पंखुड़ी आईसीयू में कितने ही सुइयों के बीच जकड़ी हुई थी, आज बारहवाँ दिन था लेकिन उसके हालत में कोई सुधार नहीं हुआ था, स्क्रीन पर चलते टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं अब सीधी होने को थी, ऐसा लग रहा था पंखुड़ी जीने की कोशिश ही नहीं कर रही थी, वह बीमारी के पहले दिन से बेसुध पड़ी थी, शायद उसे जीने की कोई भी ख्वाहिश नहीं रही थी।
वह सात महीने की गर्भवती थी, बारहवें दिन बस पंखुड़ी की सांसे बाकी रही, बच्चा पेट में दम तोड़ चुका था अब डॉक्टर ने कोई उम्मीद नहीं दिखाई थी बस पंखुड़ी भी अपने आखिरी सांसे गिन रही थी। और अंत में वह भी इस दुनिया से मुंह मोड़ गई।
पंखुड़ी जिस घर में ब्याह कर आई थी, यहां उसके सास ससुर, छह ननदें और जेठ जेठानी और उनके चार बच्चे थे, उसके पाँच ननदें बड़ी थी, उनकी शादी हो चुकी थी सिर्फ एक छोटी नन्द उनके साथ रहती थी।
घर में कमाऊ पूत सिर्फ उसके पति अनिल थे, उसके जेठ की भी कोई स्थाई आमदनी नहीं थी, कुल मिलाकर सारे खर्चे उसके पति अनिल पर था।
पंखुड़ी शुरू से ही कम बोलने वाली लड़की थी वह शांत स्वभाव की थी। उसके घर में नंदों का आना जाना लगा ही रहता था, कभी एक नंद आए कभी दूसरी।
पंखुड़ी अपने सारे कर्तव्य चुपचाप निभाती थी नंदो को शगुन देना, उनके साथ खाने पीने का ध्यान रखना, सारे काम वह अच्छे-अच्छे निभा देती थी, लेकिन कम बोलने की वजह से ननदों को शिकायत ही रहती थी, उन्हें लगता इसको हमारा आना जाना पसंद नहीं आता फिर कुछ दिनों के बाद छोटी नंद की भी शादी हो गई, सारे खर्च अनिल ने ही उठाया। उसके बड़े भाई से तो अपने ख़र्चे पूरे नहीं होते थे तब तक पंखुड़ी तीन बेटों की मां बन चुकी थी।
अब वह पति से बोल भी देती थी कि सारे कर्तव्य हमारे ही हैं, माँ पिता जी को देखना, आपकी बहनों को देखना, क्या सब हमारे जिम्मे है। बड़े भैया भाभी का कोई जिम्मेवारी नहीं।
पर अनिल को कुछ नहीं सूझता था, वह पंखुड़ी की बातों को चुटकियों में उड़ा देता और वही करता जो उसे अच्छा लगता पंखुड़ी अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती, हाँ पर अब उसने घर के कामों से हाथ खिंच लिया था।
उसका बड़ा बेटा 6 साल का हो गया था लेकिन स्कूल नहीं जाता था पंखुड़ी अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती कि मां बहनों पर उड़ाने के लिए बहुत पैसे हैं पर बच्चों का भविष्य नजर नहीं आता।।
इसी बीच पंखुड़ी ने महसूस किया कि उसके गर्भ में उसका चौथा बच्चा पल रहा है वह बच्चा नहीं चाहती थी लेकिन अब समय निकल चुका था उसका तीसरा महीना चल रहा था। वह कुछ नहीं कर सकती थी।
एक तो बच्चा ऊपर से दुबली पतली सी पंखुड़ी, सातवें महीने में जाते जाते अचानक उसे बुखार हुआ लेकिन, चुपचाप बिस्तर पर पड़ी रही, जैसे उसने मरने की ठान ली हो,
वह आंखें ही नहीं खोल रही थी दवाइयों का भी उस पर कोई असर नहीं हुआ था उसकी तबीयत इतनी खराब हो गई कि उसे आईसीयू में जाना पड़ा, ऐसा लगता था वह जीना नहीं चाहती थी, या अपनी जिम्मेदारियां निभाते निभाते थक चुकी थी।
साल भर पहले दोनों भाई भाइयों का बटवारा हो चुका था, अनिल ने अपना अलग घर बना दिया था अनिल अपने माता-पिता को अपने साथ ही रखता था लेकिन माता-पिता अपने बड़े बेटे का ही पक्ष लेते थे।
पंखुड़ी जो कुछ भी बनाती अपने बड़े बेटे को बिना खिलाए नहीं खाते थे… घर में राशन भी आता तो पहले जेठ के घर ससुर जी राशन डाल आते… क्या पता जिम्मेदारियों से, या सास-ससुर और घरवालों के दोहरे व्यवहार से, या पति के बेरुखी से, लेकिन पंखुड़ी अब थक चुकी थी, और नहीं जीने की आस उसे दूसरी ही दुनिया ले गई ।
उसकी अंतिम यात्रा के समय छोटा बेटा जो अभी डेढ़ साल का था बिलक बिलक कर रो रहा था, वह अपने मां को ढूंढ रहा था उसकी बुआ उसे संभाल रही थी पर वह रोए जा रहा था उस मासूम को क्या पता था कि उसने क्या खो दिया है।
पंखुड़ी के जाने के बाद एक नई समस्या खड़ी हो गई बच्चों का क्या हो, सारी उम्र अपने बड़े भाइयों के बच्चों को पालने वाले अनिल की भाभी ने उसके बच्चे लेने से इनकार कर दिया उसका कहना था- कि मैं खुद अपना काम नहीं कर सकती बीमारियों से घिरी हुई हूं।
अनिल ने ड़े बेटे को हॉस्टल भेज दिया दूसरा बेटा अपने दादा दादी के पास रहने लगा और छोटे बेटे को एक बुआ अपने पास ले गई,
अकेले अनिल और पंखुड़ी, बहन माता पिता भाई भाभी और उनके बच्चों को संभालते थे, लेकिन उसके तीन बच्चे इतने स्वार्थी लोगों से नहीं संभाले जा रहे थे, कुछ ही दिनों में अनिल ने शादी कर ली, लेकिन उसकी दूसरी पत्नी महीने भी उस घर में नहीं टिक पाई और उसने अनिल से डिवोर्स ले लिया अनिला बहुत कुछ समझ चुका था उसने तीसरी शादी की क्योंकि बच्चों को संभालने वाला भी कोई चाहिए बस उसके माता-पिता बूढ़े हो चुके थे उसने तीसरी शादी किया लेकिन एक एक बड़ी उम्र की तलाक शुदा औरत से शादी किया, वह कभी माँ नहीं बन सकती थी, वह ख़ुश थी उसे पाले पलाए बच्चे जो मिल गए थे।
उसने आते ही इस घर के नियम बदल डाले, सबसे पहले उसने बड़े भैया भाभी के घर से लेना देना रोक दिया, सास ससुर को भी बोल दिया मेरे पति के पैसे लुटाने की जरूरत नहीं है, वह बच्चों को हॉस्टल से घर ले आई, उसका व्यवहार देख कर ननदों ने आना-जाना कम कर दिया
बच्चों के सारे काम करती, जरूरत पड़ने पर उन्हें डांट भी देती भले किसी को बुरा लगे, ननदों ने बात फैला दी कि सौतेली माँ बच्चों को मारती है, पर वह उनकी बातों को सीरियस नहीं लेती थी,।
बच्चे भी स्वस्थ हो गए, सब सही हो गया, पर अनिल को एक बात चुभती, कि शायद पंखुड़ी को इतना ही जीना था, पर मैंने अगर उसे प्यार, अपनापन और खुशी दी होती तो, या फिर पंखउड़ीने भी इन स्वार्थी रिश्तों के बीच अपने स्वार्थ का सोचा होता तो वह कम से कम दुःखी होकर तो इस दुनिया से नहीं जाती।
#स्वार्थ
मौलिक एंव स्वरचित
सुल्ताना खातून
दोस्तों क्या अनिल की तीसरी पत्नी का स्वार्थी होना गलत था, या फिर उसकी पहली पत्नी का इतने सारे स्वार्थी रिश्तों के बिच निःस्वार्थ होना, क्या उसके पहले पत्नी को ही इस घर के नियम बदल डालने चाहिए थे कमेंट बॉक्स में मुझे जरूर बताएं,
आपकी राय हमे प्रेरणा देती है, धन्यवाद