शुभि के बच्चे अब बड़े हो गए थे।बचपन में ननिहाल जाने का जो उत्साह रहता है,समय के साथ-साथ वह कम होता जाता है।समर वैकेशन मतलब ननिहाल होता था पहले।शुभि आज भी सोच रही थी ,काश पहले वाले दिन फिर लौट आते। गर्मी की छुट्टियां पड़ते ही ,बच्चों के कंधे पर रखकर चलाई गई गोली सीधे निशाने पर लगती थी।हफ्ते-दो हफ्ते के लिए मायके जाना हो ही जाता था।
अब बड़े हो गए बच्चों को वैकेशन में नई -नई जगह घूमना पसंद है।उन्हें स्पेस चाहिए अब।एक कूलर में ठूंस-ठूंस कर मामा-मौसी के बच्चों के साथ गर्मी बिताना अब असहनीय हो गया।
शुभि की बेटी इस बार एक महीने की छुट्टी लेकर आई थी।आतें ही शुभि से बोली”मम्मी,मेरे रहते-रहते आप कहीं घूम आइये।दादी को मैं संभाल लूंगी।उज्जैन जाओगी क्या?मौसी के साथ चले जाओ इंदौर से।या हरिद्वार घूम आओ।जहां तुम्हारा मन हो बता दो।मैं रिजर्वेशन करवा दूंगी।”
बेटी ने इतने सारे जगह के नाम गिनवा दिए,कि शुभि खुद भी चकरा गई थी। शुरू से घूमने की शौकीन शुभि तो हमेशा घूमने को तैयार रहती थी। जिम्मेदारियां ऐसी सर पर आईं एक के बाद एक कि कहीं अब जा ही नहीं पाती।बेटी से कहा उसने”मनु,अभी तो मौसी का स्कूल चल रहा होगा।एक दम अकेले तो जा नहीं पाऊंगी अब।देखती हूं,कोई साथ मिल जाए तो।”बेटी ने याद दिलाया”मुझे इसी महीने वापस जाना है, मम्मी।मेरे रहते घूम आतीं तो अच्छा रहता ना।”
शुभि को आज फिर मायके की याद आने लगी।पिछले साल गई थी।अब भाई -भाभी रहतें हैं उस घर में।साल में एक बार जरूर जाती है शुभि।बहुत कुछ बदल गया,इन तीस सालों में।सड़कें पक्की हो गईं,खपड़े के मकान पक्के हो गए,अपनी उम्र के ज्यादातर बच्चे अब पचास पार कर रहे थे।ना मां रहीं ना पापा।
यहां तक कि घर का एक बड़ा सा हिस्सा छोटी बहन की शादी के समय बिक गया।इन सबके बावजूद मायके का मोह नहीं जा पाया। पति-पत्नी,मां-बेटे, भाई-बहन के बीच नि:संदेह अटूट बंधन होता है,वह भी बंधी है। दादा-दादी के इस पुराने घर से शुभि का एक अलग ही बंधन है।
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दीवारों पर दीवाली में रंग-रोगन होने के बावजूद,बचपन की सोंधी महक आती है,इस घर से।चुपचाप बैठक वाले कमरे की चौकी में पड़े-पड़े, अपने जीवन के बिताए हुए सारे पल याद करना बहुत अच्छा लगता है आज भी उसे।सारे तीर्थ बाद में,अपने पुरखों के घर की धूल एक तरफ।आज भी आंसू लुढ़क ही आए शुभि के गालों में।
सुबह कहेगी बेटी से,वहीं का रिजर्वेशन करवा दें।सोचती हुई शुभि को बेटी ने बताया”मम्मी,मैंने आपके कटनी जाने का रिजर्वेशन करवा दिया है।मुझे पता है कि आपको वहीं जाना है।आपसे एक चीज तो मैंने सीखी है ,कि मायका सबसे बड़ा तीर्थ होता है बेटियों के लिए। मम्मी हम अक्सर अब ननिहाल नहीं जा पाते।
हम भाई-बहन एक साथ समय बिता लेतें हैं यहीं।तुम यह नियम कभी मत छोड़ना।चाहे कितनी भी दिक्कत आ जाए ,तुम अपना मायका मत छोड़ना। सुख-दुख आते जाते रहें हैं तुम्हारे जीवन में,पर तुमने अपने मायके से अपना बंधन नहीं तोड़ा कभी।
ससुराल में सब कुछ अच्छी तरह मैनेज कर के भी,तुमने अपने भाई-बहनों को कभी माता-पिता की कमी महसूस नहीं होने दी।तुम कभी संकोच मत करना बोलने में।जाओ ,कुछ दिन घूमकर आओ।अपना घर-आंगन, स्कूल-कॉलेज,नगर-सड़क,चबूतरा-छत सब देख आओ।”
शुभि ने बेटी से सिर्फ इतना ही कहा”इसलिए मैं कहती हूं,कि घर में एक बेटी जरूर होनी चाहिए।अपनी मां के मन की बात बेटी से अच्छा कोई नहीं समझ सकता।”
शुभ्रा बैनर्जी
अटूट बंधन