बानी –  शुभ्रा बैनर्जी  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: बानी अपने परिवार की दूसरी बेटी थी। रंग गेहुंआ था तो दादी की लाड़ली नहीं‌ बन पाई थी।घर में बीस लोग रहते थे।

दो छोटी बहनें और एक भाई था।  पिताजी शिक्षक थे विद्यालय में।कुछ ट्यूशन घर पर भी पढ़ाते थे। पुरोहित भी थे वे।कुल मिलाकर सारा‌ दिन‌ कड़ी मेहनत करते तब कहीं जाकर संयुक्त परिवार चल‌ पाता था।बानी की बड़ी मां और उनके बच्चे भी साथ ही रहते थे।बानी की सिलाई कढ़ाई में बहुत रुचि थी।अपने प्रयासो़ से उसने हर तरह की सिलाई,बुनाई,रंगाई तक सीखी थी। भाई इकलौता बेटा होने की वजह से सबका लाड़ला था।

बानी की बड़ी दीदी की शादी कॉलरी में काम रहे फोरमैन के साथ हुई थी।पिता सारा दिन मेहनत करके भी इतना नहीं जमा कर पाए थे कि बेटी को ज्यादा दहेज दे पाते।दीदी के ससुराल वाले बहुत ही सभ्य थे‌ । उन्होंने कुछ भी लिए बिना शादी कर ली थी।शादी होते ही बानी अपने पिता की सहायता करने के उद्देश्य से घर पर ही सिलाई सेंटर खोल दी।

काम बहुत अच्छा चल निकला।दीदी के घर से बुलावा आता रहता था।चार बच्चे हुए थे दीदी को ,उन्हें संभालने के लिए बानी को वहां रुकना पड़ता था।दीदी ने अपनी सुविधा‌ और पिता की ग़रीबी का ध्यान रखते हुए अपने देवर से बानी की शादी पक्की कर दी। पिताजी को यह पसंद तो नहीं था पर बेटी अपनी छोटी बहन का भला ही चाहेगी ,सोचकर उन्होंने भी रजामंदी दे दी।बानी के होने वाले पति सेना में थे।बानी को इस गौरव से अपना मान बढ़ता‌ हुआ दिखता। उसने सोचा अब दुख के दिन दूर हुए।सुख आएगा यदि उसकी ज़िंदगी में,तो वह अपने पिता का सहारा बनेगी।

एक दिन दीदी के यहां से टेलीग्राम आया कि बानी के होने वाले पति का दाहिना पैर काट दिया गया है। कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं और रहेंगे कुछ दिन।इस खबर ने बानी के माता पिता को झकझोर कर रख दिया।पिता एक दिन मां से कहने लगे”एक पैर वाले लड़के से शादी कर हमारी बेटी की तो ज़िंदगी ही बर्बाद हो जाएगी। नहीं-नहीं मैं मना कर दूंगा।”

मां ने बानी को सांत्वना देते हुए कहा”देख बानी तू किसी मजबूरी में एक‌ पैर वाले‌ आदमी से शादी मत कर।हम उनसे हांथ जोड़कर माफी मांग लेंगें।”

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बानी ने अपने दुखों को अलविदा कहने का मन बना लिया था।सुख होगा यदि क़िस्मत में तो,उसी के साथ बांट लूंगी ,यही सोचकर बानी ने कहा “यदि शादी के बाद यह हादसा होता तो,क्या मैं यह शादी तोड़ देती?मुझे शादी मंज़ूर है।”बानी के इस आत्मत्याग का फल उसे पति के समर्पण में मिला।एक अपाहिज की उपाधि से विभूषित पुरुष के लिए, समाज के सामने अपनी जीवनसंगिनी पाना असंभव था।

बानी के पति ने कृतज्ञता बोध से उसे ऐसा वरदान दिया कि, बानी अपने परिवार में सबसे सुखी बेटी बन गई।अपने बूढ़े पिता के सर से छोटी बेटी की शादी का दायित्व भी बानी ने अपने सर ले लिया।पति जीवन पर्यन्त बानी को भरपूर प्रेम देते रहे।

अपने इकलौते बेटे की शादी भी बानी ने अपनी पसंद से करवाई।लड़की देखने अपनी जिठानी के साथ अकेली गई बानी,और बहू को देखते ही पसंद कर लिया।

शुभा के रूप में बानी को मानो अपने भविष्य की निधि मिली।शुभा बिन बाप की,शिक्षित और समझदार लड़की थी।बानी ने पूरे परिवार के सामने कहा था”दहेज की हमें जरूरत नहीं,एक शिक्षित लड़की ही मेरी सबसे बड़ी मांग है।”एक दिन शुभा ने बानी से पूछ ही लिया था”मां,आपने एक बार में देखकर इतना विश्वास कैसे कर लिया मुझ पर?”

बानी ने हंसकर कहा”बचपन से दुखों के साथ खेलकर बड़ी हुई हूं।तुम्हारी आंखों में मुझे भविष्य के सुख की परछाईं दिख गई थी।तुम्हारे हांथ देखकर ही समझ गई थी कि काम काज में निपुण हैं लड़की।””

शुभा ने अवाक होकर कहा “ओह!आप तो बहुत स्मार्ट निकलीं।एक बार में ही इतना परख लिया।”

“नहीं रे,यह तो मेरे सुख की दस्तक थी जो तेरे निश्छल मन से निकल रही थी।मैंने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा जुआ (शादी)ईश्वर पर भरोसा करके खेला था।मेरी शादी की पहली रात को ही जिठानियों ने ताना कसा था ,कि पता नहीं देवर जी बच्चे पैदा कर पाएंगे कि नहीं(जांघ से कटा था पैर)?पर देख ईश्वर ने मेरा भरोसा नहीं छोड़ा।

चार साल में हमारे तीन संतान हुई।तेरे ससुर जी को देखकर कभी अपाहिज़ होने का अहसास ही नहीं हुआ।मुझे हर सुख दिया उन्होंने।सभी रिश्तेदार कहते थे कि इकलौता बेटा है,खूब ठोंक बजाकर बहू लाना।मुझे कभी चिंता ही नहीं हुई,क्योंकि मुझे पता था मेरा सुख लेकर जो आएगी वहीं मेरी सर्व श्रेष्ठ गुणी बहू होगी।”

अपनी सास की बातें सुनकर शुभा हतप्रभ थी,इतना मनोबल कहां से आता है मां को।बेटे से ज्यादा बहू पर भरोसा करने वाली सास पहले तो नहीं देखा था कभी।शायद बानी के भरोसे ने शुभा को कभी बहू बनने ही नहीं दिया।बेटी से ज्यादा लगाव और स्नेह रखा उसने।इतने सालों तक दुःख में कड़ी तपस्या करने वाली बानी को सुख तो मिलना ही चाहिए।

बानी के सुख में शुभा को अपना सुख निहित मिला।पति के चले जाने के बाद दुख का पहाड़ लिए एक मां का बहू को यह कहकर ढांढ़स बंधाना कि मैं तो हूं ना तुम्हारे साथ शुभा के जीवन में सुख का आसमान बन गया।सुख -दुख तो नियति के दो पलड़े हैं।यदि सुख आया है तो पीछे दुःख भी जरूर आएगा।यह चक्र अनवरत चलता रहेगा। आवश्यक तो यह है कि हम अपने दुःख में सुख ढूंढ़ पाएं।

शुभ्रा बैनर्जी

#सुख-दुख

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