हां, मौसी हम सब आ जायेंगे, आप जरा भी चिंता मत करिये, सब कुछ अच्छे से हो जाएगा, अनु दीदी ने अब शादी के लिए हां कर दी है तो धूम धड़ाके से शादी तो होगी। हम सब समय पर पहुंच जायेंगे। ये कहकर सीमा ने फोन रख दिया।
ये कोई उम्र है शादी करने की, समाज क्या कहेगा??
सीमा की सास तुरंत बोली, आजकल की औरतों को शर्म ही नहीं है, जब मन हुआ तलाक दे दिया और जब मन हुआ शादी कर ली, शादी ना हुई खेल हो गया, ईश्वर रिश्ते बनाकर भेजता है और इंसानों ने उसी पवित्र रिश्ते का मजाक बना रखा है।
मम्मी जी, अब अनु दीदी की मर्जी है और उन्हें शादी करके अपना जीवन जीना है तो हम कौन होते हैं?? उनकी अपनी इच्छा भी तो है, लोकेश भी अब बड़ा हो गया है,अनु दीदी खुद शादी करना चाहती है तो इसमें बुराई क्या है। जब पुरुष किसी भी उम्र में शादी कर सकते हैं तो औरतों पर उम्र की बंदिशें लगाने का हक भी इस समाज को नहीं है।
मेरे सामने अनु दीदी की जिंदगी यादें बनकर आ गई।
अनु दीदी शुरू से ही पढ़ने में तेज थी, उनके सिर पर नौकरी करने का भूत सवार था बस पढ़ लिखकर वो अपने लिए जीना चाहती थी, मुझसे कहती थी मुझे किसी से पैसे मांगना अच्छा नहीं लगता है, खुद की कमाई कैसे भी खर्च करो कोई रोकने वाला नहीं होता है, सोचना नहीं पड़ता है।
अनु दीदी अपने इरादों की अटल निकली और जब उनकी नौकरी लग गई तो वो बहुत खुश थी। घरवालों को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। उनके लिए लड़का देखा जाने लगा। थोड़ी कोशिशों के बाद दीदी के लिए वर चुन लिया गया और धूमधाम से उनकी शादी हुई, वो अपनी शादी में बहुत खुश थी, उनके चेहरे की चमक देखते ही बनती थी।
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जब अनु दीदी विदा हुई तो मैं तो बहुत रोई थी, आज भी वो दिन मैं भुल नहीं पाई।
मम्मी के मुंह से सुना था जब वो शादी होकर गई तो सब कुछ बहुत अच्छा था, घर में सास-ससुर थे और देवर ननद भी, उन्होंने सबको दिल से अपना लिया था।
शादी के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए छुट्टियां ली थी, जब उन्होंने ससुराल वालों से फिर से नौकरी करने को कहा तो सब आग बबूला हो गये।
नौकरी करने की क्या जरूरत है? हमारा बेटा कमा तो रहा है, तू नौकरी करेगी तो इतने लोगों का काम कौन करेगा? तेरे पिताजी ने तो कहा था कि तू शादी के बाद नौकरी छोड़ देगी, सास ने कहा।
अनु दीदी के लिए वो पल बहुत दुखदाई था,आखिर पापा ने ऐसे कैसे कह दिया, मेरे जीवन का इतना बड़ा निर्णय ले लिया और मुझे बताया भी नहीं। उनके पैरों से जमीन निकल गई।
हम घर के कामों के लिए मेड लगा लेते हैं, उसके पैसे मैं
दे दूंगी।
नहीं हमें तो बहू के हाथ का ही खाना खाना है, मेड के हाथों का नहीं, सास ने मना कर दिया।’
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अनु दीदी के पति राकेश जीजू ने भी चुप्पी साध ली, सिर्फ घर के लिए मैं अपना सपना जीना छोड़ दूं, अपनी नौकरी छोड़ दूं और आपके घर की नौकरानी बनकर रह जाऊं, आप तो मुझे सिर्फ घर के कामों के लिए ही लेकर आये हो, मैं ऐसा जीवन नहीं जी सकती हूं, मैं ये घर छोड़कर जा रही हूं, मैं अपना जीवन अपने हिसाब से जीना चाहती हूं।
उन्होंने राकेश जीजू को खूब मनाया बाद में वो भी बोले कि मुझे नौकरी वाली लड़की नहीं चाहिए थी, पर तुम नौकरी छोड़ दोगी इस शर्त पर शादी की थी।
ये सुनकर अनु दीदी बेहोश हो गई, उन्हें होश आया तो पता चला कि वो मां बनने वाली हैं।
अब तो अपनी बेकार की जिद छोड़ दें, पिताजी ने समझाया।
पिताजी आपने तो झूठ बोलकर मेरी शादी कर दी, पर ये मेरी बेकार की जिद नहीं है, ये नौकरी ये आत्मनिर्भरता मेरा जीवन है। मैं राकेश से तलाक ले लूंगी पर इस तरह घुटन की जिंदगी नहीं जीऊंगी।
उस जमाने में अनु दीदी ने तलाक ले लिया, रिश्तेदारों में उनकी बड़ी थू-थू हुई कि लड़की होकर खुद तलाक ले रही है। इन सबके बीच लोकेश का जन्म हो गया था, वो अपने बनाये हुए घर में रहने लगी, पिताजी के निधन के बाद मां भी उनके साथ रहने लगी।
अपनी नौकरी में उन्होंने कई ऊंचाइयों को छुआ, अब लोकेश भी बड़ा हो रहा था, वो भी पढ़ने बाहर चला गया और वहीं सैटल होने की सोच रहा था।
इधर अनु दीदी को अपने ही ऑफिस के मैनेजर ने शादी का प्रस्ताव रखा। अनु दीदी भी अकेलापन महसूस कर रही थी, और उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी भी नहीं थी तो उन्होंने भी हां कर दी। मौसी का आज इसलिए ही फोन आया था कि अनु शादी कर रही है।
लोगों और समाज के लिए बातें बनाना बहुत आसान है, किसी भी लड़की का सपना उनसे सहन नहीं होता है, बस लड़की या बहू अपने लिए कैसे जीले। आज भी कई लोगों की मान्यता है कि लड़की को घर संभालना चाहिए, नौकरी करती है तो क्या हुआ छोड़ दें।
औरत से ही हमेशा छोड़ने और त्याग करने की उम्मीद की जाती है, अगर वो नहीं मानती तो उसके स्वाभिमान को उसकी जिद बता दी जाती है। औरतें भी अपने प्रति जिद्दी हो सकती है।
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जब पुरुष किसी भी उम्र में शादी कर सकता है तो औरत भी कर सकती है। अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकती है।
जब पुरुष तलाक दे सकता है, दूसरी शादी कर सकता है तो औरत पर पाबंदी क्यों है?
हम सब अनु दीदी की शादी में गये और देखा कि वो बहुत खुश थी, और उनका बेटा लोकेश यही कह रह था कि मैं मम्मी के फैसले से बहुत खुश हूं, मुझे पापा मिल गये है और उन्हें जीवनसाथी, मैं अब निश्चिंत होकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकूंगा। मम्मी के बरसों का अकेलापन दूर हो जायेगा।
उनके जीवन में भी फिर से सपने देखने और खुशियों की उम्मीद जगी है।
मैं देख रही थी कि अनु दीदी का चेहरा एक नई उम्मीद से फिर से चमक रहा था।
पाठकों, ईश्वर ने स्त्री और पुरुष को बराबर बनाया है पर कुछ सामाजिक बंदिशें स्त्रियों पर लगा दी गई है, पुरूषों पर कोई बंदिश नहीं है, हमेशा स्त्रियों से ही त्याग की उम्मीद क्यों की जाती है?
#उम्मीद
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल