” क्या बात है बहू, आज बड़ी जल्दी जल्दी हाथ चल रहे हैं। ,, अपनी बहू यामिनी जिसकी शादी को अभी दो महीना ही हुआ था उसे आज रात के खाने की तैयारी शाम को ही करते देख सावित्री जी ने आश्चर्य से पूछा।
” वो मम्मी जी,…. इनका फोन आया था कि आज शाम को हम फिल्म देखने चलेंगे। इसलिए काम थोड़ा जल्दी निपटा रही हूं। सब्जी मैंने बना दी है और आटा भी लगा दिया। आप बस अपने और पापाजी के लिए रोटियां सेंक लीजिएगा। इन्होंने कहा था कि हम डिनर बाहर ही करेंगे। ,, यामिनी थोड़ा शर्माते हुए बोली।
” फिल्म देखने!!!, लेकिन आरव ने मुझे तो कुछ बताया ही नहीं !! ,, सावित्री जी मन ही मन बुदबुदाने लगीं।
बहू की बात सुनकर सावित्री जी को अपनी सहेली तनुजा की कही बात याद आ गई ,” ये बहुएं ना पता नहीं आते ही हमारे बेटों पर क्या जादू कर देती हैं कि बेटा ही पराया हो जाता है। ना कुछ पूछने की जरूरत समझते हैं ना बताने की। बस दोनों मियां – बीवी अपनी मर्जी से सारे काम करते हैं। थोड़ी छूट देते ही बहू हमारे बेटे को हमसे दूर कर देती है।
बड़ी बहू तो बेटे को लेकर अलग हो गई लेकिन छोटे बेटे को तो मैं अपने हाथ में रखती हूं। मजाल जो मुझसे पूछे बिना कोई काम करे। छोटी बहू कितनी भी कोशिश कर ले उसे रिझाने की लेकिन मैं भी उन्हें ज्यादा नजदीक रहने ही नहीं देती। मेरा छोटा बेटा तो बहू के मायके में जाकर एक दिन भी नहीं रूकता। बस साल में एक बार बहू को लिवाने भेजती हूं वो भी दो तीन घंटे के लिए। मुझे तो एक बार ठोकर खाकर अक्ल आ गई है इसलिए तुझे पहले से आगाह कर रही हूं। बेटे को अपने कंट्रोल में रखना । ,,
उस वक्त तो सावित्री जी ने अपनी सहेली की बात मजाक में उड़ा दी लेकिन आज सावित्री जी के जहन में ये बात बार – बार आ रही थी। पहले तो आरव कहीं भी जाने से पहले मुझसे पूछता था लेकिन आज देखो… अपनी बीवी को लेकर घूमने जा रहा है और मुझसे ना पूछा ना बताया।बस अपनी बीवी को फोन कर दिया कि तैयार रहना। जरूर बहू ने ही दबाव डाला होगा नहीं तो मेरा आरव तो ऐसा नहीं था। हर बात मुझसे पूछता था। नहीं … नहीं… मैं अपने बेटे को खुद से दूर नहीं होने दूंगी …।,,
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उधर यामिनी फटाफट काम करके अपने कमरे में तैयार होने गई और इधर सावित्री जी का मन बेचैन था कि कैसे बेटे को खुद से बांध कर रखे। अपने कमरे में सावित्री जी चहल कदमी कर रही थीं। सर में थोड़ा दर्द भी होने लगा था।
तभी दरवाजे की बेल बजी। यामिनी ने जल्दी से दरवाजा खोला। सामने आरव को देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। आरव ने यामिनी को तैयार हुए देखा तो आंखों से इशारा करते हुए कहा ” बहुत सुंदर लग रही हो। “
यामिनी शर्म से और गुलाबी हो गई थी।
बेटे बहू को खुश देखकर आज सावित्री जी को पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लग रहा था। वो अपने कमरे में सर पर पट्टा बांधकर लेट गई। कैलाश जी भी कमरे में अपना उपन्यास पढ़ रहे थे। सावित्री को लेटते देख बोल पड़े, ” क्या हुआ आरव की मां?? कुछ तकलीफ़ है क्या?? ,,
” हां… सर में बहुत दर्द हो रहा है। जी भी घबरा रहा है। ,,
तभी आरव भी कमरे में आ गया। शायद मां को बताने आया था कि वो दोनों बाहर जा रहे हैं। लेकिन मां को यूं लेटा देख पूछने लगा, ” क्या हुआ मां?? आपकी तबियत ठीक नहीं है क्या?? ,,
सावित्री जी कुछ कहतीं इससे पहले कैलाश जी बोल पड़े ,
” अरे बेटा, कुछ नहीं .. लगता है गैस बन गई है तेरी मां के । मैं चूरन दे देता हूं ठीक हो जाएगी। ,,
” आप अपना चूरन अपने पास ही रखिए, मुझे नहीं खाना। तबियत खराब है तो खराब पड़ी रहेगी। कौन सा किसी को मेरी फ़िक्र है। बेटा, तुमलोग जाओ घूमने… हमारा क्या है रोटियां बनाकर खा लेंगे। ,, सावित्री जी खीझते हुए बोलीं और कराहने लगीं।
” नहीं मां, आपकी तबियत ठीक नहीं है तो हम फिर कभी चले जाएंगे । आप आराम कीजिए। ,,
बोलकर आरव बुझे मन से बाहर आ गया। यामिनी भी कमरे के बाहर ही खड़ी थी। आरव का चेहरा देखकर वो समझ गई कि बाहर जाना कैंसिल हो गया है। वो चुपचाप अपने कमरे में जाकर कपड़े बदलने लगी लेकिन उसका मन टूट रहा था।
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सुबह तक सावित्री जी बिल्कुल ठीक थीं क्योंकि दर्द की असली वजह तो बेटे बहू का अकेले बाहर जाना ही था। एक बार तो ठीक था लेकिन जब अक्सर ही सावित्री जी ऐसा करने लगीं तो आरव और यामिनी को अजीब लगने लगा। आरव तो फिर भी अपनी मां की बातों में आ जाता लेकिन यामिनी अब कुछ चिड़चिड़ी रहने लगी थी।
यामिनी के मम्मी पापा की पच्चीसवीं सालगिरह पर उन्होंने यामिनी को सपरिवार न्यौता दिया था। यामिनी का बहुत मन था कि वो और आरव एक दो दिन पहले जाकर सारे काम और व्यवस्था में हाथ बंटाएं लेकिन सावित्री जी ने आरव को साफ मना कर दिया। कहा की फंक्शन वाले दिन हम सब साथ ही चलेंगे। यामिनी को जाना हो तो उसका भाई आकर उसे पहले ले जाए।
यामिनी का मन बहुत टूट रहा था। वो आरव से भी नाराज रहने लगी थी कि वो कुछ बोलता क्यों नहीं। आखिर वो उसकी पत्नी है। उसका भी तो कुछ हक बनता है।
लेकिन सावित्री जी शायद अपनी जीत पर खुश थीं। कुछ दिनों बाद सावित्री जी की मुलाकात फिर अपनी परमप्रिय सहेली तनुजा से हुई। लेकिन इस बार उसका मुरझाया चेहरा देखकर सावित्री जी को हैरानी हुई।
पूछने पर उनकी सहेली बस फफक पड़ी ,” सावित्री, मुझसे मेरे बेटे की हालत देखी नहीं जाती। मैं ही उसकी कसूरवार हूं। मैंने अपने बेटे का घर तोड़ दिया। छोटी बहू छह महीने से मायके जाकर बैठी है… यहां तक कि तलाक का नोटिस भी भेज दिया। मेरा बेटा, बिल्कुल बुत बन गया है। ना हंसता है ना बोलता है। वो मेरे साथ मेरे घर में रहकर भी मुझसे दूर हो गया है। उसकी नफरत और उदासी की वजह मैं ही हूं। काश मैंने बेटा बहू के साथ इतनी सख्ती ना की होती। अपने स्वार्थ में मैंने अपने बच्चों की खुशी छीन ली। ,,
अपनी सहेली की बातें सुनकर सावित्री जी सन्न रह गईं । वो खुद भी तो ऐसा ही कुछ कर रही है।
” नहीं.. नहीं… मैं इस तरह अपने बेटे को मुझसे दूर नहीं होने दूंगी। आखिर बच्चों की खुशी में ही तो माता- पिता की खुशी होती है ….
अपने से बांध कर रखने के चक्कर में कहीं ऐसा ना हो कि मेरा बच्चा मुझसे ही नफरत करने लग जाए !! जिंदगी तो बेटा- बहू को ही साथ गुजारनी है…. मैं क्यों बेवजह उनके बीच क्लेश का कारण बन रही हूं। मेरा बेटा तो मुझसे बहुत प्यार करता था। बहू भी इज्जत करती थी लेकिन मैं ही अपने स्वार्थ में अंधी होकर और दूसरों की बातों में आकर अपना घर तोड़ रही थी । समय रहते मुझे खुद की आदत सुधारनी होगी। ” सावित्री जी मन ही मन संकल्प ले रही थीं।
घर आकर उन्होंने इस बात पर अमल करना भी शुरू कर दिया था । अब उन्होंने बेवजह रोकना -टोकना बंद कर दिया। धीरे धीरे घर का माहौल भी खुशनुमा रहने लगा था। सावित्री जी संतुष्ट थीं कि समय रहते उन्होंने सही फैसला ले लिया नहीं तो पता नहीं क्या होता!!
विचार पुष्प:
कई मांओं को ऐसा लगता है कि कहीं शादी के बाद बेटा उनसे दूर ना हो जाए। लेकिन वो अपना समय शायद भूल जाती हैं जब उन्हें अपने जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती थी। ये तो प्रकृति का नियम है कि परिवार और रिश्ते बढ़ते रहते हैं। जिस तरह दूसरे बच्चे के आने पर पहले बच्चे को लगता है कि उसका प्यार बंट जाएगा वैसा ही कुछ हाल मांओं का बहू आने के बाद भी होता है। लेकिन जिस तरह मां के दिल में अपने हर बच्चे के लिए समान ममता होती है उसी तरह बेटे के मन में भी मां और पत्नी दोनों के लिए स्थान होता है। बस अपना नजरिया बदलने की जरूरत होती है।
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सविता गोयल