पापा आई लव यू – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुनते हो मैं जरा मंदिर दर्शन को जा रही हूँ, बस पाँच मिनट में आयी।

 ठीक है,तुम हो आओ मंदिर।

और हाँ देखो मैं आकर ही चाय बनाऊंगी, खुद बनाने की कोशिश मत करना।तुम्हारे हाथ कांपने लगे है,बिना वजह चोट वोट लग जायेगी।

   अरे नही भागवान, तुम मंदिर से आ जाओ तभी साथ ही चाय पियेंगे।

      नोयडा की एक पॉश सोसाइटी में 80 वर्षीय शंकर अपनी 76 वर्षीय पत्नी पार्वती के साथ रहते थे।एक फ्लैट खरीद लिया था।यूँ तो उनके दो बेटे थे।एक बेटा अमेरिका में जॉब करता था,वही की नागरिकता उसने ले ली थी,दूसरा बेटा संजय नोयडा में ही अलग फ्लैट लेकर रह रहा था।शंकर और पार्वती दोनो अकेले ही  अपनी जीवन की संध्या में जी रहे थे।

शंकर के कुछ दिनों से हाथ कांपने लगे थे।डॉक्टर ने दवाइयां लिख दी थी,साथ ही कह दिया था,दवाई मर्ज को ठीक नही करेगी,बस आगे और न बढ़े यही कार्य करेगी।

पार्वती अपने पति को किसी और बड़े डॉक्टर को दिखाना चाहती थी,पर अकेली हिम्मत नही कर पा रही थी।स्थिति से समझौता करने के अतिरिक्त कोई रास्ता भी तो नही था।इतना अवश्य किया पार्वती ने एक मेड रख ली जो साफ सफाई कर जाती और खाना भी बना जाती।शंकर से पार्वती ने कह दिया था,कि आप अकेले कोई काम नही करेंगे।देखो हमे ही तो एक दूसरे का ध्यान रखना है।कौन है हमारा,जब औलाद ही हमारी ना

हुई तो कोई और क्या हमारे लिये करेगा।शंकर पार्वती की बात सुन कह देता पार्वती तू ही तो सब कुछ रही है,मैं तो अपाहिज हो गया हूं।दूसरी तरफ मुँह करके शंकर अपनी आंखें पोछता तो पार्वती शंकर से कहती मेरे होते क्यों मन छोटा करते हो जी।

      पार्वती जो पांच मिनट में ही मंदिर से वापस आकर साथ ही चाय पीने को कह कर गयी थी, इतने में ही घंटी बजी,कांपते हाथों से शंकर ने दरवाजा खोला तो सामने टॉवर का गार्ड खड़ा था,शंकर ने उसकी ओर प्रश्नभरी निगाह से देखा तो वह कुछ भी न बोलकर शंकर जी का हाथ पकड़कर उन्हें टावर से बाहर ले आया, जहां भीड़ लगी थी।

शंकर जी को आता देख सब पीछे हट गये।अरे ,वहां तो शांत चित्त से पार्वती लेटी थी निर्जीव अवस्था में, चारो ओर खून ही खून था।ओह, शंकर जी के मुहँ से निकला और वे वही बैठ गये।पांच मिनट में आने को बोल गयी थी,आ तो गयी,पर साथ चाय पीने का वायदे को कैसे निभाएगी?

      शंकर जी के टावर से मुश्किल से 100- 150 कदम पर ही सोसायटी में ही मंदिर है,टावर और मंदिर के बीच ही कार पार्किंग वास्ते बेसमेंट में जाने के लिये स्लोब बना है, उसी से आती कार ने नियंत्रण खो पार्वती को चपेट में ले लिया था,सिर में आयी भारी चोट के कारण पार्वती चिर यात्रा को प्रस्थान कर गयी थी।अब तो अकेले रह गये थे कांपते हाथों वाले 80 वर्षीय शंकर।सब ढाढस बंधा रहे थे,पर शंकर के मन के अंतर्द्वंद को भला कोई क्या समझ सकता था।

       जो बेटा नोयडा में ही दूसरे सेक्टर में रहता था,उसे ही शंकर ने फोन कराया।अच्छा हुआ बेटा आ गया और अपनी मां का अंतिम संस्कार करा गया।दूसरे बेटे का भी अमेरिका से फोन आ गया ,उसने न आ पाने की वजह भी बता दी और जल्द आने की तस्सली भी दे दी।

      नोयडा में रहने वाले बेटे संजय ने पिता को अपने साथ चलने को बोला।अपनी स्थिति को समझ शंकर जी उसके साथ उसके फ्लैट में चले गये।सोचा पार्वती तो चली गयी अब जीवन के बचे खुचे दिन पोते पोती और बेटे के साथ गुजार लेंगे।

    संजय बेटे के फ्लैट पर शंकर जी रहने लगे,पर उन्हें लगता कि सबके बीच मे भी वो अकेले है।उन्हें लगता कि बेटा बहू पोता पोती उनसे पार्वती के बारे में बात करे,ढेर सारी यादे शंकर जी के पास इकट्ठी थी।पर यहाँ तो किसी के पास समय ही नही था।पार्वती की बात तो छोड़ भी दे,वो शंकर तक से हाय हैल्लो के अतिरिक्त बात नही कर पाते।जब कभी शंकर जी का सिर भारी सा होता पार्वती एकदम समझ जाती

और उन्हें बाहर सोसाइटी के गॉर्डन में ले आती।पार्वती पता नही कैसे शंकर जी के मन की बात समझ लेती?लगता एक दूसरे के पूरक थे  शंकर और पार्वती।

     कई दिन से शंकर जी का मन उचाट था।पार्वती के बिना जीना उन्हें कठिन लग रहा था।शंकर जी  ने संजय से कहा भी बेटा मेरा मन घबरा रहा है,कुछ समय मेरे पास बैठ ना।संजय बोला अरे पापा बैठने का समय कहाँ है?आप देखते तो हैं।

      शंकर जी चुप कर गये,बेटा कह रहा है समय कहाँ है अब उसे कैसे कहे कि उनके पास भी समय कहाँ बचा है?सप्ताह मे दो दिन की छुट्टियों में भी बेटे के पास बाप के लिये थोड़ा सा भी समय नही,पर अपने बच्चों के साथ मॉल में जाना या पिक्चर देखने का समय तो खूब है।

       धीरे धीरे शंकर जी ने अपने को अपने मे ही समेट लिया।कमरे में बैठे बैठे बड़बड़ाते रहते मानो पार्वती से बात कर रहे हो।अपने दुख की अपने अकेले पन की अपनी रिक्तता की,लेकिन सुनने वाला था कौन?एक दिन कह रहे थे पार्वती दो बेटों में से एक तो गणेश पैदा कर दिया होता जो हमारी परिक्रमा चाहे न करता पर कभी कभी आकर इतना तो कह ही दिया करता”पापा आई लव यू”

    अगले दिन ही संजय अपने पिता शंकर जी की अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहा था।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित।

(अपनी सोसायटी में कल ही घटी उक्त प्रकार की दुर्घटना को आधार बना कर लिखी गयी एक कहानी)

#जीवन साथी के न होने का दर्द कोई नही बाट सकता* पर आधारित:

 

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