पतझड़ – संगीता त्रिपाठी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुजाता का जब ब्याह हुआ था, अल्हड़ उम्र थी। अक्सर सासु माँ की डांट खाती। सासु माँ ने भी तय कर लिया था, छोटी बहु को सुधार कर ही दम लेंगी। अतः सुजाता पर उनकी पैनी नजर रहती थी। कब वो गलती करें, और उनको मौका मिले उसे डांटने और सुधारने का। सुजाता समझ ही नहीं पाती,

आखिर सासु माँ, उसी के पीछे क्यों पड़ी रहती।सुजाता ने तय किया जब उसकी बहु आयेगी तो वो उस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगायेगी।धीरे -धीरे सुजाता भी कामों में पारंगत होने लगी। सासु माँ को भी अब सुजाता का निश्छल स्वाभाव भाने लगा।

                  समय बीता, सुजाता और शशांक, दो बच्चों के माता -पिता बन गये। बिटियाँ में सुजाता अपनी छवि देखती। दोनों बच्चों की सामान रूप से परवरिश हो रही थी। दोनों बच्चे होनहार थे। बेटी पीहू छोटी थी, और बेटा प्रखर बड़ा था।

 पढ़ाई ख़त्म कर प्रखर जब नौकरी पर आया, तो सुजाता ने उसके लियें लड़की देखनी शुरू की। प्रखर ने सुजाता से कहा -” माँ,पहले पीहू की शादी करेंगे , उसके बाद ही मै अपनी सोचूंगा।”

 सुजाता ने समझाया -“तू बड़ा है, पहले तेरी करेंगे ” पर प्रखर नहीं माना तो, प्रशांत बोले -“जो प्रखर कह रहा, वही करो..। “

सुजाता ने एक दिन मौका देख प्रखर से पूछा -“पीहू तुझसे चार साल छोटी है, तू उसकी शादी पहले क्यों करना चाहता है।”

   ” माँ, जरुरी नहीं जिस लड़की से मेरी शादी हो, वो आप लोगों के प्रति अच्छी हो।”

      ” क्यों नहीं अच्छी होंगी, जब मै उसे बेटी मानूंगी,तो वो भी मुझे अपनी माँ जैसा प्यार देगी।…”

 प्रखर हंस पड़ा -“माँ कोई बहु बेटी नहीं बन पाती है,। आप भी बहु को बहु के रूप में देखना.।”

” हट पगले, मै तेरी इस बात पर सहमत नहीं हूँ,कि बहु बेटी नहीं बन सकती।”

तब प्रखर ने अपने दोस्त अंकित के बारे में बताया, जिसकी पत्नी ने शादी के कुछ दिन बाद ही, अलग गृहस्थी बना ली।

       “चल देखते है “कह सुजाता ने बात ख़त्म कर दी।

             पीहू के नौकरी करते ही, अच्छा घर -वर मिलते ही,पहले पीहू की शादी हो गई।अब सुजाता प्रखर के लियें लड़की देखने में व्यस्त हो गई।एक अच्छी लड़की मीता, उनको पसंद आ गई, घर में सबकी सहमति बन गई। शादी तय हो गई।

शादी से पहले मीता अपनी होने वाली सास से खूब बात करती थी सुजाता, जो पीहू के जाने के बाद अकेलापन महसूस कर रही थी, मीता में बेटी की छवि देखने लगी।

मीता को बहु बना घर ले आई। उसको कोई प्रतिबन्ध नहीं रखा। मीता देर से सो कर उठती। सुजाता को ही नाश्ता, खाना बनाना पड़ता। मीता कमरे में बैठ कुछ ना कुछ बोलती रहती थी, अक्सर वो सुजाता के पहनावे या मेकअप पर व्यंग कर उन्हें जलील करती। घर में प्रखर सुनता पर जब भी मीता को कुछ कहता, झगड़े के डर से सुजाता जी प्रखर को रोक लेती।

                                   मीता अब अपने असली रूप में आने लगी। सुजाता का प्यार उसको दिखावा लगता।जब -तब उनको जवाब देने लगी थी।ऑफिस से आ मोबाइल पर रहती।

कभी प्रखर बोलता भी -“मीता मम्मी इतना काम करती है, तुम भी कुछ उनकी मदद कर दिया करो।” मीता तुरंत ऑफिस के काम का रोना रोती। प्रखर को समझ में आ रहा था मीता आलसी है या ज्यादा आराम से उसकी आदत बिगड़ गई, क्योंकि अपने मायके में तो सारा काम करती थी।प्रखर खुद ही रसोई में माँ की मदद करने लगा। सुजाता और प्रखर, दोनों ही घर की शांति भंग नहीं करना चाहते थे।

                         एक दिन सुजाता की किटी थी, उनकी किटी में थीम चलता था। उनकी उम्र के लोग उसी में एन्जॉय करते थे। सुजाता ने मीता से कहा “आज तुम्हारी छुट्टी है, लंच तुम बना लेना, मेरी किटी है, मुझे वहां समय से पहुंचना है। “

    थीम के अनुसार, सुजाता जी, कुर्ते के साथ लांग स्कर्ट, और उस पर बनारसी चुन्नी ली थी। मीता ने देखा तो व्यंग से मुस्कुरा दी..बोली “माँ अब आप लोगों को कौन देखेगा, जो आप लोग इतना सजते संवरते हो। अब तो पतझड़ शुरू हो गया है।”

                    सुजाता हतप्रभ हो गई, जिसको बेटी मानती आई, कभी किसी चीज के लियें टोका नहीं, वो अपनी माँ सामान सास को इस तरह व्यंग कर जलील कर रही।

 पहले सास की सुनती आई थी, अब उनकी जगह बहु ने ले लिया।माना उनका पतझड़ समय शुरू हो गया। पर जीने के लियें तो शौक जिन्दा रखना पड़ता है।

प्रखर सब कुछ सुन रहा था। गाड़ी की चाभी ले, माँ के पास आया -“चलो माँ, आपको किटी में छोड़ आऊं। वैसे मीता, तुम्हारी मम्मी तो जीन्स भी पहनती है, वो तो माँ से भी बड़ी है, पतझड़ तो उनका बहुत आगे चल रहा है। पर मै उनकी आलोचना नहीं कर रहा हूँ। पहनने की कोई उम्र नहीं होती। अगर माँ की सहेलियां इस तरह एन्जॉय करती है, तो अच्छी बात है, नवीनता तो बनी रहती। तुम भी इन पतझड़ वालो से सीख लो, जो आपस में एक दूसरे को प्रोत्साहित करते है। तुम लोग तो टीशर्ट और पैजामे में ही जिंदगी गुजार देते हो। इसी में अपने को मॉर्डन समझते हो, जबकि मॉर्डन विचारों से होना चाहिए। तुम्हे तो माँ के साथ होना चाहिए, तुम भी एक स्त्री हो… एक दिन तुम्हे भी पतझड़ के दौर से गुजरना होगा, तब कहीं तुम्हारी बहू भी इस तरह न बोल दे…….।”

                       .. मीता सन्न रह गई, उसे प्रखर से इस जवाब की अपेक्षा नहीं थी। प्रखर ने बात सही भी कही, उसकी मम्मी भी सारे ड्रेस पहनती है, तो फिर सासु माँ के लिये वो ऐसा क्यों सोच रही। वापस आने पर मीता ने सासु माँ से माफ़ी मांगी। अगले दिन मीता के स्टेटस पर मीता और सुजाता जी की जीन्स -टॉप में ली गई सेल्फी लगी थी।

                         सखियों लोग अक्सर, बढ़ती उम्र को इतना क्यों जताते, उम्र हो गई। क्या ये सही है। कई बार युवावस्था में जिम्मेदारी तले, पति -पत्नी अपनी इच्छाओं को मार देते है। पर जब जिम्मेदारी पूरी हो गई, और वो सक्षम है अपने शौक पूरे करने को, तो उनका मनोबल बढ़ाये, ना कि ताने देकर उन्हें जलील करें ।

                                             —संगीता त्रिपाठी 

   #जलील

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