मानव घर से ऑफिस के लिए निकला ही था तभी उसने देखा कि एक तरफ की सड़क महिला मुक्ति मोर्चा वालों ने किसी महिला पर अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए बंद कर रखी थी,उनके विरोधाभास के नारे उसके कानों तक भी पड़ने लगे, उनके नारों की आवाज़ ने उसके मन में उथल-पुथल मचा दी
क्योंकि ऐसा ही कुछ उसने झेला था।उसे अपनी ज़िंदगी का वो काला अध्याय याद आने लगा जिससे वो बड़ी कठिनाई से बाहर आया था। उन लोगों के सड़क बंद करने की वजह से उसको देर तो हो ही गई थी पर अब उसका ऑफिस जाने का मन भी नहीं था इसलिए उसने गाड़ी वापिस घर की तरफ मोड़ ली। घर आकर उसने अपने नौकर सोम को एक कप कॉफी के लिए बोला और अपने कमरे में आ गया।
अब उसका मन भटकने लगा अतीत की गलियों में।उसको याद आ गया वो सब कुछ जिसको झेलने के बाद वो जीता जागता रोबोट हो गया था। असल में मानव बहुत ही हैंडसम, पढ़ाई लिखाई में अच्छा और सबका दिल जीतने वाला लड़का था। आईआईटी से इंजीनियरिंग के बाद उसकी बड़ी प्रतिष्ठित कम्प्यूटर कंपनी में नौकरी लग गई थी।
अब जैसा कि हमारे भारतीय समाज में होता है बेटे के नौकरी लगते ही माता-पिता को घर में बहु लाने का अरमान होता है। ऐसा ही चाव मानव के माता पिता को था। उन्होंने मानव से उसकी पसंद भी कई बार पूछी पर मानव को अपने माता-पिता की पसंद पर पूरा भरोसा था।अतः लड़की चुनने की ज़िम्मा उसके माता पिता पर ही था। अब बहुत सारे रिश्तों में उन्हें एक लड़की शोभा पसंद आई, ये रिश्ता किसी रिश्तेदार के द्वारा आया था।
लड़की की तस्वीर देखने के बाद और उसके घर वालों से फोन पर बात करने के बाद उन्होंने इस रिश्ते को आगे बढ़ाने की सोची। सब सही लग रहा था पर शोभा के सपना तो किसी अमीर व्यवसायिक परिवार की बहु बनने का था। उसको ये भी लगता था कि शादी के बाद वो अपने पति के साथ अकेले रहेगी उसको किसी की भी दखलंदाजी पसंद नहीं थी।
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वैसे भी वो जिद्दी किस्म की, काफी गुस्सैल और नकचढ़ी थी। घर वाले भी उसकी आदत से भली भांति परिचित थे। मानव के परिवार के लोग तो वैसे ही बहुत सीधे-साधे थे तो उनको लगा कि उनकी तेज़तर्रार बेटी के लिए यही रिश्ता उपयुक्त रहेगा। शोभा के नानुकुर करने पर शोभा के माता पिता ने उसको ये कहकर समझाया कि एक बार रिश्ता और शादी होने पर अगर वो मानव को अपने वश में कर लेगी तो वो जैसा चाहेगी वही होगा।
बस यही सब अपने दिमाग में लेकर शोभा मानव से शादी के लिए तैयार हो गई। शादी होने तक कोई भी,यहां तक मानव भी शोभा के व्यवहार से उसके भविष्य के घर तोड़ने वाली योजना को नहीं समझ पाया। शादी हो गई,शादी के बाद कुछ दिन सब ठीक चला पर धीरे धीरे शोभा ने अपने रंग दिखाने शुरू किए। वो घर के कोई काम नहीं करती थी यहां तक की उसकी कोशिश मानव को घर वालों के खिलाफ भड़काने की होती। मानव की मां सीधी साधी थी वो शोभा से अगर किसी काम को कहती तो वो उल्टे जवाब देकर उनको चुप करा देती। बेटे की नई गृहस्थी है ये सोचकर मानव के माता-पिता अपना दर्द दिल में छुपाकर मानव के सामने सामान्य बने रहते। पर बातें कितने दिन तक छुप सकती थी। एक दिन मानव की माताजी चक्कर खाकर गिर गई और उस दिन शोभा का अपनी दोस्तों के साथ बाहर जाने का कार्यक्रम था। मानव भी ऑफिस के काम से बाहर था। माताजी को गिरने के बाद काफ़ी चोट लगी थी उनके हाथ में भी फ्रैक्चर हो गया था पर शोभा आज भी घर में रुकने को तैयार नहीं थी। उसके ससुर ने भी बहुत अनुनय किया पर उसके लिए इन सबसे ज्यादा दोस्तों के साथ घूमना था। शाम को मानव के आने पर भी शोभा घर नहीं पहुंची थी। वो अपना मस्ती करके घर पहुंची तब तक मानव ने उसको थोड़ा समझाने की कोशिश की पर उसने उल्टा मानव से ही झगड़ना शुरू कर दिया और अपना सामान पैक करके अपने मायके चली गई।
अब मानव के लिए बहुत कठिन समय था एक तरफ मानव की माता जी के हाथ में फ्रैक्चर,पिता की भी तबीयत भी खराब ऊपर से मानव की नौकरी। उसने थोड़े दिन की छुट्टी ली और शोभा को भी फोन किया। शोभा ने उससे कुछ बात भी नहीं की बल्कि पुलिस थाने में ही जाकर मानव के माता पिता के खिलाफ प्रताड़ना का केस कर दिया।पुलिस घर आई। पूरे मोहल्ले के सामने बेजत्ती हुई।मानव ने अपनी तरफ से शोभा से फिर बात करने की कोशिश की, वो किसी भी तरह अपने घर को बिखरने से बचाना चाहता था।
उधर शोभा कभी झूठी रिपोर्ट और वकील के नोटिस से मानव की जिंदगी को बरबाद करने पर तुली थी।अब उसने ये कहलवाया कि वो मानव के साथ रहने को तैयार है अगर वो अपने माता-पिता को छोड़ देता है। ये बात मानव के लिए बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं थी।उसने इस बात को नकार दिया। इससे शोभा और भी चिढ़ गई। उसके माता-पिता भी उसको ना समझाकर मानव में ही कमी निकाल रहे थे। नौबत तलाक तो पहुंच ही चुकी थी। इसी तरह कोर्ट कचहरी के चक्कर में काफ़ी समय बीत गया था। मानव ने अपने वकील के द्वारा कोर्ट के बाहर आपसी सहमति से तलाक के संदेश भिजवाया। शोभा को तो यही चाहिए था, उसको मानव से कोई दिली लगाव तो था नहीं। उसने एक बड़ी रकम उस तलाक के बदले में मांगी। मानव ने भी अपने माता-पिता की स्थिति देखते हुए अपनी जमा पूंजी शोभा को देते हुए उससे पीछा छुड़ाया।
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मानव पूरी तरह टूट चुका था उसको समझ नहीं आ रहा था कि शोभा ने उससे किस जन्म का बदला लिया है। मानव के माता-पिता भी बेटे के गम में घुलते हुए और उसके लिए सही लड़की का चुनाव ना कर पाने के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानते हुए एक-एक करके स्वर्ग सिधार गए। पिछले दो सालों में मानव की दुनिया ही बदल गई। जो घर सबके हंसी के ठहाके से गूंजता था वो आज वीरान हो गया था। ज़िंदगी के इतने भयावह पलों की उसने परिकल्पना भी नहीं की थी। इन सबसे घबराकर वो अपने शहर को छोड़कर कंपनी के दूसरे ऑफिस में चला गया।
जगह तो बदल गई थी पर अब उसके दिल में लडकियों और स्त्रियों के लिए पूरी तरह कड़वाहट आ गई थी। ऑफिस में भी वो सबसे दूर रहता। इसी ऑफिस में परिधि काम करती थी। सबसे हंसती-बोलती हर किसी की मदद के लिए तैयार। उसने मानव से भी बात करने की कोशिश की पर मानव को तो अब सब लड़कियों में त्रिया चरित्र ही नज़र आता था। एक दिन ऐसे ही कम्पनी का कोई प्रोजेक्ट को लेकर कोई बड़ी समस्या आ गई। जिन लोगों को सौंपना था उन्होंने उसमें ऐसी कमियां बताई कि वो प्रोजेक्ट हाथ से जा सकता था। उन्होंने समस्या निराकरण के लिए सिर्फ 2 घंटे का समय दिया। उस दिन मानव थोड़ा देर से आने वाला था। जहां समस्या आ रही थी वो भाग मानव ने ही किया था। प्रबंधन समिति काफी तनाव में थी। तब परिधि ने ही मानव के आने से पहले समस्या को दूर करके समय से पहले उस प्रॉजेक्ट को उपभोक्ता को सौंप दिया था।
अब प्रबंधन समिति ने मानव के साथ परिधि को भी उस प्रॉजेक्ट में बड़ी भूमिका दे दी थी। हालांकि परिधि ने ऐसा कुछ सोचकर ये नहीं किया था। जब मानव ऑफिस पहुंचा तो उसे सारी बात तो पता नहीं थी पर प्रबंधन समिति ने जब उसको परिधि के साथ काम करने के लिए सूचित किया, तब वो अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाया। उसने बाहर आकर परिधि को सबके सामने बहुत कुछ उल्टा सीधा सुना दिया। उसने यहां तक कह दिया कि वो लड़कियों की मानसिकता को बहुत अच्छी तरह से जानता है क्योंकि उनको सिर्फ अपनी शक्ल और अदाएं दिखाकर दूसरों से काम निकलवाना आता है। उसने प्रोजेक्ट में अपनी भूमिका भी ऐसे ही उल्टे-सीधे हथकंडों को अपनाकर सुनिश्चित की है। परिधि तो कुछ कह ही नहीं पाई और बस किसी तरह अपने आंसुओं को छिपाकर वहां से निकल आई।
अगले दो दिन जब परिधि ऑफिस नहीं आई और तब तक मानव को सारी बात भी पता चल चुकी थी। मानव को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो परिधि के ऑफिस ना आने से थोड़ा परेशान हुआ।फिर उसने ऑफिस से परिधि का पता लिया और उसके घर पहुंच गया। वहां पर वो नहीं थी। मकान मालिक से पता चला कि वो हॉस्पिटल में है। उनसे ही पता चला कि परिधि के माता पिता नहीं है,सिर्फ बड़ा भाई है,वो भी मानसिक रूप से असंतुलित है। उसको थैलेसीमिया जैसी दुर्लभ बीमारी भी थी जिसमें हर महीने उसके शरीर में रक्त चढ़ाया जाता था। छोटी होने के बाबजूद परिधि ही उसको संभालती थी और तो और स्वाभिमानी भी इतनी थी कि किसी से कोई मदद नहीं लेती थी।
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ये सब सुनकर मानव के दिल में उसके लिए काफ़ी इज्ज़त बढ़ गई। उसे अपनी कही बातों का बहुत अफसोस था। वो हॉस्पिटल पहुंचा और वहां पहुंचकर उसने परिधि से माफी मांगी। इस तरह उनकी दोस्ती शुरू हुई। अब धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे के करीब आ गए। परिधि भी मानव के बारे में सब कुछ जान गई थी। परिधि के प्यार ने बहुत हद तक मानव के मन से स्त्रियों के प्रति उपजी घृणा को कम कर दिया था। वो सही मायने में उसकी ठंडी हो गई जिंदगी में सर्दी की धूप बन कर आई थी।एक दिन मानव ने परिधि को शादी के लिए पूछा और खुशी खुशी वो प्यारे से बंधन में बंध गए। पिछली घटनाओं की स्याह अतीत पर परिधि ने अपने प्यार की रोशनी डाल दी थी। मानव को यकीन भी नहीं थी कि उसकी जिंदगी में परिधि के रूप में प्यार की वापसी भी हो सकती है। अभी वो ये सब सोच ही रहा था कि उसके मोबाइल की घंटी बजी। फोन परिधि का ही था जो उन दोनों के जुड़वा बच्चों के साथ अपने रिश्तेदार के यहां विवाह में सम्मिलित होने दो दिन के लिए गई हुई थी। जब परिधि को पता चला कि आज मानव ऑफिस नहीं गया क्योंकि महिला मुक्ति मोर्चा ने सड़क बंद की हुई थी। तब उसने अनुमान लगा लिया कि आज मानव को अपने अतीत से संबंधित कुछ याद आ गया होगा। उसने वातावरण को हल्का बनाने के लिए हंसते हुए कहा पतिदेव मैने एक पुरुष मोर्चा संस्था में आपके लिए बात की है,जिसमे केवल पुरुष की ही ज़िंदगी से संबंधित समस्याएं सुनी जाएगी। उसकी बात सुनकर मानव भी हंसने लगा और बोला जिसकी जिंदगी तुम जैसी पत्नी हो उसे कोई समस्या हो सकती है भला। शादी का घर था पीछे से किसी ने तू मेरी जिंदगी है, तू मेरी हर खुशी है गाना भी चला दिया था।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी,अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।जिंदगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जिसमें ऐसा लगता है कि सब खत्म हो गया हो,पर कुछ लोग हमारी ज़िंदगी में सर्दी की धूप बन कर आते हैं और सब कुछ संवार देते हैं। इस कहानी के द्वारा एक बात और मैं कहना चाहती हूं कि अत्याचार सिर्फ स्त्री के साथ नहीं होता, कई बार पुरुष भी इसका शिकार बनते हैं और कानूनी कार्रवाई की लंबी प्रक्रिया झेलते हैं। ये 21वी सदी है,हम लोगों को निष्पक्ष होकर सभी बातों को देखना चाहिए।
स्वरचित और मौलिक
डॉ.पारुल अग्रवाल,
नोएडा
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