रवीद्र जी जैसे ही दुकान में घुसे दुकान के मालिक चमनलाल ने उन्हें आदर से बिठाया और उनके मना करने के बावजूद लड़के को चाय लेने के लिए भेज दिया..
उसके बाद चमनलाल ने पूछा, “कहिए रवीद्र जी क्या सेवा करूँ रवीद्र जी ने कहा कि एक साड़ी दिखलाइए…
रवीद्र जी चमनलाल की दुकान के पुराने कस्टमर है…इसलिए वो जानते हैं कि रवीद्र जी की पसंद हमेशा ऊँची होती है और पैसे का मुँह देखना वो नहीं जानते…सो उन्होंने एक से एक बढ़िया साड़ियों का ढेर लगा दिया….
रवीद्र जी ने साड़ियों की क्वालिटी को देखते हुए कहा, “चमनलाल भाई इतनी हैवी नहीं कोई हल्की सी साड़ी दिखलाइए…
यह सुनकर चमनलाल को विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने कहा, “हल्की और आप….
क्यों मज़ाक़ कर रहे हो रवीद्र जी ….भला हल्की साड़ी का क्या करेंगे आप….
रवीद्र जी ने कहा, “ऐसा है चमनलाल भाई हमारी माँ अब बूढ़ी हो गई है अब कहीं जाना तो है नहीं तो घर पर महंगा साड़ी पहना कर क्या करेगी मेरी पत्नी अपनी पुरानी साड़ी दे रही थी पहनने के लिए जो सिर्फ एक बार ही पहनी थी लेकिन माँ की जिद है की वो नई साड़ी ही पहनेगी उन्होंने कई बार मुझसे कहा है कि रवीद्र बेटा मुझे एक अच्छी -सी नई साड़ी ला के दे। तेरी पसंद बड़ी अच्छी होती है। पहले भी तूने साड़ी लाकर दी थी जो बहुत सुंदर थी और कई साल चली थी…
अब चमनलाल ने सामने फैली हुई साड़ियों के ढेर को एक तरफ़ सरकाकर कुछ मीडियम क़िस्म की साड़ियाँ खोल दी…
रवीद्र जी ने निषेधात्मक मुद्रा में सिर हिलाते हुए कहा कि और दिखलाओ….
चमनलाल हैरान था पर ग्राहक की मर्ज़ी के सामने लाचार भी…
उसने सबसे हल्की साड़ी का बंडल खोला और साड़ी रवीद्र जी के सामने फैला दी…..
रवीद्र जी ने साढ़े चार सौ रुपये की एक साड़ी चुन ली और उसे पैक करवाकर घर ले आए और माँ को दे दिया साड़ी पाकर सरिता देवी बड़ी खुश हुई….
बात ये नहीं थी कि सरिता देवी के घर में किसी चीज़ की कमी थी या उसके बेटे-बहू उसके लिए कुछ लाकर नहीं देते थे, पर वो अपने बेटे पर अपना हक समझती और जताती रहती थी। रवीद्र जी पर तो वह और भी ज़्यादा हक जताती थी ; क्योंकि रवीद्र जी उनके सबसे बड़े बेटे थे।
एक दिन रात के वक्त सरिता जी के सीने में तेज़ दर्द हुआ और दो दिन बाद ही रात बारह साढ़े बारह बजे के आसपास वो इस संसार से सदा के लिए विदा हो गई…
उनकी अंत्येष्टि के लिए अगले दिन दोपहर बारह बजे का समय निश्चित किया गया…
सुबह-सुबह चमनलाल अपनी दुकान खोल ही रहे थे कि रवीद्र जी वहाँ पहुँचे और कहा, “भाई माँ गुज़र गई है एक बढ़िया सा साड़ी दे दो पंडित जी को दान करना है
चमनलाल ने बड़े अफ़सोस के साथ कहा, “ओह….
अभी कुछ दिन पहले ही तो आप उनके लिए साड़ी लेकर गए थे कितने दिन पहन पाईं बेचारी… उसके बाद चमनलाल ने साड़ियों का एक बंडल उठाकर खोला और उसमें से कुछ साड़ियाँ निकाली… रवीद्र जी ने साड़ियाँ देखीं तो उनका चेहरा बिगड़-सा गया और उन्होंने कहा कि चमनलाल भाई ज़रा ढंग की साड़ियाँ निकालो…
कई बंडल खुलवाने के बाद रवीद्र जी ने जो साड़ी पसंद की उसकी क़ीमत थी पच्चीस सौ रुपए….
चमनलाल ने कहा, “रवीद्र जी वैसे आपकी मर्ज़ी पर दान मे इतनी महँगी साड़ी कौन देता है….
रवीद्र जी ने कहा-चमनलाल जी…
“बात महँगी-सस्ती की नहीं, हैसियत की होती है भाइयो और रिश्तेदारों को पता तो चलना चाहिए कि मेरी हैसियत क्या है और उसकी पसंद कितनी ऊँची है……
दोस्तों मुझे याद है मेरे पिताजी अक्सर एक बात कहते थे…
मुर्दे को पूजे ये दुनिया…
जिंदे की इज्ज्त कुछ भी नहीं….
मतलब-जितना अपनेपन का दिखावा या सहारा मरनेवाले इंसान या उसके परिवार से बाद मे करते है अगर जीते जी उतना सहारा बन जाए तो शायद बात कुछ और हो…
कहने को मरनेवाले को कंधा देना पुण्य मानते है लोग …
वही कंधा या सहारा जीते जी दे दे तो बात कुछ और ही हो…
आशा है आप कहानी की भावनाओं को बखूबी समझ गए है