भैय्या मैंने आपका सूटकेस ऊपर के कमरे में रख दिया है,आप और भाभी वही आराम करना।
अरे ठीक है अन्नू,अपना घर है,कही भी कैसे भी रहे,क्या फर्क पड़ता है।बाबूजी के जाने के बाद उनकी याद तो यहां आकर आती ही है, पर अन्नू तेरा प्यार और सम्मान पाकर यहाँ अपनापन लगता है।
बंसीधर जी के दो बेटे थे,आकाश तथा छोटा बेटा अनुज जिसे सब अन्नू ही कहते थे और एक मंझली बेटी थी शांता।गांव में रहते हुए भी बंसीधर जी ने अपने तीनो बच्चो को शिक्षा दिलाने में कोई कौर कसर अपनी ओर से नही छोड़ी।बिटिया शांता ने ग्रेजुएट कर लिया
तभी एक अच्छा रिश्ता मिल गया तो बंसीधर जी ने तुरंत ही शांता के हाथ पीले कर दिये।आकाश बड़ा था और उसकी पढ़ाई लिखाई में रुचि भी थी सो उसने बिजिनेस मैनेजमेंट कोर्स के लिये दाखिला ले लिया।छोटे अन्नू की पढ़ाई में अधिक रुचि रही नही,
मुश्किल से तृतीय श्रेणी में बी.ए. ही कर पाया,सो बंसीधर जी ने उसे अपने साथ गावँ में ही खेती और दुकान की देखभाल में लगा लिया।बंसीधर जी अब संतुष्ट जीवन जी रहे थे।ये अच्छा रहा कि अन्नू अपने पिता का सहयोगी रहा और खेती
तथा दुकानदारी में उसकी दिलचस्पी रही।दोनो भाइयों में परस्पर खूब स्नेह भी था,इससे बंसीधर जी आत्मिक शांति का अनुभव करते थे।आकाश के, अपने गावँ में वर्ष में एक दो चक्कर अवश्य लग जाते थे।असल मे आकाश को अपनी जन्म भूमि से स्नेह भी था तथा यहां आकर उसे अपने बचपन के मित्रों से मिलकर अच्छा लगता था।यही कारण था दोनो भाइयों का जुड़ाव बना हुआ था।
आकाश एक अच्छे जॉब में था,उसे किसी चीज की कमी नही थी,सो बंसीधर जी के मन मस्तिष्क में अपनी जो भी संपत्ति थी उसके बटवारे के विषय मे कभी सोचा ही नही।शायद उनके मन मे रहा होगा,कि अन्नू चूंकि गांव में ही रहा है
और वही उनकी खेती और दुकान को संभाल रहा है,तो वही संभालता रहेगा।दूसरे आकाश ने गावँ की संपत्ति में कभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दिलचस्पी प्रदर्शित की भी नही थी।वह पूरी तरह शहर में स्थापित हो चुका था।बस कभी कभार ही गांव आता था।
बंसीधर जी के गोलोकवासी हो जाने के बाद भी यही व्यवस्था चलती रही।अब आकाश और अन्नू के बच्चे भी बड़े हो गये थे।अन्नू के एक बेटी पिंकी थी जो बड़ी होती आ रही थी,पिंकी से छोटे बेटे पंकज को उसने शहर पढ़ने भेज दिया था।आकाश का बेटा ध्रुव शहर में था ही।अन्नू पिंकी के विवाह की चिंता में था,जिससे एक बड़ी जिम्मेदारी से निवृत्त हो सके।
आकाश का बेटा ध्रुव अपनी पढ़ाई पूरी कर अमेरिका जॉब करने चला गया।रह गये आकाश और उसकी पत्नी अकेले।उन्होंने अपने गांव में ही रहने का निश्चय किया।आकाश का मन वहां लगता भी था।अबकी बार आकाश जब गांव आया तो उसने अपनी इच्छा अन्नू के सामने प्रकट कर दी,साथ ही बता दिया कि वह
घर के ऊपरी हिस्से में ही रह लेगा।अन्नू ने सहर्ष ही कहा भैय्या आपका घर है, जहां चाहे वहाँ रहे।आपके यहाँ आने से तो घर मे रौनक आ जायेगी।
शाम के समय आकाश गांव के अपने साथियों से गपशप करके वापस घर आया तो उसे अन्नू और उसकी पत्नी का वार्तालाप सुनाई पड़ा।अन्नू की पत्नी कह रही थी कि बड़े भाई साहब जब अब गांव में रहने आ गये हैं तो अब जमीन और दुकान में से उनका हिस्सा भी तो देना पड़ेगा।
उनका हक भी है।पर अब आगे कैसे होगा? पंकज की पढ़ाई का खर्च और पिंकी का ब्याह,कैसे होगा जी?गांव में इतनी आमदनी थोड़े ही है। अन्नू उत्तर दे रहा था,भागवान सब ईश्वर ठीक करेगा,जो भी होगा।भैय्या का हिस्सा तो देना ही होगा।
सब सुन और समझ कर आकाश जैसे आसमान से जमीन पर गिरा।उसने तो हिस्से के बारे में सोचा तक न था।अन्नू सोच रहा था,आगे चलकर यही सोच रिश्ते के टूटने का कारण बनेंगे।आज सोच सकारात्मक रूप में तो है, पर अन्नू के लिये कष्टकारी है,
भविष्य में यही तनाव का कारण होगा।अगले दिन उसने बातचीत में अन्नू को जता भी दिया कि भाई उसके बस में ये खेती वेति करनी नही,तुझे ही संभालना है।पर अन्नू के चेहरे के भाव से उसे खुशी नजर नही आयी।आकाश ने चूंकि जमीन दुकान में कोई रुचि दिखाई ही नही तो ऐसे ही चलता रहा।
एक दिन आकाश ने अन्नू को आवाज देकर अपने पास बुलाया।और पिंकी के लिये उसके द्वारा लड़के देखने की बात बताई,साथ ही बताया कि आज लड़के वाले अपनी पिंकी को देखने आ रहे हैं।अन्नू और उसकी पत्नी सुनकर खुश तो हुए पर साथ ही आशंका प्रकट की
कि भैय्या उनकी डिमांड अधिक तो नहीं।अरे अन्नू उन्हें आने तो दे,अपनी पिंकी को लड़का पसंद आयेगा तब सोचेंगे,इस पर।अन्नू चुप हो गया।
लड़का शहर में अच्छी नौकरी कर रहा था,सबसे अच्छी बात यह थी कि शहर में ही उनका अपना फ्लैट था।पिंकी खुश थी,अन्नू संतुष्ट तो था,पर आशंकित था।पिंकी उन्हे भी पसंद आ गयी थी।आकाश ने गांव के पंडित जी को बुलाकर शादी की तारीख भी निकलवा कर
निश्चित कर दी,दो माह बाद पिंकी की शादी करनी है।अन्नू बोला भैय्या इतनी जल्दी कैसे व्यवस्था होगी? देख अन्नू पिंकी मेरी भी बेटी है।और तू कान खोलकर सुन ले,पिंकी की शादी मैं करूंगा।सब इंतजाम हो जायेगा। फिर हंस कर आकाश बोला अन्नू तू बस अपने और अपनी पत्नी की एक अच्छी सी ड्रेस सिलवा ले।
अवाक सा अन्नू अपने बड़े भाई आकाश को देखता हुआ उसके पैरों में झुकने लगा तो आकाश ने उसे अपने गले से लगा लिया। अन्नू,मैं तेरा भाई हूँ रे,अपने से अलग कभी मत समझना।अन्नू की आंखों से आंसू झर रहे थे,अंदर से झांकती उसकी पत्नी भी अपने पल्लू से आंखे पौछ रही थी और आकाश सोच रहा था,उसने टूटते रिश्ते को बचा लिया है।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित
#टूटते रिश्ते शब्द पर आधारित कहानी: