मेरी पहचान घर के काम से है ( भाग 2) -निशा जैन : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : पर आज पार्टी के लिए सुबोध के दोस्तों ने बहुत जोर देकर कहा कि यार एक बार तो भाभी से मुलाकात, जान पहचान कराओ या बस उनके हाथ का खाना खिलाकर ही पेट भरता रहेगा या फिर हम उनसे मिलने लायक ही नहीं…..

नही यार ऐसा कुछ नही, सुहाना को कम ही पसंद है आना जाना सुबोध बोला

अरे तेरी आजादी में खलल नही पड़े इसलिए नहीं लाना चाहता तू … हम सब समझते है 

इसलिए सुबोध को अब सुहाना को मनाना ही पड़ा साथ आने के लिए

सुहाना अपने विचारों में खोई हुई

कब पार्टी स्थल पर पहुंच चुकी थी पता ही नही चला।सुबोध और सुहाना को देख सब बहुत खुश हुए।अरे भाई हमारी जान पहचान भी करवाओ भाभी से सारे दोस्तों की पत्नियां  एक साथ बोली ।

सुबोध  सबसे सुहाना का परिचय करवाने लगा 

ये मिसेज गुप्ता_ डॉक्टर हैं

ये मिसेज शर्मा_ कंप्यूटर इंजीनियर और ये मिसेज आहूजा_ आर्किटेक्ट इंजीनियर तभी मिस्टर आहूजा हंसते हुए  बोले_ मकान के नक्शे  बनाती है भाभी और सब लोग भी हंसने लगे और आप बताइए आप क्या करती हैं? आपकी पहचान किस काम से है?

सुहाना बोली …. जी कुछ नही करती  बस घर संभालती हूं, मैं हाउसवाइफ हूं..मेरी पहचान तो घर के काम से है।

तभी सुबोध बोला अरे  हाउसवाइफ नही ये होममेकर है सर जी

दरअसल…

मेरी श्रीमति जी” मकान को घर बनाती है” इसलिए होम मेकर हुई न। और परिवार वालों के लिए तो ये डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर सबकी भूमिका ही निभाती है। इसलिए हर किसी के लिए इनकी पहचान अलग अलग है।

मैं अपने ऑफिस में जो तरक्की कर पा रहा हूं इसी की बदौलत है । ये अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाती है तो मुझे कोई तनाव लेना ही नही पड़ता। 

मेरे हर सुख दुख की सच्ची साथी है ये 

 

सुबोध के मुंह से अपना परिचय इस प्रकार सुनकर सुहाना अचंभित थी साथ ही बहुत खुश भी।

उसके चेहरे का डर अब धीरे धीरे आत्मविश्वास में बदलने लगा।

और मिसेज शर्मा, गुप्ता और आहूजा भी एक साथ बोली… बिलकुल ठीक कहा भैया आपने सुहाना एक होम मेकर है । हमे पता है घर चलाना कितनी टेढ़ी खीर है। जितना दिमाग हम ऑफिस के काम में लगाती हैं, उतना ही ये गृहिणियां घर चलाने  में लगाती हैं बस हमे दिमाग चलाने के पैसे मिलते हैं और इन्हें नही।

मिसेज गुप्ता आगे बोली … पर हां इन्हे यदि इनके काम के रुपए दिए जाएं तो अच्छी खासी सैलरी बन जाएगी।

और सुहाना तुम हमसे कम नही हो इसलिए ये कहना छोड़ो कि मैं कुछ नही करती…..तुम्हारी पहचान तो सबसे अलग है।

अरे तुम जैसी होममेकर ही तो घर और देश के बजट को सुदृढ़ बनाती हो।।भोजन बनाते हुए तुम न केवल पौष्टिकता देखती हो बल्कि अपना प्यार और विश्वास भी भोजन को स्वादिष्ट बनाने में डाल देती हो। हमारी तो मजबूरी है कि हम नौकरीपेशा हैं इसलिए मेड के हाथों से बना खाना खाना पड़ता है।

सुहाना को उनकी बातों से अच्छा लग रहा था। वो कितना गलत सोच रही थी कि सब नौकरीपेशा हैं तो उनके सामने  उसकी इज्जत कम होगी , उसकी अपनी कोई पहचान नहीं है तो सबके सामने उसे नीचा देखना पड़ेगा बल्कि उसे तो यहां आकर बहुत ही सुखद एहसास हो रहा है जो आज तक किसी ने नहीं कराया उसे ।

सब पुरुष एक साथ बोले … जी काम घर का हो या बाहर का, दोनो ही आत्म निर्भर महिला की पहचान है। इसलिए हमे खुद अपने आप पर गर्व करना आना चाहिए। अपनी पहचान खुद बतानी  आनी चाहिए

सारी औरतों ने मिलकर सभी पुरुषों का ताली बजाकर अभिवादन किया

सुहाना के चेहरे पर एक अलग सा तेज था आज की पार्टी में आने के बाद अब तक वो अपने आपको एक गृहिणी ही मानती थी पर सच में वो एक होम मेकर थी और  आज से उसे भी अपनी पहचान मिल गई थी। वो अपना परिचय एक होम मेकर के तौर पर देगी ये सुबोध ने उसको समझा दिया था। 

दोस्तों एक गृहिणी होकर डर या कमतर महसूस करना जायज नहीं हैं। मेरी मानो तो एक औरत होना ही अपने आप में सबसे बेहतर पहचान  है उसके लिए चाहे वो गृहिणी हो या हाउसवाइफ क्योंकि जितनी शिद्दत से एक औरत घर और बाहर दोनो जगह का काम संभालती है एक पुरुष शायद  नही सम्हाल सकता।

हाउसवाइफ या वर्किंग वुमन दोनों की अपनी अपनी पहचान है।

इन दोनो  में कौन ज्यादा बेहतर है यह उन परिस्थितियों पर निर्भर करता है जिनमे एक औरत दोनों में से किसी एक स्थिति का चुनाव करती है।

कहा जाता है की एक औरत के लिए इसका परिवार पहली प्राथमिकता होता है पर यदि परिवार और नौकरी में सामंजस्य बिठाकर एक औरत वर्किंग वुमन बनकर अपनी पहचान बनाना चाहे तो कोई बुराई नही बल्कि इससे उसके आत्मविश्वास में इजाफा ही होगा पर गृहिणी  बनकर घर चलाकर भी एक औरत की काबिलियत या पहचान को कम नही आंक सकते ये ध्यान देने योग्य है। 

स्वरचित और मौलिक

निशा जैन

दिल्ली

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