“मैडम जी, कोई मल्हार नाम के सज्जन आपसे मिलना चाहते हैं. मैंने उनसे कहा भी कि हमारी मैडम इतनी रात गये किसी से नहीं मिलतीं परन्तु वे यहाँ से जाने को तैयार ही नहीं हैं, कह रहे हैं कि मैडम से बिना मिले नहीं जाऊँगा”
“ठीक है, अन्दर आने दो उन्हें”
कहकर भैरवी ने फ़ोन रख दिया.
उसका हृदय उसी षोडषी कन्या की तरह ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा, जो अपने घर वालों से छुप कर अपने प्रेमी से मिलने जा रही हो.
दरवाज़े पर दस्तक हुई तो भैरवी ने दरवाज़ा खोला. मल्हार और भैरवी दोनों ने एक दूसरे को भरपूर नज़रों से देखा, चुपचाप…एकटक…जैसे सालों के विछोह के बाद आमने सामने होने पर दोनों की नज़रें तृप्त हो जाना चाहती हों. उन पलों में समय वैसे ही ठहर गया जैसे किसी झील का ठहरा हुआ पानी.
मल्हार ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा,
“इतने सालों बाद तुम्हें देख कर मैं कितना ख़ुश हूँ, बता नहीं सकता. मैं तो तुमसे मिलने की उम्मीद ही छोड़ बैठा था…मुझे लगता था कि तुम्हारी शादी हो गई होगी और तुम अपनी गृहस्थी में मस्त मगन होगी. आज पता चला कि तुमने भी मेरी तरह शादी नहीं की, तो डी एम साहिबा, क्या अपने घर के अन्दर नहीं बुलाओगी? हम यूँ ही दरवाज़े पर खड़े खड़े ही बातें करेंगे?”
“रात बहुत हो चुकी है मल्हार, हम कल बात करें?”
भैरवी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.
“परन्तु मुझे तो अभी ही तुमसे ढेर सारी बातें करनी हैं. तुम्हारे साथ अपने भविष्य के सपने सजाने हैं. हम दोनों ने ही इतने सालों तक एक दूसरे का इंतज़ार किया है, अब हमें अपनी ज़िन्दगी एक साथ बिताने पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए भैरवी…सीधे शब्दों में कहूँ तो मैं तुम्हारे समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखना चाहता हूँ, क्यों न हम जल्द से जल्द विवाह बंधन में बँध जाएँ? तुम्हारा क्या ख़याल है? मुझसे विवाह करोगी न?”
मल्हार ने भैरवी की आँखों में झाँकते हुए कहा.
भैरवी ने देखा, बाहर बरामदे में लगे लैम्पपोस्ट की रोशनी में मल्हार की आँखें जुगनू की तरह चमक रही थीं, भोली, निश्छल सी आँखें जिनमें भैरवी के लिए प्रेम छलका पड़ रहा था.
भैरवी ने अपनी नज़रें झुका लीं,
“उम्र के जो वसंत बीत जाएँ, वे दोबारा नहीं लौटा करते मल्हार, यह सच है कि मैंने भी तुम्हें टूट कर चाहा है. अपनी कल्पनाओं की दुनिया में न जाने कितनी बार मैं तुम्हारी दुल्हन बनी हूँ और तुम मेरे प्रियतम…परन्तु जिस संगीत ने हम दोनों को जोड़ा था, वह संगीत ही मेरे भीतर अब सूख चुका है. अब इस पतझड़ के मौसम में बहारें दोबारा नहीं आ पाएँगी, हो सके तो मुझे क्षमा कर देना”
“यह क्या कह रही हो भैरवी? तुम तो ऐसी नहीं थीं…तुम इतनी निष्ठुर कैसे बन सकती हो?”
मल्हार की आवाज़ भावुकता में बह कर लड़खड़ाने लगी.
“निष्ठुर मैं नहीं, हमारी नियति है मल्हार…अब तुम जाओ, मुझे सोना है”
कह कर भैरवी ने दरवाज़ा बंद कर लिया और दरवाज़े पर पीठ टिका कर खड़ी हो गई. उसकी आँखों से गंगा जमुना बह निकली.
भैरवी के मन के भीतर समाई लड़की का मन हुआ कि वह दरवाज़ा खोलकर देखे कि मल्हार वहीं खड़ा है या चला गया? वह दौड़ कर मल्हार के सीने से लग जाए और कहे,
“हाँ मल्हार, मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ…मैं भी तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ, तुम्हारी बाँहों में मरना चाहती हूँ”
परन्तु तुरन्त ही उस प्रेम में पगी हुई लड़की का स्थान ज़िलाधिकारी भैरवी ने ले लिया.
घर में पंडित भीमसेन जोशी की आवाज़ में राग मल्हार गूँज रहा था और भैरवी की आँखों से आँसुओं की बरसात लगातार हो रही थी.
©️®️
अंशु श्री सक्सेना
भैरवी (भाग 5 ) –