तरकीब–कहानी -देवेंद्र कुमार

==

छोटे बाजार के मोड़ पर बालू दोसा कार्नर है। वहाँ हर समय ग्राहकों की भीड़ रहती है। उन्हें उस दुकान का दोसा खूब पसंद आता है। ग्राहक आते हैं, दोसे खूब बिकते हैं। बालू खुश रहता है, क्योंकि रोज़ अच्छी आमदनी होती है। परेशान कोई होता है तो रमन और छोटू। क्यों भला?

रमन को भट्टी के सामने खड़े रहकर फटाफट दोसे तैयार करने पड़ते हैं—जरा भी फुरसत नहीं मिलती। बालू के आर्डर आते रहते हैं, और रमन के हाथ मशीन की तरह चलते रहते हैं। उसी तरह छोटू को भी जल्दी-जल्दी प्लेटें साफ करके देनी होती हैं। जरा देर हुई नहीं कि बालू चिल्ला उठता है।

रमन को गर्मियों में परेशानी ज्यादा होती है। दुकान छोटी सी है, गर्मियों में उस का चेहरा पसीने से भीगा रहता है। पसीना माथे से नीचे बहता है, बस कभी कभी सिर को झटक कर पसीना गिरा देता है वह। कभी कभी मन में आता है—”अगर थोड़ी देर आराम कर सकता तो?” लेकिन मौका नहीं मिलता!

रविवार था, दुकान के सामने भीड़ थी। दोसे बन रहे थे। रमन और छोटू काम में लगे थे। छोटू धुली हुईं प्लेटें रखने आया तो देखा रमन का चेहरा पसीने से भीगा था। वह दोसे बनाने में जुटा था। खूब गरमी थी! छोटू ने एक कपड़े से रमन के माथे का पसीना पोंछ दिया। रमन हँस पड़ा। छोटू भी मुसकराया पर बालू के माथे पर बल पड़ गए। उसने यह सब देख लिया था। दिन में छोटू जब जब बरतन लेकर आया उसने हर बार रमन के माथे पर आया पसीना पोंछ दिया। बस, दोनों हँस पड़ते थे। कुछ बोलते नहीं थे।

शाम को बालू ने छोटू को बुलाया। कहा, “लगता है अब तेरा मन काम में नहीं लगता। तेरी छुट्टी कर दूँगा।”




कहा, “जब देखो रमन का पसीना पोंछता है। पैसे बरतन साफ करने के देता हूँ या रमन का पसीना पोंछने के? आगे भी यह सब किया तो बस तेरी नौकरी खत्म।”

छोटू चुपचाप बाहर आ गया। वह सोच रहा था। “मैंने क्या गलत किया। “

अगले दिन धूप तेज थी। काम चल रहा था। ग्राहक जल्दी मचा रहे थे। रमन के हाथ मशीन की तरह चल रहे थे। छोटू सिर झुकाए बरतन धोने में लगा था। उसने बीच-बीच में जब रमन का चेहरा देखा-पसीने से भीगा हुआ। धुले बरतन लेकर आया तो देखा बालू देख रहा है। छोटू ने कुछ सोचा फिर रमन के माथे से बहता पसीना पोंछ दिया। और फिर कंधे पर पड़े झाड़न से उसके चेहरे पर हवा करने लगा।

रमन को अच्छा लगा, पर उसने कहा, “जा भाग, मालिक इधर ही देख रहा है।”

शाम हुई। बालू उठा और छोटू से कहा, “आज फिर वही हरकत। आज तो सिर्फ पसीना ही नहीं पोंछा, उसे पंखा भी झल रहा था। तेरी छुट्टी। मैंने दूसरा छोकरा बुला लिया है।”

रमन चुप लेकिन दुखी था। उस के कारण छोटू की नौकरी जा रही थी। अब क्या करेगा, कहाँ जाएगा छोटू।”

छोटू ने कहा, “ठीक है मालिक, पर मैंने जो किया दुकान के फायदे के लिए।” बालू सुन रहा था।

“मालिक, कल मैंने कई ग्राहकों को कहते सुना था, “अरे देखो, देखो। देासे बनाते आदमी का पसीना दोसे के घोल में टपक रहा है। ऐसे गंदे दोसे कैसे खाएँगे हम।”




“फिर?”

“बस, वे लोग दोसा बिना खाए चले गए। मैंने सेाचा यह तो ठीक नहीं हुआ। अगर दूसरे ग्राहकों ने सुन लिया तो गड़बड़ हो जाएगी। इसीलिए मैंने रमन के माथे का पसीना पोंछा था।

बात बालू की समझ में आ गई। बोला, “तो पहले क्यों नहीं बताया।”

छोटू धीरे से हँसा। बालू के पीछे खड़ा रमन भी मुसकराए बिना न रह सका। छोटू ने कहा, “उस दिन जब मैं धुली हुई प्लेटें अंदर रखने आया तो मैंने देखा मक्खियाँ दोसे के घोल पर मँडरा रही हैं। इसीलिए जब बरतन रखने जाता हूँ तो झाड़न हिलाकर मक्खियों को उड़ाता हूँ और आप समझते हैं…”

बालू ने जान लिया अगर ग्राहकों में गंदगी की बात फैल गई तो नुकसान हो सकता है। बोला, “अच्छा!” छोटू और रमन ने एक दूसरे की तरफ देखा पर हंसे नहीं क्योंकि बालू की नज़र दोनों पर थी। पर दोनों की आँखें हँस रही थीं!

बालू ने फुर्ती दिखाई। बिजली वाले को बुलाकर कहा, “तुरंत दुकान में छोटा पंखा लगाओ। हवा सीधी रमन के मुँह पर रहे, भट्टी पर न लगे!”

पंखा लग गया। दोसे बनाते समय अब रमन के चेहरे पर उतना पसीना नहीं आ रहा था। दुकान में पहले की तरह भीड़ थी। दोसे बन रहे थे, छोटू के हाथ बरतन धोने में जुटे थे। अब उसे रमन का पसीना पोंछने की जरूरत नहीं थी। बालू पैसे गिन रहा था। उस दिन रमन और छोटू कई बार मुसकराए थे। तरकीब काम कर गई थी। और हाँ, दो दिन बाद बालू ने छोटू की पगार में दस रुपए बढ़ा दिए थे। वह सोचता था—”है तो छोटा पर दिमाग खूब चलता है इसका। “====

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!