अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 13) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“दीदी, एक बात तो अधूरी ही रह गई।” कैब के घर के समीप आते ही अचानक विनया को कुछ याद आया।

“क्या भाभी।” संपदा विनया की ओर मुड़ती हुई पुछती है।

“आप सुबह किसी बात से परेशान थी और इस कारण माॅं,से भी नाराज दिख रही थी। क्या बात रही दीदी।”” विनया संपदा को सुबह का वाक्य याद दिलाती हुई कहती है।

“कुछ खास नहीं भाभी, हमारे कॉलेज में शकुंतला पर नाटक किया जा रहा है और मुझे शकुंतला का किरदार दिया जा रहा है।” सप्मदा के चेहरे पर यह बताते हुए फिर से परेशानी आ गई थी।

“ये तो बहुत अच्छी बात है दीदी, इसमें परेशानी क्या है।” विनया खुश होकर बच्चों की तरह ताली बजाती हुई कहती है।

“भाभी, बुआ से भी तो पूछना होगा ना, बिना उनके परमिशन के कैसे और मम्मी हैं की कभी भी कुछ जानने का प्रयास ही नहीं करती हैं। भाभी, कभी कभी तो इच्छा होती हैं कि मम्मी को झकझोर कर पूछूं कि औरों की मम्मी की तरह उनमें अपने बच्चों के लिए मामता है भी की नहीं।” संपदा की गाड़ी फिर से सुबह वाले ट्रैक पर दौड़ने लगी।

“झकझोरना ही तो है दीदी, एक बार उनकी ममता जाग गई ना, फिर तो घर का कल्याण हो जाएगा।” बाहर देखती विनया बुदबुदाती है।

“कुछ कह रही हैं क्या भाभी?” संपदा पूछती है।

“नहीं दीदी, बस मैं कह रही थी कॉलेज की तरफ से मिले इस अवसर को पकड़ कर रखिएगा। आप लगती भी तो शकुंतला ही हैं। हिरणी सी बड़ी बड़ी भावपूर्ण बोलती ऑंखें, उन्नत माथा, माथे के दोनों ओर ये घुंघराले लट। जो देखे दीवाना हो जाए तो कॉलेज वालों की क्या मजाल की किसी और को शकुंतला बना दें।” विनया संपदा के नख–शिख का वर्णन करती हुई उसकी अच्छाइयां गिना रही थी।

“ये क्या है संपदा, दिन भर घर से बाहर रहना।” जैसे ही दोनों ने घर में कदम रखा दोनों ही बड़ी और मंझली बुआ को एक साथ देख सकपका गईं।

“वो बुआ जी, दीदी मेरे साथ”…

“बुआ तुमसे नहीं पूछ रही हैं।” वही बुआ के गोद में सिर डालकर लेटा मनीष बैठते हुए कहता है।

“संपदा, बुआ कुछ पूछ रही हैं।” चुपचाप खड़ी संपदा से मनीष कहता है।

अभी तो संपदा उस हॅंसते–खेलते प्रकाश को ही पूरी तरह जी नहीं पाई थी कि दरवाजे के अंदर आते ही उसे ऐसा लगने लगा जैसे उसके चारों ओर की रौशनी बुझ गई है और एक काली छाया उसकी ओर उसे जकड़ने के लिए फिर से बढ़ रही है और धीरे-धीरे बढ़ते काले छाये ने उसकी धड़कनें तेज कर दी थी। उसे एक अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगी थी। 

“संपदा कुछ जवाब दोगी तुम या यूॅं ही खड़ी खड़ी अपने हाथों को मरोड़ती रहोगी।” मनीष उठकर संपदा के पास जाकर कहता है।

“भैया, वो आज कॉलेज नहीं जाना था तो भाभी के साथ उनके घर चली गई।” अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कन को समेटती हुई नजर नीची किए हुए संपदा कहती है।

“ये अच्छा है, आजकल के बच्चों का ये सही है, अपना घर काटने दौड़ता है तो दूसरे के घर चल दो। एक हम थी, पूरा जीवन घर में ही गुजरा, पर उफ्फ नहीं किया कभी।” मंझली बुआ संपदा की ओर देखकर ताना देती हुई कहती है।

“बुआ जी, पर वो भी तो अपना घर है”….

“पहले तुमने इसे बेमतलब घर से बाहर निकलना सिखाया और अब बहस करके दिखाओ और बहस करना भी सीखा दो। बुआ आप एकदम सही कह रही थी कि गलती हो गई हमलोग से, ऐसी पढ़ी लिखी लड़की घर नहीं लानी चाहिए थी।” मनीष गहरी गहरी साॅंसें लेता हुआ कहता है।

“नहीं नहीं विनया नहीं, अभी तुम पत्नी नहीं, बहू के किरदार में हो। इसलिए अभी मनीष के सवाल का जवाब नहीं देना है।” मनीष की बात पर विनया के अंदर का ज्वालामुखी फट कर बाहर आने ही वाला था कि उसे अपना मिशन याद हो आया और वो संपदा की ओर इस उम्मीद से देखने लगी कि शायद वो कोई स्टैंड लेगी। लेकिन संपदा अभी भी अपने दोनों पैरों पर खड़ी हाथ मरोड़ रही थी।

“संपदा, हमने तुमसे पहले भी कहा था कि कैसे रहना है और क्या करना है। हमारे जाते ही सब कुछ बिसार दिया, बहुत बढ़िया। घर की बहू बेटी का घर से इस तरह बाहर रहना। भाई ये लक्षण सही नहीं हैं।” बड़ी बुआ संपदा को उसका गुनाह महसूस कराती हुई जोर से बोलती अपने भाई के कमरे तक भी आवाज पहुॅंचाती है।

बड़ी बुआ बोल ही रही थी कि अंजना चाय लिए बैठक में भावहीन ऑंखों से सभी को देखती आई।

व्यक्ति में भावनाओं, सोचों और अनुभवों का एक संगम होता है, जो ऑंखों में छिपा होता है और अंजना की इन ऑंखों में ये सारी चीजें समाहित थी लेकिन भावनात्मक स्थिति को दर्शा पाने में असमर्थ थी क्योंकि अंजना के मन में यह धारणा बन चुकी थी कि यहाॅं उसकी भावनाओं का कोई कद्रदान नहीं है इसलिए अब उसकी ऑंखों को देखकर उसके हृदय की वास्तविक स्थिति पता कर पाना मुश्किल था। उसकी ऑंखों की तुलना ढलती शाम और सूरजमुखी से की जा सकती थी। जैसे जैसे सूर्य अस्त होने की ओर बढ़ता है, सूरजमुखी भी उसके संग–संग अस्त होने की ओर बढ़ने लगती है। उसी तरह अंजना का ऑंखों की चमक जैसे जैसे बुझती हुई भावनरहित हो रही थी, वैसे ही उसके साथ साथ ढल रही थी उसकी सबके लिए भावनाऍं। अंजना की आँखों की गहराई में उसकी आत्मा की अनछुई बातें छुपी थीं, जिससे सभी अनभिज्ञ थे। कभी किसी ने उन बातों को छूने की कोशिश नहीं की तो वे बातें भी अब सूरजमुखी बन गई थी…ढलती शाम की सूरजमुखी। 

अंजना जानती थी कि भले ही वहाॅं चर्चा उसके बच्चों पर ही हो रही हो, लेकिन उस चर्चा में शामिल होने का हक उसके पति ने ही उसे नहीं दिया और वो भी लोगों के तानों में आकर अपने अधिकार को छोड़ती चली गई। इसलिए अंजना चाय का ट्रे ननदों के सामने टेबल पर रखकर रसोई की ओर बढ़ चली। 

“मम्मी, कभी तो अपनी बेटी के पक्ष में खड़ी हो जाओ।” रत्ती भर भी उम्मीद नहीं होने के बावजूद संपदा के दिल में जाती हुई अंजना को देख एक हूक सी उठी।

और अचानक ही अंजना ही रुक कर पीछे मुड़ कर संपदा की ओर देखने लगी। शायद उस तक बेटी की दिल की बात पहुॅंच गई थी। लेकिन कभी वो समय भी था जब एक माॅं की तरह अपने बच्चों की ढाल बन जाती थी, इस बात को एक युग बीतने आया था। अंजना भी पल भर संपदा की ओर इस इंतजार में देखती रही कि शायद वो कुछ कहे। लेकिन एक दूसरे से ऑंखें मिलने के बाद भी भावनाओं का कोई आदान–प्रदान नहीं हुआ तो अंजना इसे अपने मन का भ्रम समझ रसोई में आ गई।

इंसान का मन तो ऊॅंट की तरह इंसान को जिस करवट चाहे बिठा दे और इंसान उसके अनुसार ना चाहते हुए भी उठने बैठने के लिए मजबूर हो जाता है। यह सत्य इंसान के मन की उलझी हुई जटिलताओं को दर्शाता है। ऊंट की तरह, मन भी अपने रास्ते चलता है और इंसान को अनचाहे कर्मों में जुटा देता है, जिससे वह अपनी इच्छाओं के खिलाफ जाने के लिए मजबूर हो जाता है। कमोबेश यही स्थिति अभी अंजना और संपदा की थी, दोनों ही जानती थी कि जो हो रहा है या जो कहा जा रहा है, गलत है लेकिन दोनों का ही मन ऊंट बना उन्हें अपनी इच्छाओं का दमन करने कह रहा था।

अगला भाग

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 14) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

आरती झा आद्या

दिल्ली

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 12)

6 thoughts on “अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 13) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत सुन्दर विषय, सुन्दर कहानी। जिस तरह धीरे धीरे पूरा समय दे कर विकसित किया गया, काबिले तारीफ़ है। आशा है कि इतने ही संतोषजनक तरीके से इसे समाप्त किया जाएगा।
    न अधिक तीव्रता न अधिक मन्थरता।
    —— आगे के भाग/भागों की प्रतीक्षा में…

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!