मेरा दिल, दिमाग़ बिल्कुल ही काम नहीं कर रहा है,
बस रात दिन ये ही सोचता रहता है कि आखिर मुझे छोड़कर ऐसे कैसे जा सकते हैं आप बाबू जी,
मुझसे ऐसी अनजाने में क्या ग़लती हो गई,,
आप तो बहुत ही कर्मठ, आत्मस्वाभिमानी ,परम संतोषी, ईमानदार, नियमित दिनचर्या वाले और गायत्री मां तथा गुरु जी के परम भक्त थे,,
सारी जिंदगी आपने परोपकार, जानवर और गौ सेवा , किया,
चाहे बरसात हो, तपती धूप हो या ठंडी के दिन हो, खाली पैर आप पूरी कालोनी में फूल तोड़ते हुए चक्कर लगाते,,चाहे छोटा हो या बड़ा सबसे हाथ जोड़कर प्रणाम, नमस्कार करते,, मैं कहती, बाबू जी, ये रास्ते चलते सबसे आप नमस्कार क्यों करते हैं,आप कहते,,,,,बेटा, सबके ह्रदय में वास करने वाले प्रभू को प्रणाम करता हूं,, सबके अंदर ईश्वर हैं ना,बस इसी बहाने उन्हें बारबार याद कर लेता हूं और हाथ जोड़ लेता हूं,, और बिना चप्पल पहनें जो सड़कों पर चलता हूं, तो इससे एक्यूप्रेशर पैरों में होने के कारण आज़ नवासी साल में भी मुझे चश्मा नहीं लगा, और मैं अखबार, पत्रिकाएं, अच्छी तरह पढ़ लेता हूं, टीवी, लैपटॉप देख लेता हूं,,है कि नहीं,,
मैं हैरान होकर रह जाती,, सही तो कह रहे हैं,,
हमेशा से ही बापूजी के समर्थक आप प्रतिदिन डायरी में सुबह से देर रात तक दिन भर की एक एक बात लिखते,,
सादा जीवन उच्च विचार,का मूलमंत्र आपने जिंदगी भर अपनाया,,
आप एक बड़े साहित्यकार और कवि भी थे, बड़े बड़े साहित्यकारों जैसे आदरणीय माखनलाल चतुर्वेदी जी के साथ आपने मंच पर कविता वाचन किया, गायत्री विधि विधान से आपने ना जाने कितने हवन यज्ञ कराये,दीप पूजन कराया, शादियां संपन्न करवाई,सवा लाख गायत्री मंत्र का अनवरत जाप करते हुए इस मंत्र को सिद्ध किया,, कितने भूत प्रेत से पीड़ित मरीजों को इस मंत्र से आपने मुक्ति दिलाई,,
जाने के दो महीने पहले आप अपने शंखनाद से कालोनी को गुंजायमान कर देते थे,आप कहते इससे फेफड़े मजबूत रहते हैं,
कोई भी मौसम हो, सुबह चार बजे से आपकी दिनचर्या, पूजा पाठ शुरू हो जाती,, अपने से गरम पानी पीने के लिए थर्मस में भरना, नहाने के लिए गरम पानी करना , पूजा के बाद काॅफी बना कर पीना औरों को भी पिलाना,,
मैं कहीं बाहर रहूं तो खाना भी बना लेना, बाजार से सब सामान लाना, रात्रि के तीन बजे से आप मानसिक गायत्री मंत्र जपते रहते।।, तीन महीने पहले तो आप पूरी तरह से स्वस्थ थे,, फिर ऐसा क्या हुआ,,, क्यों आप टूटते चले गए,,
धीरे धीरे आपने खाना पीना कम कर दिया, आपने कहा, गांव चलो, मैं आपको लेकर गांव गई, फिर कहा, वहां चलो, यहां आ गई, फिर दिल्ली कहा, वहां ले गई फिर हरिद्वार शांति कुंज ले चलने को आपने कहा, वहां ले गई।
जैसा जैसा आप कहते गये, मैं करती गई, तो क्या आप ने ये सोच लिया था कि आपको इस नवरात्रि में मां के चरणों में प्रणाम करने जाना ही है,,
एक महीने पहले ही आपने घोषित कर दिया था कि मैं अब दुनिया से जाने वाला हूं,पर मैंने क्यों नहीं आपकी बात को गंभीरता से लिया,, आपके जाने के आखिरी दिन, सुबह जब मैं आपको एक एक चम्मच खीर खिला रही थी,तब आप बारबार झुक कर मेरे पैर पकड़ रहे थे, मेरे सिर पर हाथ फेर रहे थे, मैं मूरख समझ ही नहीं पाई कि आप मुझे अलविदा कह रहे हैं,, मैं तो बस आपका हाथ पकड़ कर आपके माथे पर हाथ फेर कर रोने लगी, नहीं, बाबू जी, आपको स्वस्थ होना है, आप जल्दी से अच्छे हो जाईए, भगवान मुझे इतनी ताकत दें शक्ति दें कि मैं आपकी सेवा कर सकूं, और हम बाप बेटी रोते रहे,आपकी वो करुण दृष्टि से मुझे देखती हुई आंखें भूल नहीं पा रही है, शाय़द आप सोच रहे थे कि, बिट्टी,अब तो तुम अकेले ही रह जावोगी,, मेरी खूब सेवा किया अब मैं तुम्हें सबसे मुक्त करता हूं,
अस्पताल में भी आप अंत तक मुझे उठ उठ देखते रहे कि मैं आपके पास हूं या नहीं,,आप हमेशा ही हे मां,हे मां, कहते रहते थे, उस क्षण भी शायद आप मुंह खोल कर अस्पष्ट कुछ बोले और एक लंबी सांस ली और हमारे देखते, देखते आप शायद, हे मां ,कह कर अपनी गायत्री मां के चरणों में हाजिरी लगाने नवरात्रि के तीसरे दिन पहुंच गए,,
मेरे साथ ही सब आश्चर्य चकित रह गए,कि अभी तो सबको देख रहे थे, इशारा करके पेन मांगा पेपर पर कुछ लिखने की कोशिश किए और अनंत यात्रा पर निकल पड़े,,
आप तो बाबू जी चले गए,, मां ने आपकी पूजा और भक्ति का आपको अपने चरणों में स्थान देकर प्रतिफल दे दिया,पर मेरा क्या,,आप करीब बीस सालों से मेरे साथ रह रहे थे,अब आप के बिना मैं अकेले कैसे रहूंगी,,आप की मुझे आदत पड़ गई है,, आपका बिछोह मैं सह नहीं पा रही हूं,,आपके सिवाय मुझे कोई दिखाई नहीं दे रहा है,,
मुझसे ऐसी क्या ग़लती हो गई जो आप इतनी जल्दी चले गए,, आप के लिए तो अच्छा ही हो गया,
मैं जरूर स्वार्थी हो रहीं हूं, अपने बारे में ही सोच रहीं हूं,,
हो सके तो जाने अनजाने गलतियों के लिए मुझे माफ़ कर दीजियेगा
आप क्या ऊपर जाकर मुझे याद कर रहें हैं, मेरे नैना क्यों भर भर आते हैं , मैं क्यों बात बेबात रोती हूं, मेरे मन में क्यों हाहाकार मचा रहता है,,अब तो आप अपने पूरे परिवार के साथ मिल गये हैं, मां है, दोनों प्यारे भाई हैं,, और हां आपके दामाद समधी और समधिन भी तो हैं,सब मिलकर अच्छे से रहिए,बस मुझे दुआ देते रहिए कि मैं अपनी शेष बची जिम्मेदारी पूरी कर सकूं,,आप मेरी चिंता बिल्कुल ना करें।। मैं सब काम निपटा कर आऊंगी ना आपके पास,,तब तक के लिए मेरा इंतजार करिए,,
आपके श्रीचरणों में मेरा शत् शत् प्रणाम
आप जहां भी रहें, भगवान आपको खुश रखें
आपकी बेटी,,,
सुषमा,,,