Moral Stories in Hindi : खून के रिश्ते भगवान बनाता है और दोस्ती का रिश्ता हम स्वयं बनाते हैं। कई बार खून के रिश्ते इतना दिल दुखाते हैं कि इंसान ना तो बर्दाश्त कर पता है और ना ही किसी से कह पाता है। ऐसे ही कुछ रिश्तो को ढो रही थी ममता। ईश्वर ने उसके साथ बड़ा अन्याय किया था। विवाह के 11 वर्षों बाद भी वह मां नहीं बन पाई थी। रिश्तेदारों के ताने सुन सुन कर थक चुकी थी।
भगवान से प्रार्थना, विनती, लड़ाई, कहा सुनी, रोना धोना और डॉक्टर से इलाज सब कुछ करके हार चुकी थी। ऊपर से दोनों जेठ और जेठानियां माशा अल्लाह। उसके लिए तो उनका रिश्ता खून का रिश्ता नहीं था लेकिन ममता के पति दीपक से तो खून का रिश्ता था। वे तो अपने भाई को भी सुनाते रहते थे । दीपक भी हर समय बातें सुन सुनकर तनाव में रहने लगा था।
बड़े भाई भाभियों ने कभी ढांढस नहीं बंधाया, उल्टा हमेशा ताने ही मारे। जेठानियां ममता से कहती-“कितना भी इलाज करवा ले, तुझे कभी बच्चे ना होंगे, देख लियो, बांझ है तू।”ममता अकेले में खूब रोती।
ईश्वर से नाराज होकर वह पूजा पाठ भी छोड़ बैठी। फिर एक दिन ममता और दीपक दोनों ने सोचा कि क्यों ना हम किसी बच्चे को गोद ले ले।
उन्होंने घर में विचार विमर्श किया, तब दोनों भाई भाभियों के पैरों तले जमीन खिसक गई, जो कि दीपक के हिस्से के जमीन जायदाद पर नजर गड़ाए बैठे थे। उन्हें लगा कि अब तो सब कुछ गया हाथ से। तब उन्होंने कहा-“नहीं यह सही नहीं है। क्या पता कौन जात का और कौन खून का बच्चा हो। थोड़ा और सब्र करो, इंतजार करो, ईश्वर जरूर सुनेगा। नहीं तो हम बैठे हैं ना, हम पैदा करके तुम्हारी झोली में डाल देंगे।”
ममता और दीपक किसी भी रिश्तेदार के बच्चे को गोद नहीं लेना चाहते थे। वे किसी अनाथ बच्चे को ही अपना बनाना चाहते थे। उसे भरपूर प्यार देकर और सुंदर भविष्य देकर उसका जीवन संवारना चाहते थे। उन्होंने घर वालों की बात सुनी लेकिन फिर अपनी जिंदगी के बारे में सोचते हुए अपने फैसले पर अटल रहे और गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी। प्रक्रिया पूरी होते होते नौ -दस महीने लग गए और फिर 2 महीने का प्यारा सा नन्हा मुन्ना बेटा ममता की गोद में आ गया। ममता और दीपक की खुशी का ठिकाना न था। ममता ईश्वर की इच्छा के आगे नतमस्तक थी और ईश्वर का धन्यवाद कर रही थी।
दोनों जेठानियां बच्चे को देखकर हर पल जलती कुढ़ती रहती थीं। वे ना तो उसके पालन पोषण में ममता का साथ देती थी और ना ही बच्चे के कभी बीमार होने पर ममता को किसी काम को न करने की छूट देती। बेशक बच्चा रोता रहे या फिर परेशानी में ममता को रात को सोने ना दे, उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था।
कभी-कभी ममता ज्यादा परेशान हो जाती, तब अपने पति से कुछ कहती भी, तब दीपक को लगता कि हर घर में छोटी-मोटी बातें तो होती ही रहती हैं, पर उन बातों से खून का रिश्ता तो नहीं टूटता ना।
धीरे-धीरे प्यार सा बच्चा नोनू बड़ा होने लगा। अब वह बोलना भी सीख गया था और प्यार और गुस्सा समझने लगा था। एक बार उसने अपने ताऊजी से कुछ कहने के लिए बोला-“बड़े पापा”
इतना सुनते ही उसके ताऊ जी ने उसे डांट कर कहा-“मुझे ना बोला कर बड़े पापा, मैं नहीं हूं तेरा बड़ा पापा”
नोनू रुआंसा हो गया और आंखों में आंसू लिए वहां से अपनी मां के पास चला गया। ममता सब कुछ देख और सुन रही थी। उसकी आंखें भी भर आई।
एक बार उसकी बीच वाली जेठानी के बच्चों के लिए नया कंप्यूटर आया। तब नोनू भी खुशी-खुशी उसे छू कर देखने लगा। जेठानी ने उसे गुस्से से झिड़क कर कहा-“हाथ मत लगा, चल दूर हट।”मतलब यह है कि बड़ों में बड़प्पन बचा ही नहीं था। उनके व्यवहार को देखकर लग रहा था कि बड़े बड़प्पन भूल चुके हैं।
एक बार घर पर कीर्तन रखा गया। घर में बूंदी और बेसन की पतली भुजिया का प्रसाद बनकर आया। उसे प्रसाद को देखकर बच्चे तो क्या बड़ों के मुंह में भी पानी आ जाता है। कीर्तन के बाद सबको कागज की थैलियां में प्रसाद बांटा गया।
ममता ने नोनू को एक छोटी सी कटोरी में प्रसाद डाल कर दिया। नोनू को प्रसाद खाकर बहुत अच्छा लगा। वह ममता की बड़ी जेठानी के पास गया और बड़े प्यार से बोला-“बड़ी मम्मा और चाहिए।”
बड़ी जेठानी ने उसे पीछे धकेल दिया और उसे प्रसाद नहीं दिया। उसे आंखें दिखा कर डरा दिया। बच्चा बेचारा सहम कर चुप हो गया। इत्तेफाक से यह सब दीपक ने देख लिया। तब उसने सोचा की ममता गलत नहीं थी। ऐसे व्यवहार का बच्चे पर बहुत गलत असर हो रहा है। बच्चे के साथ इतना भेदभाव। मैं तो रिश्ते निभाने की चाह में चुप रहा और यह लोग बड़े होकर भी बच्चे के साथ इतना गलत व्यवहार करते रहे।
तब उसने उसी रात घर में सबको अपना निर्णय सुना दिया कि ममता और मैं अब अलग रहना चाहते हैं। हम अपने बच्चे के साथ ऐसा दुर्व्यवहार नहीं देख सकते। चाहे हमें किराए पर घर लेकर रहना पड़े। बाद में धीरे-धीरे हम अपना घर ले लेंगे, लेकिन अब यहां हमारा गुजारा नहीं। वे लोग उसी हफ्ते अलग घर में रहने चले गए और अपने नोनू के साथ खुशी-खुशी जिंदगी बिताने लगे।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
(GKK M)
Story achi h pr PTA nhi kyu mujhe kuch aadhuri si lgi