामने उच्च शिक्षित देश का सर्वोच्च प्रतियोगी परीक्षा पास कर जिम्मेदार सरकारी पदाधिकारी किंतु साधारण रुप रंग और आर्थिक
हैसियत वाले पति को रत्ती भर भाव नहीं देती।
दो-तीन दिन इधर-उधर में बीत गये। सभी शादी की तैयारी में व्यस्त थे। अम्मा ,पापा,भाई एवं सभी परिजनों का पूरी तरह फोकस छोटी बहन शीलू के विवाह की तैयारी में था… कोई कमी न रह जाये और मधुर स्वभाव की
छोटी बहन शीलू का …विवाह ही था।
इससे पूर्व जब भी रमा मायके आती सभी के आकर्षण का केंद्र रहती। शिकायती असंतुष्ट स्वभाव की रमा पति, सास-ससुर, ननद देवर की अवगुणों का बखान करती और अम्मा उसे समझाने का पूरा प्रयास करती… लेकिन
रमा को संतुष्ट करना इतना आसान नहीं था।
“किसके पल्ले बांध दिया… सिर्फ काम से मतलब है… न मुझे घुमाना… न कहीं ले जाना। “रमा नाराजगी जाहिर करती।
“क्यों पिछले ही महीने यश तुम्हें अपने माता-पिता के पास दूसरे शहर लेकर गया था न। “अम्मा हैरान।
“उसे तुमलोग घुमना-फिरना कहते हो… दो कमरों का फ्लैट मुर्गी का दड़बा …उसमें उसका पढांकू भाई जिसे अपने कैरियर के आगे कुछ नहीं सूझता…छोटी ननद कॉलेज, पढाई और अपनी माँ के साथ किचेन में… बनाना
खिलाना… और ससुर जी चुपचाप निर्विकार अखबार में आंख गडा़ये… समय पर भोजन, चाय मिलती रहे। “रमा का गुस्सा फूट पडा़।
“अच्छा चलो… माॅल चलते हैं ,तुम्हें जो लेना है ले लो। “
रमा को बहलाने का उपाय मां जानती थी।
यही रमा अपनी ही छोटी बहन के विवाह में उपेक्षित महसूस कर रही थी।
“रमा तुम भी तैयार होकर रस्मों में शरीक हो जाओ, कल बारात आने वाली है “रिश्ते की मौसी ने टोका।
सजी-धजी सुहागिनों को देख… रमा भी एक कामदार लहंगा ,जेवर… पहनकर आ गई। सभी के साथ नाचते गाते रस्में निभाते रमा का मन हल्का हो गया !
वैवाहिक रस्मों में दांपत्य प्रेम ,छेड़ छाड़ सुनते हुये रमा को अपने पति का सांवला सलोना मुखड़ा याद आ गया।
“रमा, रमा “कहता आगे पीछे घुमते पति को वह कैसे झिड़क देती है…जरा सा भी उसको भाव नहीं देती थी।
यहाँ उपस्थित… सभी को जोड़े में देख रमा को अखर गया। इस हल्के फुल्के वातावरण में सभी मस्त है। किसी को अपने पति या पत्नी से गिला-शिकवा नहीं है।
“अरे भागवान कहाँ हो “पति के एक पुकार पर इतराती पत्नी हाजिर और एक वह है अपनी ही बहन की शादी में पति को अनदेखी कर रही है।
“जीजा जी कहाँ हैं रमा दी “शीलू की सहेलियों ने पूछा।
“उन्हें छुट्टी नहीं मिली “रमा ने टालना चाहा।
“हां, सरकारी अफसर को भला अवकाश कहाँ “दुसरी बोली।
“मैं आई हूं न “रमा हार मारनेवालों में से नहीं थी।
“जीजा जी आते तब ज्यादा मजा आता “कह भाग खडी़ हुई।
रमा सोच में पड़़ गई, ” मैं भी छुट्टी के लिए आवेदन दे देता हूँ… आखिर साली की शादी है “पति ने हंसकर कहा था।
“जाने की आवश्यकता ही क्या है “रमा की रुखाई से यश का चेहरा फीका पड़ गया।
रमा हमेशा की तरह अकेली मायके आ गई …जैसे यश का कोई महत्व नहीं है उसकी जिंदगी में। लेकिन इस बार घर में शादी थी और बिना पति के उसको तवज्जो नहीं मिल रही थी।
” रमा तुम्हारे ससुराल से कोई नहीं आया नेवता लेकर… तुम्हारे पति भी नहीं “रिश्तेदार अंगुली उठाने लगे।
“ऐसा है कि उनका पद जिम्मेदारी वाला है इसलिए छुट्टी नहीं मिली…! “रमा का रटा-रटाया जबाब हाजिर रहता।
“अरे, अपनी शाली की शादी है और सास-ससुर… उनकी क्या मजबूरी है “लोग पूछते।
मन में आता कह दे ” मैं नहीं चाहती कि वे आवें… मैं अपने सामने ससुराल वालों को जरा भी भाव नहीं देती” लेकिन बुदबुदा कर रह जाती।
अपने माता-पिता भाई-बहन इस विषय पर कुछ नहीं बोलते… कयोंकि वे जानते थे कि इस झूठे गुरुर वाली रमा को कुछ दुनियादारी समझाना… पत्थर पर सिर मारने के बराबर है।
रमा चाहकर भी शादी-विवाह के घर में… सभी रिश्ते दारों के बीच वैसे चहक नहीं रही थी जैसा वह मन ही मन ठानकर आई थी”मेरी छोटी बहन की शादी है… अकेली खूब मजा करुंगी। “
किंतु यहाँ रस्मों में भी सभी दामादजी अर्थात रमा के पति की उपस्थिति चाहते… रमा भी भीतर से एक सूनापन अभाव सा महसूस कर रही थी।
अब किसे दोष दे… इस अप्रिय स्थिति के लिए वह स्वयं जिम्मेदार थी। खिसियानी बिल्ली सी कभी इधर कभी उधर… लेकिन दिल कहीं लग नहीं रहा था।
वह जबरन होठों पर मुस्कान लिये छोटी बहन शीलू के ससुराल से आये सामान को उलट-पुलट कर रही थी। ठीक उसी समय हंसने बोलने की आवाज़ पर पीछे देखा।
उसकी माँ उसके सास को गले लगा रही थी। रमा का पति अपने माता-पिता, भाई-बहन के साथ शादी का सगुन उपहार लेकर खड़े थे।
“अरे आपलोग…कब आये और किसके निमंत्रण पर ? “रमा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं।
मुरझाया चेहरा खिल उठा। पति की प्यार भरी नजर… न शिकवा न शिकायत।
“रमा सब सामान देख लो… और हां यह तुम्हारे लिये… एक कीमती गोटेदार बनारसी साडी़, श्रृंगार का सामान सासुमां ने उसे थमाया। “
” बहुत सुंदर साडी़ है “पहली बार तारीफ सुन. ..सभी उसकी ओर देखने लगे।
उसने स्नेह पूर्वक ससुराल वालों की ओर देखा…. आज पहली बार उसे सासुमां का रोबदार चेहरा लाल बिंदी पसंद आया। ननद भी गुलाबी सूट में कितनी प्यारी लग रही थी… और देवर सभ्य और सुशील… छोटे भाई जैसा…
रमा के हृदय से संपूर्ण हीन भावना तिरोहित हो गया।
….और प्यारा पिया… जिसके साधारण रंग रुप मर्यादित आचरण से उसे चिढ़ होती थी… वह आज इतना आकर्षक अपना लग रहा था कि रमा अपने आप को रोक नहीं पाई …उनके निकट जाने से।
उन लोगों के आवभगत में लग गयी। चहक-चहक कर बहन के विवाह की तैयारियों का वर्णन करने लगी…।
रमा के बदले स्वरुप को देख माता-पिता, सास-ससुर और यश ने चैन की सांस ली। #बिखरे टूटते रिश्ते को संजीवनी मिल गई थी।
शीलू के सत्पदी के फेरों और सात वचनों को रमा भी ध्यान से सुन रही थी। यह पाणिग्रहण है. ..गुड्डे गुड्डियों का खेल नहीं। सिर्फ दुल्हा दुल्हन ही नहीं बल्कि दो परिवारों, दो आत्माओं, संस्कृति, संस्कारों का भी मेल है। यह
रिश्ता निभाने का है… बात-बात पर तोड़ने का नहीं… और वह नादान यश जैसे चरित्रवान प्रतिभाशाली समर्पित पति का कभी भी मान-सम्मान नही करती … अपनी खोखली दंभ… शारीरिक सुंदरता पर घमंड से फूली रहती
है।
रमा का भावुक हृदय समझ चुका था… यह सात जनमों का बंधन है कोई खिलवाड़ नहीं… चुटकी भर सिंदुर का महत्व अनमोल है …और यश के जैसा गुणवान पति और सुलझा समझदार परिवार किस्मत वालों को मिलता
है।
वैवाहिक कार्य संपन्न होने पर रमा की मां बोली ,”कुछ दिन ठहर जाओ रमा, यश को जाने दो… शीलू की बिदाई के बाद हम अकेले हो गये हैं ,तुम बाद में जाना। “
“मां मैं वीडियो काल करती रहूंगी… अभी जाने दो”!
रमा का बदला स्वरुप अपने दायित्व के प्रति सजगता… दोनों पक्षों को खुशी दे गया !
“पहले ही काफी देर हो चुकी है “मन ही मन बोलती रमा पति परिवार के साथ सहर्ष अपने घर चली।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®
#विषय -टूटते रिश्ते