सासू मां ” ननद का बेटा” नहीं शिवम मेरी जिम्मेदारी है!! – मीनू झा  

तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बहू.…मेरे नवासे को डांटने की??

मम्मी जी.. मैंने शिवम को डांटा नहीं है सिर्फ समझाया है कि बातें इधर उधर करना बंद कर दें और ये सब छोड़कर पढ़ाई में ध्यान लगाए और कुछ भी नहीं..

मुझे मत सिखाओ..सब समझती हूं मैं..कांटे की तरह चुभता है ये तुम्हारी आंखों में “ननद का बेटा” है ना…मेरी बेटी भी बेचारी मजबूर हैं वरना...

आपको ऐसा नहीं लग रहा आप तिल का ताड़ बना रही हैं मम्मीजी..और अभी जो ये हरकत की है ना शिवम ने..आपके आते ही मेरी जो शिकायत लगाई है इसी के लिए मैंने उसे समझाया है कि…वो इन सब चीजों में ना उलझकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें

अभी भी तुम उसे दोषी ठहरा रही हो…और वो मुझसे हर बात क्यों नहीं कहेगा,आखिर इस घर में मेरे सिवा उसका सच में अपना है ही कौन जिससे वो अपनी बातें करेगा??

मम्मी जी आपकी आंखों पर ऐसा पर्दा पड़ा हुआ है कि मैं क्या अपना बेटा तक आपको अपना नहीं लग रहा…तो आपसे बहस ही क्या करना..पर मैं अभी भी यही कहती हूं कि मैंने जिस बात के लिए शिवम को समझाया उसमें उसकी ही भलाई है…

सास बहू की ये चिकचिक…रोज की बात थी पिछले एक सालों से जबसे सावित्री देवी का इकलौता नवासा बारह वर्ष का शिवम उनके घर रहकर पढ़ने आया था…सावित्री जी के दामाद सरकारी अफसर थे पर उनकी पोस्टिंग पिछले साल सुदूर देहात में हो गई थी जहां आसपास कोई ढंग का स्कूल नहीं था तो… तो विनय की बहन ने अगली पोस्टिंग तक शिवम को भाई के घर पर रखकर पढ़ाने का निर्णय लिया था… इसमें भाई विनय और भाभी रचना को भी कोई दिक्कत नहीं थी..।पर साल भर होते होते रचना ने पाया कि शिवम अपनी नानी के पास उसकी शिकायतें करने लगा है…शायद नानी के साथ बैठकर हिंदी धारावाहिकों देखने और पढ़ाई से बचने के तरीके ढूंढने का असर था …।

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रचना एक कम बोलने वाली पर दिल की बहुत अच्छी लड़की थी, जिसके कारण लोग उसे गलत भी जल्दी समझ जाते थे।पर अपने ससुराल वालों से उसके संबंध अच्छे ही थे,पर इन बातों से रचना और सावित्री का ठीक-ठाक संबंध भी बिगड़ने लगा था आए दिन रचना की बातों को शिवम नमक मिर्च लगाकर नानी को सुना आता और नवासे के प्यार में अंधी नानी…बदले में रचना को चार बातें सुना देतीं..।एक और भी कारण था कि ज्यादा पढ़ी लिखी ना होने के कारण सावित्री तो देख नहीं पाती थीं कि शिवम पढ़ रहा है या समय गुजार रहा है जबकि रचना की नजरों से ये बातें छिपती नहीं थी तो वो शिवम को टोक देती या उससे पूछ लेती.. नादान शिवम को मामी पर इन बातों का भी गुस्सा रहता तो वो सारी खुन्नस उसे नानी से डांट दिलवाकर निकालता…।और बात बात में सावित्री जी का कहना “ननद का बेटा” है ना रचना के दिल को तार तार कर जाता..।

शाम को विनय के आने के बाद भी जब सावित्री जी ने उसके भी पास रचना के बारे में कुछ से कुछ बोला तो थंके मांदे विनय ने आकर भी अपना सारा गुस्सा रचना पर निकाल दिया

तीन चार साल बहुत ज्यादा दिन नहीं होते रचना…अरे दीदी जीजाजी के पास कोई कमी थोड़े ही है वो तो बच्चे को बड़े से बड़े हाॅस्टल में रख सकते थे पर घर का माहौल और अपनों के साथ के लिए ही तो यहां छोड़ा है…पर तुम हो कि हाथ धोकर उसके पीछे पड़ी हो…बच्चा है ना वो भी आखिर.. क्यों बिगड़ती रहती हो उसपर इतना?

ठीक है अगर आप मां बेटे को यहीं लगता है कि मैं शिवम की दुश्मन ही बन गई हूं तो आज के बाद मैं शिवम को कुछ कहना ,समझाना,पढ़ाना,सिखाना तो दूर उससे बात भी नहीं करूंगी…जब बुरी ना होते हुए भी आप सबको मैं ही बुरी लगती हूं तो यही सही….



सचमुच उस दिन के बाद से रचना ने शिवम को टोकना छोड़ दिया…विनय दिन भर तो होता नहीं था और सावित्री तो कुछ कहती नहीं थी तो शिवम के मजे हो गए थे…स्कूल से आने के बाद दिनभर फोन,गेम और कुछ से कुछ करता रहता..।

एक दिन ननद का फोन आया तो रचना ने रिसिव नहीं किया..फिर सावित्री जी के फोन पर ननद ने रचना से बात करने की इच्छा जाहिर की ।

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भाभी…कैसी हो? शिवम ज्यादा परेशान तो नहीं करता..थोड़ा शरारती तो है वो… मैं भी परेशान हो जाती थी..

नहीं जीजी ऐसी कोई बात नहीं है…

 सुनो ना भाभी…आज शिवम की क्लास टीचर का फोन आया था…पिछले एक महीने से ना वो ढंग से होमवर्क करके ले जा रहा है,ना क्लास में अच्छी पर्फोर्मेंस है ना वीकली टेस्ट में… मुझे पता है भाभी आपसब उसे बहुत प्यार करते हो…पर प्यार राह दिखाने वाला होना चाहिए..राह भटकाने वाला नहीं… मम्मी और विनय को मैं कितना भी समझा दूं वो तो शिवम को कुछ कहेंगे नहीं…आपको ही कड़ा होना पड़ेगा…कभी समझाकर कभी डांटकर या कभी चपत लगाने की जरूरत पड़े तो वो भी कर के शिवम को सही राह पर रखना होगा…

पर मैं….



मुझे पता है भाभी…मम्मी और आपके संबंध शिवम की वजह से खराब हो गए हैं…और आप शिवम को कुछ कहती हो तो मम्मी और विनय आपसे नाराज़ हो जाते हैं… मैं बहुत समझाने की कोशिश कर चुकी हूं मम्मी को पर वो नहीं समझती…आपके सामने दो बातें हैं भाभी…या तो पूरी तरह शिवम को भविष्य के हाथों सौंपकर आप निश्चिंत हो जाओ…या फिर आज मम्मी और विनय  की चार बातें सुनकर भी आप शिवम को एक सही इंसान बना दो…जानती हूं मुश्किल है गलत ना होकर भी सबका कोपभाजन बनना…पर एक बच्चे के भविष्य के लिए भाभी…!!!

रचना इस बात से खुश थी कि ननद ने उसे गलत नहीं समझा…शिवम को उसने टोकना तो छोड़ दिया था पर घर की सफाई के समय उसके नोटबुक वगैरह पलट लेती और दुखी भी होती थी… पर… कुछ नहीं कहती..बच्चा आखिर किसी का भी हो…एक संवेदनशील और पढ़ा लिखा इंसान उसे भटकते देख आंख नहीं मूंद सकता,और आज तो अपने बेटे की जिम्मेदारी भी ननद ने उसके कंधे पर डाल दी थी जिसे उसे निभाना था।

अगले दिन सटरडे था…नाश्ते के बाद रचना ने कहा–

शिवम अपनी सारी बुक्स और नोटबुक्स लेकर मेरे कमरे में आ जाओ…

शिवम ने आश्चर्य से नानी की तरफ देखा तो नानी ने समझाया —

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जा बच्चे…पढ़ने के लिए ही तो बुला रही है ना मामी

पर नानी…मामी मुझे फिर डांटेगी तो.??

अब पढ़ोगे नहीं तो डांटूगी ही नहीं मारूंगी भी समझे–रचना ने स्वर कड़ा करते हुए कहा तो सावित्री उसकी तरफ आंख फाड़ फाड़ कर देखने लगी।

हां मम्मीजी… मारूंगी भी… क्योंकि ये मेरी ननद का बेटा नहीं…मेरी जिम्मेदारी है…जिसके साथ न्याय नहीं करके कल को मैं इससे ही नहीं अपने आप से भी नजरें नहीं मिला पाऊंगी…जीजी ने शिवम को कुछ सोचकर ही हमारे पास छोड़ा होगा ना…आप मेरे रास्ते में ना आएं प्लीज़ —कहकर रचना अपने कमरे में चली गई और उसके पीछे पीछे रोनी सूरत बनाए अपना बैग टांगें शिवम भी…।

मीनू झा  

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