मजबूत रिश्तों की बुनियाद -नेकराम Moral Stories in Hindi

नेकराम अब तू बड़ा हो गया है मैं चाहती हूं तेरी शादी कर दूं बस कोई सुंदर सी लड़की मिल जाए मां की बात सुनकर पिता बोले नेकराम की शादी तो बचपन में हो चुकी है मेरे मित्र अमर सिंह की बेटी से आज से 20 साल पहले जब नेकराम 2 वर्ष का था तब मैं नौकरी के लिए इंटरव्यू में एक दफ्तर गया खिड़की से फॉर्म लिया तब खिड़की वाला व्यक्ति बोला यह अंतिम फॉर्म था मैंने फॉर्म में अपना नाम लिखा इंटरव्यू की प्रतीक्षा करने लगा तभी मेरा मित्र अमर सिंह आता नजर आया,,
खिड़की पर पहुंचा मगर फॉर्म समाप्त हो चुके थे उसने मुझे देख लिया मेरी बगल में बैठते हुए बोला अगर मुझे यह सरकारी नौकरी नहीं मिली तो घर में क्लेश हो जाएगा मेरी नई-नई शादी हुई है पत्नी मायके जाकर बैठ जाएगी तब मैंने उसे अपना फॉर्म दे दिया अमर सिंह की सरकारी नौकरी लग गई अमर सिंह ने मुझसे वादा किया कि तुमने मेरे बुरे वक्त में मेरा साथ दिया है इसलिए अगर मेरी बेटी हुई तो मैं तुम्हारे बेटे नेकराम से अपनी बेटी की शादी कर दूंगा फिर हम दोनों दोस्त नहीं रिश्तेदार कहलाएंगे —
उन्हीं दिनों 1984 में इंदिरा गांधी को गोली लगने के कारण सारी सरकारी सेवाएं बंद कर दी गई फिर मुझे कहीं भी नौकरी न मिली अमर सिंह को सरकार की तरफ से रहने को मुंबई में एक फ्लैट मिल गया अमर सिंह अपनी बीवी को लेकर मुंबई चला गया आज पूरे 20 वर्ष हो चुके हैं फिर कभी हमारी बातचीत ना हो पाई तब मां गर्म होते हुए पिताजी से बोली,,
तुमने अपनी सरकारी नौकरी अपने मित्र अमर सिंह को दे दी वह तुम्हारा मित्र मुंबई में ऐश की जिंदगी बिता रहा होगा हम यहां गरीबी में दिन काट रहे हैं तब पिता बोले नेकराम इधर आ तू कब से हमारी बातें सुन रहा है तुझे मुंबई जाना होगा और जिस लड़की से तेरी शादी तय हुई है उस लड़की को तुझे मुंबई में ढूंढना होगा तब मैंने कहा
बाबूजी उस लड़की का ना फोटो ना नाम ना उसका पता इतने बड़े मुंबई शहर में मैं अकेला कैसे उसे ढूंढ़ूंगा अगर ढूंढ भी लिया तो वह लोग तो अमीर हो चुके होंगे क्या वह हम गरीबों के घर रिश्ता पक्का करेंगे अगर तुम्हारे मित्र अमर सिंह को दोस्ती रखनी होती रिश्तेदारी रखनी होती तो 20 सालों में एक बार तो दिल्ली जरूर आते —
तभी गली में एक कार रुकने की आवाज आई मां और बाबूजी कार की तरफ लपके उसमें से एक सज्जन निकले पिता ने पहचान लिया ,, अमर सिंह तुम 20 सालों बाद बाबूजी उन्हें घर के भीतर ले आए चाय नाश्ता तैयार हुआ बाबूजी बोले नेकराम अपने होने वाले ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लो मैंने झट पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया उन्होंने चाय की एक चुस्की ली फिर कहा मुंबई जाने के 1 साल बाद हमारे घर बेटी ने जन्म लिया कुछ साल तो मुंबई में पढ़ाई करवाई फिर मैंने उसे विदेश पढ़ने भेज दिया आज दोपहर को वह इंडिया आ रही है लेकिन उसे मालूम नहीं है कि मैंने उसका रिश्ता बचपन में नेकराम से तय कर दिया था —
तुम्हारा बेटा नेकराम तो अनपढ़ है मेरी बेटी इंग्लिश बोलने वाली तुम्हारा बेटा इस पुराने छोटे से मकान में रहता है मेरी बेटी महलों में रहने वाली मेरी बेटी के लिए हजारों रिश्ते लाइन में खड़े हुए हैं तुम्हारे बेटे नेकराम के पास तो कोई ढंग की नौकरी भी नहीं है ऐसी हालत में मैं अपनी बेटी को इस घर की बहू कैसे बना सकता हूं पहले के युग में बचपन के रिश्ते तय होते थे फिर बड़े होकर शादी हो जाती थी किंतु आज माहौल बदल गया है लड़की अपनी पसंद से शादी करती है अगर मैं अपनी बेटी की शादी नेकराम से कर भी दूं तो मेरी बेटी खुश नहीं रहेगी यहां ,,
लेकिन मैं अपना वचन अवश्य निभाऊंगा,,
मेरी शादी उनकी लड़की से हो गई
शादी को 2 वर्ष हो चुके थे घर में एक बेटी ने भी जन्म ले लिया था किंतु मेरी कम पढ़ाई लिखाई की वजह से कई नौकरियां हाथ से निकल चुकी थी उन दिनों दिल्ली में सड़कों पर नई बसे आ चुकी थी भर्ती चालू थी मेरे कई मित्र दसवीं का कागज दिखाकर बस में कंडक्टर बन चुके थे मैं हाथ मलता रह गया बीबी 1 साल की बेटी को मायके ले जाते हुए बोली दुनिया में सबकी नौकरी लग जाती है बस तुम ही घर में पड़े रहते हो मेरी तो किस्मत फूट गई ऐसे बेरोजगार लड़के से शादी करके जाते-जाते बोली जब नौकरी मिल जाए तो मुझे बुला लेना
उस दिन मैंने भी उसे ना रोका रोककर भी क्या करता अपनी बेटी को एक गिलास दूध भी नहीं दे सकता कम से कम नानी के घर मेरी बेटी पेट भर के दूध तो पियेगी वह टैक्सी पकड़ कर चली गई तो मां गर्म हो गई कहने लगी तुझे बिल्कुल भी अक्ल नहीं है नेकराम,, अपने घर की बदनामी करने में तुला हुआ है तेरी बीवी मायके जाकर सबको बताएगी कि नेकराम घर में बेरोजगार बैठा हुआ है और सास ससुर भी बहू का ख्याल नहीं रखते तेरे साथ-साथ हमें भी दो बातें सुनने को मिलेगी ,,
तब मैंने भी कह दिया मेरी एक साल की बेटी यहां भूखी मरे यह तो मुझे भी बर्दाश्त नहीं है आखिर हमारी गरीबी के चक्कर में मेरी बेटी क्यों सजा भुगते पड़ोसियों के कहने पर तुमने हमारा चूल्हा अलग कर दिया बचपन से नौकरी करके तुम्हें पैसे देता रहा मगर तुमने एक रूपया भी ना जोड़ा बस दिखावे की होड़ में हम सबको कंगाल बना डाला मोहल्ले की बहन बेटियों की शादी में कभी कूलर कभी पंखे ,टीवी , अलमारी देकर शान लूटते रहे और जब मेरी बहन की शादी हुई तो मोहल्ले वालों ने एक चम्मच भी ना दी,
बाबूजी बीड़ी सुलगाते हुए बोले शांत नेकराम शांत हो जा मोहल्ले में रहते हैं तो सब कुछ देखना पड़ता है यह बात ठीक है हमने मोहल्ले में जितना दिया उतना लौटकर नहीं आया तो क्या हुआ बेटियों की शादी में सामान देना तो पुण्य का काम होता है तब मैं बोला हम गरीबों ने ही पुण्य का ठेका ले रखा है जिनके पास अच्छी नौकरियां हैं बैंक बैलेंस है उनकी जेब से तो एक रुपया नहीं निकलता शादियों में ठूंस ठूंस कर खाते हैं और व्यवहार के नाम पर ग्यारह रुपए देकर मुंह छिपाकर निकल जाते हैं ,,
हमारी आवाज़ सुनकर पड़ोसी का बेटा छज्जू आ गया सारा मामला समझने के बाद बोला लक्ष्मी नगर में मैं प्रेस का ठिया लगता हूं हमारे सामने एक दवाइयों की एजेंसी है दवाइयां लेकर दिल्ली के मेडिकोज पर देनी होती है नेकराम वही नौकरी कर लेगा दो-चार पैसे कमाएगा तो इसकी बहू भी मायके से लौट आएगी,
अभी बातें खत्म भी ना हुई थी कि एक पुलिस की जीप का सायरन बजता हुआ सुनाई दिया बाबूजी बोले लगता है मोहल्ले में किसी का झगड़ा हो गया है तभी पुलिस आई है,,
तभी कमरे के भीतर एक पुलिस वाला आकर खड़ा हो गया और कहने लगा नेकराम कौन है नेकराम के ऊपर एफआईआर दर्ज हुई है मां और बाबूजी कुछ सोचते कि वह पुलिस वाला मुझे धकेलते हुए जीप तक ले गया थाने पहुंचा तो सास ससुर और बीवी , बेटी को गोद में लिए खड़ी थी एक पुलिस वाले ने फटकार लगाते हुए कहा ,, हां भाई तुम्हारा ही नाम नेकराम है जब अपनी बीवी को दो रोटी नहीं दे सकता तो शादी क्यों की ,, चल मुर्गा बन,, मैं एक घंटे तक थाने में मुर्गा बना रहा,,
तब एक भारी-भरकम आवाज सुनाई पड़ी,, उठ जा,, गए तेरे सास , ससुर मैंने अपने दोनों कान छोड़ते हुए खड़ा हुआ तो टांगे एकदम सुन हो चुकी थी ,, तब पुलिस वाले आपस में बातें करने लगे हमारी भी मजबूरी है जिसकी रिपोर्ट लिखी जाती है उसे थाने में लाना ही पड़ता है सरकार ने भी महिलाओं के लिए बहुत से कानून बना दिए हैं हमें उन कानूनों का पालन करना होता है मारपीट का मामला होता तो केस को कोर्ट में पेश करते मगर हमने मोहल्ले वालों से पता किया है ,,
नेकराम के पास सिर्फ नौकरी नहीं है घर की एक छोटी सी किराने की दुकान है नेकराम उसी में बैठता था कुछ दिन पहले ही मां ने नेकराम का चूल्हा अलग कर दिया तब से मामले ने तूल पकड़ लिया पुलिस वालों ने मुझे छोड़ दिया रात के 12:00 बज चुके थे मां और बाबूजी भाई बहन थाने के बाहर खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे कुछ पड़ोसी भी खड़े थे मैं सबके साथ घर लौट आया,,
रात का एक बज चुका था घर में सब बिस्तर पर लेट गए मुझे नींद ना आई मुझे लगा सारी गलती मेरी है छत पर पंखा लटक रहा था मैं पंखे से लटकने ही वाला था ,, तभी मां के भीतर से आवाज आई नेकराम यह तू क्या करने जा रहा है तुझे जीना है ,जीना होगा तेरी मां ने खून पसीना एक करके तुझे इतना बड़ा किया है यह शरीर तेरा नहीं तेरी मां का दिया हुआ है इस दुनिया में तेरे जैसे लाखों पुरुष बेरोजगारी की इस पीड़ा से गुजर रहे हैं अगर एक-एक करके सब मर जाएंगे तो दुनिया कैसे चलेगी,
सुबह घर के लोग मेरी दूसरी शादी करवाने के लिए राजी हो गए तब मैंने कहा तलाक कोई बड़ी बात नहीं है तलाक होने के बाद दिल्ली में अपना मकान है तो मेरी भी शादी हो जाएगी पत्नी भी जवान है उसकी भी शादी कहीं ना कहीं हो जाएगी मगर हम पति-पत्नी के चक्कर में मैं अपनी 1 साल की बेटी को सजा नहीं दे सकता उसे तो मां और पिता दोनों का प्यार चाहिए
उसी दिन मैं घर छोड़कर चला गया 2 दिन तक सड़कों पर भटकते भटकते मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा भूख के मारे बुरा हाल था ढाबे वाले से काम मांगा फिर वहां 6 महीने बर्तन मांजता रहा ,,
वहां मेरी दोस्ती नेपाली लड़कों से हुई जो तंदूर की रोटियां और सब्जी बनाया करते थे उन्हें नया मोबाइल लेना था इसलिए उन्होंने मुझे अपना पुराना मोबाइल दे दिया और फेसबुक में मेरी फोटो लगा दी ,,
उस दिन बर्तन धोकर में प्लेटफार्म पर आकर आती जाती ट्रेनों को देख रहा था सास ससुर और घरवाली मेरी नन्ही बेटी को गोद में लिए मेरी तरफ आ रहे थे अचानक मेरी भी नजर पड़ी मैं चौंक गया घरवाली कहने लगी फेसबुक में तुम्हारी फोटो देखी और लोकेशन का पता लगाकर हम यहां स्टेशन तक पहुंच गए ससुर ने घरवाली का हाथ मेरे हाथ में थमाते हुए कहा
हमें अपनी भूल का पछतावा है , और तुम्हें भी घर छोड़कर नहीं जाना चाहिए था,, पुरानी बातों पर मिट्टी डालो अब से तुम दोनों नई जिंदगी शुरू करो,,
मैंने सास ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लिया अपनी बेटी को गोद में लेकर अपने बूढ़े माता-पिता के पास वापस घर लौट आया ।।
,, समाप्त ,,
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!