हर बीमारी का इलाज दवा नहीं होती!- संध्या सिन्हा Moral stories in hindi

आज बहुत थक गई थी … अभी बेड पर लेटी ही थी कि… मोबाइल बज उठा… आज तीनों बालकनी में जाली लगवायी थी इधर दो महीने से कबूतरों ने घोंसला और अंडे देकर परेशान कर रखा था। फ़ाइनली आज जाली वाला जाली लगा ही गया सो सारी बॉलकनी साफ़ करनी पड़ी ख़ुद से… क्योकि मेड़ काम करके  ११ बजे ही जा चुकी थी और जालीवाला  एक बजे आया।

    दो बार  फ़ोन को अनसुना किया पर .. फिर से बजने पर बेमन से फ़ोन उठाया.. अरे! गुप्ता भाभी जी का फ़ोन था। इलाहाबाद में   मैं, गुप्ता भाभी और मिश्रा भाभी एक ही घर में किरायेदार थे। दरअसल उसी किराए के घर में हम ब्याह कर आये थे .. और इन्ही गुप्ता भाभी ने मेरे गौने ( शादी के बाद की एक रस्म) की रस्म और पगफेरा(ये भी शादी के बाद की एक रस्म)  एक बड़ी जेठानी की तरह करवाया था। मैं उन दोनों से बहुत छोटी थी..  गुप्ता भाभी की बेटी  और मेरी छोटी बहन एक ही स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ते थे।

मिश्रा भाभी का बेटा मेरे छोटे भाई का सहपाठी था लेकिन शादी से पहले मैं इन  लोगों से  कभी नहीं मिली थी।पूरे मोहल्ले में  हमारा ये तीनों का  खून का रिश्ता ना होकर भी एक “ #अटूट बंधन “  की मिसाल  था। हम पड़ोसी कम..  #एक अटूट रिश्ते  में (देवरानी-जेठानी )में बंध गये  थे…  जो ईश्वर से अधिक हमारे आपसी प्यार और व्यवहार से बना था। मेरे बच्चे भी सवा महीना बीतते ही इन दोनों के घर  में पले थे मेरा मायका और ससुराल दूसरे शहर में था। बच्चे भी इन दोनों को ही अपना सगा ताऊजी-ताईजी समझते थे। कुछ बरस बाद सबके अपने-अपने ख़ुद के घर बन गये.. गुप्ताजी इलाहाबाद में, मिश्रा जी कानपुर ने और मैं लखनऊ ने बस गये।

   बरसों बीत गये … आज ना गुप्ता भाईसाहब रहे ना मेरे पति.. और ना ही मिश्रा भाभी! पर हमारा  रिश्ता आज भी वैसा ही है।ख़ैर.. मैंने पलट कर फ़ोन किया भाभी को तो पता चला कि..भाभी के बच्चे दानी में गिल्टी है और डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा हैं। गुप्ता भाईसाहब और भाभी के दो बेटियाँ ही है ( एक मुंबई तो एक चेन्नई में रहती हैं, एक बेटा था  जिसकी मृत्यु मेरे शादी के दो साल बाद ही २२ बरस की उम्र में गले के कैंसर से हो गई थी। मेरे बेटे ने ही  उनके दोनों  बेटियों के ब्याह में  तिलक और लावा परछा( शादी की एक रस्म जो बेटी का भाई ही करता हैं) था।

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 मेरा बेटा लंदन में और बेटी अमेरिका में नौकरी करते है और मैं अब यहाँ दिल्ली में ( पति की  मृत्यु के बाद बेटा हमे  अपने  साथ ले आया था.. तब उसकी शादी नहीं हुई थी और नौकरी  की पहली पोस्टिंग यही थी) रहती हूँ  और लखनऊ  के घर का एक भाग बंद कर बाक़ी हिस्सा  किराए पर  दे दिया है।

 ख़ैर… मैं बता रही थी कि.. उनका ऑपरेशन होना  है और कोई भी नहीं है उनके पास.. “सच! एक समय पर ज़िंदगी अकेले ही गुज़ारनी पड़ती हैं।”

 दोनों बेटियों का अपना-अपना घर-परिवार हैं और उनके बच्चे भी दूसरे शहर ने पढ़ते  हैं। ७५ वर्षीय गुप्ता भाभी अपने घर में अकेली रहती गई ऊपर एक फ़ैमिली किराए पर हैं..संम्पन्न है पर उमर और बीमारी .. और अकेलापन.. और अधिक बीमारबना देता हैं।उस पर.. अब यह गिल्टी( कैंसर)..

“ भाभी सब ठीक हो जाएगा.. परेशान मत होइए।”

“ एक हफ़्ते बाद डॉक्टर ऑपरेशन को कह रहे.. ५ दिन अस्पताल ने रहना फिर घाट आकर १५ दिन का” बेड-रेस्ट” कह रहे हैं.. तुम्हीं बताओ कैसे होगा??? “ 

“ रुचि और शुचि को बताया???? क्या कह रही है दोनों…

“ क्या कहेंगी ???यही कि.. यही चली आओ तुम…  हम लोग कैसे आ पायेंगे???”

“ आप परेशान मत होइए भाभी ?? हम और मिश्रा  भाई साहब और उनके बेटा बहू(मिश्रा जी के दो बेटे ही थे।)है ना…”

“अरे कहाँ… मिश्रा जी का भी आँतों का ऑपरेशन हुआ है अभी कुछ हफ़्तों पहले ।”

“ तो मैं आ जाती हूं”

यह सुनते ही  भाभी फ़फक-फफ़क रोने लगी

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“ अरे! रो क्यों रही भाभी???”

“ क्या बताऊँ संध्या..#हर बीमारी का इलाज दवा नहीं होती” इतना बड़ा घर और रहने वाले सिर्फ़ दो लोग…नीचे हम ऊपर किरायेदार विवेक… परिवार लखनऊ में रहता है विवेक का।”

“ कोई ना भाभी…मैं हूँ ना…”

  “ आज बच्चों को समय नहीं है माँ के लिए…माँ ही जाये उनके पास.. अपना घर छोड़ कर.. वो नहीं आ सकते… अरे अम्मा.. तुमने पूरे घर में एयर-कंडीशनर नहीं लगवा हैं..  हम सब…(बेटी-दामाद ) गर्मी नहीं बर्दाश्त कर सकते…बस माँ के मरने का इंतज़ार कर रहे कि…” कब बुढ़िया मरे तो हम अपना -अपना हिस्सा लेकर निश्चित हो जाये।”किसी को भी माँ से मतलब नहीं हैं…दामाद  तो दामाद है बेटियों  ने  भी नहीं पूछा कि..अम्मा तुम कैसे करोगी या तुम्हें लेने आ जाते है ।एक हमारा जमाना था … हम तीनों का आपस में कोई रिश्ता ना

हो कर भी एक #अटूट रिश्ता है और बेटियाँ तो ख़ुद की  जायी हुई हैं… संध्या मेरी बीमारी की वजह भी शायद यही हैं…  कुछ बरसों  पहले एक छोटी सी गिल्टी थी यह … जब  रुचि का बेटा होने वाला था… तुम्हारे  भाईसाहब ने यह कह कर ऑपरेशन तल दिया कि… पहले रुचि की डिलवरी हो जाये… फिर कुछ एकाध बरस बाद फिर से दर्द बढ़ा तो.. शुचि का ब्याह होने वाक् था… फिर दो बरस बाद तुम्हारे भाई साहब ही नहीं रहे… हम जैसों  की # हर बीमारी का इलाज सिर्फ़ दवा नहीं होती… दवा के साथ-साथ  हम लोगों को … अपनों  का साथ और प्यार चाहिए होता हैं… हमारी बीमारी  आधी उसी से कम हो जाती हैं।

तुम तो जानती ही ही संध्या की … तुम्हारे भाई साहब की बीमारी में संजय( भाभी की बहन का बेटा) ने कितनी मदद की थी हमारी… पर सत्यनारायण( रुचि के पति) को लगता था कि… संजय यह सब मेरी प्रॉपर्टी के लालच में कर रहा… उसे कुछ अपशब्द कह दिया था उस समय … तब से उसने हमसे दूरी बना ली।”

मैं सोचने लगी… क्या मेरा यूँ जाना सही होगा?????

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