अभिमान – पुष्पा पाण्डेय

दूर के रिश्तेदार के घर शादी में गयी थी। वहीं एक अन्य रिश्तेदार से पता चला कि मंटू की शादी हो गयी। मंटू , हाँ वही मंटू जो हमारी चचेरी बहन का बेटा है। उसकी शादी की बात सुन मन को बहुत सुकून मिला। मंटू और उसकी माँ मीरा की याद आते ही दिल कराह उठा। मीरा दीदी के साथ मेरा व्यवहार अप्रिय या निन्दनीय भी कह सकते हैं। मीरा दीदी अनाथ थी। दादी की छत्र-छाया में पली बड़ी हुई थी। बचपन से लेकर बड़े होने तक बात-बात पर मीरा दीदी को अपमानित करने का एक भी मौका नहीं छोड़ती थी। चूँकि मेरे पिता जी शहर में नौकरी करते थे  तो मेरा अभिमान चरमोत्कर्ष पर था। चाहे खूबसूरती की बात हो, पहनावे की बात हो या फैशन की। बिन माँ-बाप की अनाथ मीरा दी सबकुछ खामोशी से सह लेती थी। जब अपमान सहने की क्षमता समाप्त हो जाती थी तो सिर्फ दादी के सामने आँसू बहा अपना मन हल्का कर लेती थी। दादी के पूछने पर झूठ का सहारा ले मुकर जाती थी।  आज याद करती हूँ तो खूद से नफरत होने लगती है। दीदी की शादी भी हो गयी तभी भी बचपन का अभिमान कम नहीं हुआ था,क्यों कि अब तो खुद भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही थी। उच्च शिक्षा भी मुझे विनम्र नहीं बना सकी। विशेष रूप से मीरा दीदी के साथ ही मेरा द्वेष था, क्योंकि उसी के कारण दादी का प्यार मुझसे छीन गया था।

शादी हुई फिर भी मायके में ही रहती थी। ससुराल सम्पन्न नहीं था। बारह साल के लम्बे इंतजार के बाद एक बेटा हुआ। बेटा होते ही कुछ महीने बाद पति चल बसे। अब मायके में ही बच्चा पल रहा था। उसके बच्चे से भी मुझे खास लगाव नहीं था। अब तो मुलाकात कभी-कभार ही होती थी। तीन साल बाद वो भी चल बसी। जब एहसास हुआ बहुत देर हो चुकी थी।

         सभी मानसिक विकारों में अभिमान और द्वेष परमात्मा के लिए भी असहनीय है। मुझे जैसे-जैसे उस अभिमान का जवाब मिलता गया मैं मीरा दीदी को याद करती गयी। आज जीवन की इस संध्या में अक्सर मीरा दीदी की याद आ जाती हैं और दो बूँद गालो पर लुढ़क जाते हैं। मैं मंटू के लिए चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी। उसे भी तो दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। दादी की मौत के बाद वह अपने घर गया और वहाँ उसकी परवरिश  एक अनाथ बच्चे की तरह ही हुई।

         आज मैं लाचार विवश स्वयं दूसरे पर आश्रित हूँ, ये मेरे अभिमान का ही नतीजा है। जब कभी भी मंटू से मुलाकात होती थी तो उसे जबरदस्ती कुछ आर्थिक सहायता के सिवा कुछ नहीं कर पायी। आज उसकी शादी की बात सुन दिल को एक सुकून मिला। मंटू आर्थिक परेशानी के कारण शादी नहीं करना चाहता था, लेकिन भगवान की कृपा से उसकी नौकरी लग गयी और देर से ही सही शादी हो गयी। सुनी थी कि मीरा दीदी को मरने के समय इस बात का संतोष था कि मेरा वंश समाप्त नहीं हुआ। मंटू का घर बस गया, दीदी का सपना साकार हो गया। ———–

कब निशा विदा हुई पता नहीं चला। चिड़ियों की चहचहाहट ने भोर का संकेत दिया और एक बार फिर पश्चाताप के आँसू को पोंछती हुई बिस्तर पर उठकर बैठ गयी।

स्वरचित

पुष्पा पाण्डेय

राँची,झारखंड।

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