Moral stories in hindi : कुसुम चाची का बड़ा सुंदर छोटा सा परिवार था और और उनके पति रेलवे में नौकरी करते थे कुसुम चाची रेलवे के मिले हुए क्वार्टर में रहती थी उसी में मेरी एक सहेली रहती थी कुसुम चाची के पति का बीमारी के चलते निधन हो गया था तो उन्हें अनुकंपा के चलते रेलवे में नौकरी मिली थी
कुसुम चाची के दो बेटे थे मनजीत और मनप्रीत कहने को तो वह यूपी के थे लेकिन बेटों के नाम पंजाबियों जैसे होने के कारण बहुत ही अलग से लगते थे,,,,, दोनों बेटे मेरे ही स्कूल में पढ़ते थे जो मैंने बताया मेरी सहेली उसी कॉलोनी में रहती थी इसलिए मैं उन दोनों को अच्छे से जानती थी दोनों बेटे बड़े दोहरे बदन श्याम वर्ण लेकिन आकर्षक लगते थे,,,
बिल्कुल कृष्ण जैसी छवि लगती थी,, बेटा एक थर्ड में था एक फोर्थ में पढ़ता था लेकिन मेरी सहेली बताती थी कि चाची इन बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रही है इसलिए दोनों बेटे बिगड़ रहे हैं। पढ़ाई में भी ठीक नहीं थे,,,, इसलिए प्रिंसिपल सर कुसुम चाची को प्राय स्कूल में बुलाते रहते थे कुसुम चाची ऑफिस जाते टाइम स्कूल में प्रिंसिपल सर से मिलते हुए जाया करती थी
वह हमेशा जल्दी में रहती थी क्योंकि ऑफिस भी टाइम से पहुंचना होता था नौकरी तो उन्हें अनुकंपा के आधार पर पति की मिल गई थी ,,,लेकिन वह पढ़ी-लिखी नहीं थी,,,, नौकरी मिल गई थी इसलिए सारे खर्चे आसानी से चल रहे थे,,, कुसुम चाची को देखकर ऐसा लगता था कि न जाने वह अपने बच्चों पर कितने पैसे लुटाना चाहती है ।,,
या उन्हें ऐसा लगता था कि मेरे होते हुए बच्चों पर किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए,,, शायद वह पिता की भूमिका निभाना चाहती थी,,, कि बच्चों को ऐसा ना लगे कि उनके पिता नहीं है।,,, दोनों बेटों के पास खुल के खर्च करने के लिए छोटी ही अवस्था से खूब पैसे हुआ करते थे,,, बच्चे मनचाहा सामान खरीदते,,,,
यह भी मान कर चलिए जब जरूरत से ज्यादा पैसे बच्चों को मिलने लगते हैं। तो उनका दुरुपयोग निश्चित ही गलत होने लगेगा,,,, यही बात कुसुम चाची समझ नहीं पा रही थी,,,, कुसुम चाची सुबह 9:00 बजे ऑफिस के लिए निकल जाती बच्चे स्कूल के लिए चले जाते और जब बच्चे घर लौट कर आते उसके तीन से चार घंटा बाद चाची भी ऑफिस से लौट कर घर आ जाती,, इसी बीच बच्चे 3 से 4 घंटे अकेले रहते उन पर कोई ध्यान देने वाला नहीं था,,,,,,
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चाची को अपने पारिवारिक जनों का सहयोग भी प्राप्त नहीं था वह क्वार्टर में अपने बच्चों के साथ अकेली ही रहती थी लेकिन आसपास वाले जब भी शिकायत करते तो चाची कभी भी उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेती बच्चे धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे और गलत संगति में भी जा रहे थे,,,,,
चाची बच्चों की लगाम खींचने में असफल होती जा रही थी,,,, बड़े बेटे में लगभग सारे अवगुण आ चुके थे,,,, चाची जो भी कामाती बच्चों को भी खूब देती और उसी में से पैसे बचाकर अपने लिए जीवन पॉलिसीयां बचत खाता इस तरह से पैसे का संचय भी कहीं ना कहीं कर रही थी,,,,
चाची पढ़ी-लिखी नहीं थी इसलिए सहज किसी पर विश्वास कर लेती थी तो अपने पैसों का खाता खुलवाने और पॉलिसी भरने के लिए उनके पड़ोस में रहने वाले कमल जी पर आंख बंद करके विश्वास करते हुए पोलिसिया भरने का पैसा उन्हें देती रहती थी और वह निस फिक्र थी कि उन्होंने अपने बच्चों के लिए कुछ रकम इकट्ठी कर ली है।,,,, मनजीत तो बुरी तरह से बिगड़ चुका था तो अब चाची को मनजीत की फिक्र सताने लगी,,,,
कि मनजीत को सही रास्ता पर कैसे लाया जाए,,,,, जैसा कि सभी बेटा अगर बिगड़ जाए तो यथाशीघ्र उसका विवाह कर दिया जाए,,,,, तो चाची ने भी ऐसा ही किया,,,, किसी तरह अपने रिश्तेदारों के सहयोग से अपने बेटे मानजीत का एक बड़ी सुंदर सी लड़की से विवाह कर दिया,,,, बहू घर आ गई बड़ी ही सुशील और सुंदर थी और समझदार भी थी,,,,,, चाची अपनी नौकरी निश्चित होकर करने लगी,,,,, बेटे के विवाह के कुछ दिन बाद की ही बात है,,,,,
कि चाची को अचानक दिल का दौरा पड़ गया और चाची दुनिया से विदा हो गई,,,,,, चाची ने बेटे का विवाह तो कर दिया था लेकिन ना तो उसकी उम्र थी ना ही पूरी तरह से परिपक्व था,,,,, एकदम से चाची का चला जाना बेटे के लिए बहुत बड़ा आघात सा था,,,,, बुरी संगत में पहले ही फंसा हुआ था,,,, एकदम से तो छूटने वाली न थी,,,,, दो-चार महीने तो चाची के कुछ पैसों से घर का खर्चा चलाता रहा,,,, लेकिन अब वह पैसे भी खत्म हो चुके थे,,,,,,
जिन पर चाची विश्वास करती थी उनके पड़ोसी कमल ने चाची के साथ बहुत बड़ी जालसाजी की थी,, उनकी दी हुई रकम को कभी भी पॉलिसी में जमा नहीं किया,,, उनका सारा पैसा खुद जप्त कर गए थे तो कोई पॉलिसी भी नहीं मिल पाई कुल मिलाकर चाची के साथ कमल ने फर्जीवाड़ा किया था उनका अनपढ़ होने के नाते फायदा उठाया था,,,,, जिसका बाद में पता चला,,,,, लेकिन अब बेटा मनजीत क्या कर सकता था,,,,,,,
चाची के जाने के बाद भी अभी भी वह रेलवे के क्वार्टर में ही रह रहे थे,,,,, चाची के साथ काम करने वाले कर्मचारी मानजीत के लिए नौकरी की व्यवस्था कर रहे थे,,,, लेकिन 5 ,,6 महीने गुजर चुके थे मनजीत को अनुकंपा के आधार पर नौकरी अभी नहीं मिल पाई थी,,,, पैसे की जबरदस्त तंगी थी,,,,, मनजीत घर का सामान बेच-बेचकर अपने खर्चे पूरे करने लगा,,,,, चाची का बनवाया गया जेवर भी बेचने लगा,,,,,, यह सब करने के लिए उसकी पत्नी मना करती लेकिन उसकी वह बिल्कुल भी ना सुनता,,,,,,,,
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इसका एक छोटा भाई भी था लेकिन बेचारा वह क्या कर सकता था,,,,,,, पति-पत्नी का रोज झगड़ा होता,,,,,,, झगड़े को सुलझाने के लिए उसके ससुराल वाले भी आते लेकिन बेटी को ले जाने में असमर्थ थे कि उन्हें पता था कि अगर बेटी को ले जाएंगे तो यह पूरा घर बर्बाद कर देंगा,,,, और यह भी हो सकता है। मनजीत की पत्नी ने मायके जाने से मना कर दिया हो क्योंकि उसको घर बिगड़ा हुआ दिखाई दे रहा था,,,,,,
इसके काम न करने घर का सामान जेवर बेचने का उसकी पत्नी पुरजोर विरोध करती,,,,,,, सारा सामान घर का मनमीत बेच चुका था,,,,, अब बारी साड़ियों की भी आ चुकी थी जो कुसुम चाची ने बड़े प्यार से अपनी बहू के लिए महंगी महंगी कीमती साड़ियां खरीदी थी उसे वह 100,, 200 रुपए में बेचने लगा अपने नशे को पूरा करने के लिए,,,,,
1 दिन की बात है। मनजीत और उसकी पत्नी में बहुत झगड़ा हुआ और उसकी पत्नी ने खुदकुशी कर ली पंखे से लटक कर फांसी लगा ली,,,,, पुलिस आई जांच पड़ताल की,,,,, मनजीत और उसके भाई को पकड़ कर ले गई,,,,,, अब इन दोनों भाइयों का कोई भी नहीं था जो भी रिश्तेदार होंगे सभी ने पर्याप्त दूरी बना ली,,,,,,,, यह कई महीने जेल में बंद रहे,,,,, क्योंकि पत्नी ने खुदकुशी की थी,,,,,,, इसलिए उसे और उसके भाई को जेल से रिहा कर दिया गया,,,,,,
मनजीत और उसका भाई घर वापस आ गए,,,,,, और वह अब मजदूरी करने के लिए मजबूर थे,,,,,, क्योंकि मां का जुड़ा हुआ सारा पैसा बर्बाद कर दिया मां तो पहले ही चली गई थी,,,,, पत्नी सुधारते सुधारते खुदकुशी करके दुनिया से चली गई घर वीरान हो गया,,,,, इन दोनों बेटों की दुर्दशा देखकर सभी दुखी होते और कहते किसी बात की कमी नहीं थी कुसुम ने अपने दोनों बेटों के संस्कार खराब कर दिए चाची ने ही इन दोनों बेटों को संस्कारहीन बना दिया,,,,,
चाची कभी भी अपने बेटों के प्रति शक्ति से पेश नहीं आई,,,,, मां तो वह पहले से थी ही,,,,, बच्चों को पिता वाली शक्ति दिखाने की जरूरत थी,,,,,, जो चाची अपने बच्चों पर नहीं दिखा पाई,,,,, उन्हें हमेशा लगता रहा इन बच्चों के पिता नहीं है इन्हें किसी बात की कमी ना हो शायद उन्होंने पिता से भी बढ़कर प्यार देने की कोशिश की उसी का नतीजा यह था कि दोनों बच्चे संस्कारहीन हो गए,,,,, कुसुम चाची को इन बच्चों के लिए पिता की भूमिका में आना जरूरी था,,,, जो वह नहीं आ पाई,,,,, नतीजा यह हुआ कि दोनों बेटे संस्कारहीन हो गए,,,,, सारा परिवार बिखर गया घर बर्बाद हो गया बेटे सड़क पर आ गए,,,,,,, कुसुम चाची बच्चों की मां तो बन गई,,,, लेकिन पिता वाली शक्ति दिखने में नाकाम रही,,,
कभी-कभी स्थिति के हिसाब से मां को पिता की भूमिका में आना जरूरी हो जाता है।
प्रतियोगिता हेतु
#संस्कारहीन#
मंजू तिवारी गुड़गांव
स्वलिखित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित