मां की चिंता – गीता वाधवानी : hindi stories

hindi stories : आज सुलभा जी का जन्मदिन है, पर वह सुबह से ही अनमनी सी है। बहुत उदास और मायूस लग रही है। उनके पति नरेंद्र ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी, तब भी उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान प्रकट हुई। 

नरेंद्र जी ने पूछा-“अरे भई, क्या हुआ इतनी उदास क्यों दिख रही हो?” 

बस इतना सुनते ही फट पड़ी-“जैसे आपको तो कुछ पता ही नहीं है। कल से “प्रथम “को फोन लगा रही हूं। फोन उठा ही नहीं रहा और ना ही पलट कर फोन कर रहा है। पता नहीं क्या बात होगी? आपको मना भी किया था कि उसे अमेरिका मत भेजो, पर आप सुनते हो किसी की। बस बोल दिया कि ऑफिस वाले भेज रहे हैं तो जाने दो, सिर्फ 2 साल की तो बात है।” 

नरेंद्र-“परेशान मत हो, वह तुम्हारा जन्मदिन भुला नहीं होगा। कभी बोलता है क्या। फोन तो करता ही रहता है और अब तो 2 साल पूरे होने को है वापस आने ही वाला है।” 

“आप नहीं समझोगे, मुझे अपने जन्मदिन की चिंता नहीं है। आप को ऐसा लग रहा है कि मुझे जन्मदिन की पड़ी है। मुझे तो प्रथम की चिंता हो रही है कि वह फोन क्यों नहीं उठा रहा है? “सुलभा ने कहा 

नरेंद्र जी के समझाने पर भी सुलभ जी को चैन कहां। कभी दरवाजे की तरफ लकी लगा कर देखती, कभी फोन मिला ती, कभी मैसेज भेजती, कभी मैसेज चैक करती। आज उनका मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था। 

      नरेंद्र जी उनकी बेचैनी को अच्छी तरह से समझ रहे थे। शाम होते-होते सुलभा जी ने गहरी उदासी की चादर ओढ़ ली और अब नरेंद्र जी को उनकी चिंता सताने लगी थी। 

      शाम के 6:00 बज रहे थे। नरेंद्र जी ने उनका ध्यान हटाने के लिए कहा-“मौसम में हल्की हल्की ठंडक से लग रही है, चाय तो बना दो।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 ये कैसी चाहत – गुरविंदर टूटेजा




    सुलभा जी बेमन से उठी और मरी हुई चाल से चलती हुई रसोई की तरफ जाने लगी। तभी दरवाजे पर घंटी बजी। नरेंद्र जी ने जाकर दरवाजा खोला और देखकर हैरान रह गए कि सामने अपना सामान लिए उनका लाडला बेटा प्रथम खड़ा है। 

     प्रथम ने उनके चरण स्पर्श किए और उन्हें चुप रहने का इशारा किया। वह धीमे कदमों से रसोई की तरफ बढ़ने लगा। नरेंद्र जी से रूका नहीं गया और बोले-“जरा देखो तो कौन आया है?” 

      लेकिन सुलभा जी अपने में ही गुमसुम थी। उनकी बला से कोई भी आए या जाए। इतनी देर में प्रथम अपनी मां के बिल्कुल पीछे पहुंच चुका था और उसने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी मां की आंखें बंद कर दी। 

     प्रथम का स्पर्श मां ने तुरंत पहचान लिया और पलट कर भरे गले से सिर्फ इतना ही बोली-“प्रथम”। और फिर दोनों मां बेटे एक-दूसरे से लिपटकर खूब रोए। दोनों का यह प्यार भरा मिलन देखकर नरेंद्र जी की भी आंखें भर आई। 

     अब सुलभा जी की शिकायतों का दौर शुरू हुआ। “तू फोन क्यों नहीं उठा रहा था, तू मैसेज देख भी नहीं रहा था और मैसेज कर भी नहीं रहा था। तूने तो पहले ऐसा कभी नहीं किया।” 

      “मां, मां सुनो तो, मैं अचानक तुम्हारे जन्मदिन पर आकर सरप्राइस देना चाहता था और आप ऐसा कैसे सोच सकते हो कि मैं आपका जन्मदिन भूल गया हूं।” 

     “अरे बेटा तू नहीं समझेगा, मुझे अपने जन्मदिन की कोई चिंता नहीं है। मुझे तो तेरी फिक्र हो रही थी कि तू फोन क्यों नहीं उठा रहा है।” 

       नरेंद्र जी, सुलभा और प्रथम तीनों की बातें खत्म ही नहीं हो रही थी और सुलभा जी की सारी उदासी न जाने कहां छूमंतर हो गई थी। वे रसोई में एक तीस साल की युवती की तरह जल्दी-जल्दी अपने बेटे की पसंद की सारी चीजें बनाने में जुट गई थी। 

स्वरचित मौलिक 

गीता वाधवानी दिल्ली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!