बहू इसकी हिफ़ाज़त अब तुम्हारे हाथ – रश्मि प्रकाश: Moral stories in hindi

“ देखना भाभी मेरी शादी पर माँ मुझे वो हार का सेट दे देंगी….. ना जाने कब से मैं माँ को बोल रही हूँ देने को पर वो बस मुस्कुरा कर रह जाती हैं ।” नीति ने अपनी नई नवेली भाभी से कहा जिसे अभी अभी सुनंदा जी एक साड़ी और सेट देकर गई थीं शाम को कुछ अपने करीबी मेहमान आने वाले थे और बहू की मुँह दिखाई होने वाली थी ।

राशि तैयार होने चल दी…….

उधर नीति खुश थी कि चलो माँ ने वो सेट भाभी को नहीं दिया तो मतलब मुझे ही देंगी….

सभी मेहमानों के जाने के बाद सुनंदा जी दो डिब्बे लेकर आई और एक डिब्बा बहू को एक बेटी को देते हुए बोली,“ बहू ये मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए तोहफ़ा…. और नीति ये भाई के ब्याह में तुम्हारे लिए तोहफ़ा ..।”

नीति जल्दी जल्दी अपना तोहफ़ा खोल कर देखने लगी…. उसे उम्मीद थी इसमें माँ शायद वही हार का सेट देगी पर ये क्या इसमें तो नए डिज़ाइन का सेट था ….उसकी नज़र राशि के डिब्बे की ओर गई….

“ बेटा इसमें जो भी है वो हमारे घर की शान और इज़्ज़त है….. यह एक राज की बात है जो मुझे मेरी सास ने बताया….. उन्हें उनकी सास ने और अब मैं तुम्हें बताने जा रही हूँ पर उसके पहले इसे खोल कर तो देखो….!” सुनंदा जी ने प्यार से कहा.

राशि ने जैसे ही वो डिब्बा खोला नीति के चेहरे का रंग उड़ गया….

“ माँ ये तो वो…..ऽऽऽऽ ।” नीति बात पूरी कर पाती उससे पहले सुनंदा जी ने राशि के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा,” बहू ये बस एक हार नहीं है …. इसके पीछे बहुत बड़ा राज है जिसकी वजह से इसे हिफ़ाज़त से रखना बहुत ज़रूरी है….पता है ये हार कोई मामूली हार नहीं है…. माना ये बहुत पुराना है पर बहुत क़ीमती भी है साथ ही ये मेरी दादी सास की बहादुरी का नतीजा भी है…. एक बार गाँव में लुटेरे घुस आए थे……तब दादी सास के पास यही एक इकलौता हार था …. और उन्हें बहुत प्रिय भी…. जब लुटेरे इसे छिनने लगे तो दादी सास ने बहुत हिम्मत दिखाई और पास में रखे सोंटे से जमकर उनकी पिटाई कर उन्हें भगाने में सफल हो गई थी …..उन्हें भी चोट लगी थी पर वो ख़ुश थी वो हार बचा ली….. दादा ससुर बहुत नाराज़ हुए थे उनपर कि ले जाने देती फिर दूसरा बन जाता क्या ज़रूरत थी …. देखो तुम्हें भी चोट लग गई….. तब दादी सास ने कहा था….. ले जाने देती नया भी आ जाता पर क्या बस इस भय से की वो मर्द लुटेरे हैं…..मैं ऐसे कैसे हार मान हार ले जाने देती ….. तब से वो घर में जितनी बहू आई उनके पास आता गया इस बात के साथ कि ये बस एक हार नहीं है दादी सास की बहादुरी का इनाम है जो पीढ़ी दर पीढ़ी घर की बहुओं को ये एहसास करवाता रहे कि वो कमजोर नहीं हैं….. ।”कह सुनंदा जी चुप हो गई.

“ माँ मैं भी इसे सँभाल कर रखूँगी और हमेशा याद रखूँगी मैं औरत हूँ तो क्या कमजोर नहीं हूँ….।” राशि ने सासु माँ से कहा.

“ पर माँ ये हार मुझे चाहिए था…..।” इतनी देर से चुप नीति ने कहा.

“ बेटा तेरे उपर हज़ारों हार वार दूँगी इससे बेहतर दूँगी पर इस घर की परम्परा को तोड़ कर नहीं…जब तू दूजे घर जाएगी…. तब वहाँ की मान मर्यादा का ख़्याल रखना ये तेरी ज़िम्मेदारी होगी….. फ़िलहाल इस बात के लिए हम दोनों को माफ करना….. तेरी माँ हूँ जानती थी तुम्हें वो हार बहुत पसंद है पर नहीं दे सकती बेटा…… कुछ तो मुझे भी ज़िम्मेदारी निभानी है ना….।” सुनंदा जी नीति के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली.

नीति भी अब शादी लायक़ हो चुकी थी जानती थी घर परिवार को चलाना और सबके बीच सामंजस्य रख कर चलना सुनंदा जी से बेहतर कोई कर ही नहीं सकता ….. माँ है ना मेरे लिए भी कुछ अच्छा ही सोचेंगी ।

नीति माँ के गले लग गई और बोली,“ समझ गई माँ …. देखो भाभी सँभाल कर रखना ….. कल को गुम हो गया तो कही ये ना कह दो नीति ने ले लिया होगा…… मुझे अब हार नहीं आपका प्यारा सा साथ चाहिए और कुछ नहीं ।” हँसते हुए कह राशि को गले लगा लिया ….. आख़िर उसके जाने के बाद वही तो है जो इस घर का रौनक बन कर रहेंगी ।

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!