आखिरी बच्चा भी रिक्शा से उतरकर चला गया। भरतू की ड्यूटी खत्म हो गई थी लेकिन अभी पूरी तरह नहीं। साईकिल रिक्शा की सीट से उतरकर उसने पीछे झांका तो अन्दर एक किताब पड़ी दिखाई दी। अंदर का मतलब रिक्शा के पीछे एक केबिन जुड़ा हुआ है। उसमें छोटे बच्चे बैठते हैं। उनके बस्ते हुकों के सहारे केबिन के सब तरफ लटके रहते है| भरतू ने बड़बड़ाते हुए किताब उठा ली और उलट पलटकर देखने लगा।
हर रोज ऐसा ही होता है। कोई न कोई बच्चा कुछ न कुछ भूल जाता है। कभी रूमाल तो कभी पानी की बोतल या फिर किसी की कैप रह जाती है। वह जब भी किसी किताब को हाथ में उठाता है तो मन में एक चिढ़ होती है अपने लिए। आखिर वह अनपढ़ क्यों रह गया। पढ़ लिख जाता तो आज रिक्शा खींचने की जगह कोई ढंग का काम करता |
रिक्शा को ढाबे के बाहर खड़ा करके भरतू खाना खाने बैठ गया। किताब अब भी उसके हाथ में थी। तभी आवाज सुनाई दी- “क्यों भरतू, स्कूल में दाखिला ले लिया क्या?” भरतू ने चौंककर देखा उसका साथी रमन हंसता हुआ किताब की ओर इशारा कर रहा था। भरतू लजा गया। बोला- “अरे जब पढ़ने की उम्र थी तब नहीं पढ़ सका तो अब क्या पढूंगा।” फिर उसने बताया कि कोई बच्चा उसकी रिक्शागाड़ी में किताब भूल गया था।
भरतू, रमन तथा और चार लोग एक किराए के कमरे में रहते हैं। सभी अपने अपने गांव से रोजगार की तलाश में शहर आए हैं। सभी के परिवार गांव में हैं। बीच-बीच में कुछ दिन के लिए उनसे मिलने गांव जाते हैं। भरतू स्कूल के बच्चों को लाता-ले जाता है। उसके साथी सवारी ढोते हैं। वे लोग भरतू की रिक्शा को चिडि़या खाना कहते हैं पर भरतू ने उसका नाम रखा है- गुलदस्ता।
1
सुबह समय पर अपनी रिक्शा बाहर निकाली और बारी-बारी से बच्चों को लेने लगा। तभी रमेश नामक बच्चे ने कहा- “मेरी किताब?” वह कुछ परेशान दिख रहा था। रमेश की मां सरिता ने भी कहा- “भरतू, जरा ध्यान से देखना, रमेश की किताब नहीं मिल रही है।”
भरतू ने किताब उनकी ओर बढ़ा दी। तभी रमेश ने कहा – “तुमने मेरी किताब फाड़ी तो नहीं। किताब फाड़ना बुरी बात है।” सुनकर भरतू हंस पड़ा। उसने कहा- “नहीं भैया, मैंने तुम्हारी किताब खूब ध्यान से रखी थी।‘’
रमेश की मां सरिता देवी भी हंस पड़ी। उन्होंने कहा- “भरतू, जो बात मैं इसे समझाती हूँ वही इसने तुमसे कह दी। ।”
सारा दिन भरतू उसी किताब के बारे में सोचता रहा। दोपहर को रमेश को उसके घर के बाहर छोड़ते हुए भरतू ने कहा- “क्यों भैया, जो तुम पढ़ते हो मुझे भी पढ़ा दो।”
“ठीक है कल पढ़ाऊंगा।”
अगले दिन रमेश ने भरतू से कहा- “भरतू भैया, आज मैं तुम्हारे लिए ए और बी लाया हूँ और उसने बस्ते से निकालकर एक सेब और गेंद भरतू के हाथ में थमा दी। भरतू कुछ पूछता इससे पहले ही रमेश ने कहा- “देखो ए से एप्पल यानी सेब और बी से बॉंल यानी गेंद।‘’
2
अगली सुबह रमेश के घर के बाहर पहुँचकर भरतू ने रिक्शा की घंटी बजाई। रमेश की मां सरिता देवी बाहर निकलकर आई।उन्होंने कहा- “रमेश आज स्कूल नहीं जाएगा। उसे रात से बुखार आ रहा है।”
इसके बाद वाली सुबह को रमेश के दरवाजे पर पहुँचकर उसने घंटी बजाई तो रमेश की मां बाहर आई। उन्होंने कहा- “भरतू, रमेश की तबियत आज भी ठीक नहीं है।‘’
उस दोपहर भरतू ढाबे पर नहीं आया। वह रमेश के घर के बाहर जा खड़ा हुआ। फिर झिझकते हुए घंटी बजा दी। तभी दरवाजा जरा सा खोलकर सरिता देवी ने बाहर झांका। भरतू को देखकर वह चौंक पड़ीं। – “भरतू, तुम इस समय कैसे?”
भरतू हकलाता सा बोला- “जी, मैंने सोचा अपने मास्टरजी को देख लूं,|’’
मास्टर जी शब्द पर सरिता देवी हंस पड़ीं। उन्होंने कहा- “भरतू, तुम्हारे मास्टरजी की तबियत अब ठीक है। आओ, अंदर आ जाओ, धूप में क्यों खड़े हो।” यह कहकर उन्होंने दरवाजा पूरा खोल दिया।
भरतू ने कहा- “मैडम जी, अब आपने बता दिया न कि हमारे मास्टर जी ठीक हैं। बस अब जाता हूँ।”
“तुम अपने मास्टरजी से मिलने आए हो तो क्या बिना मिले चले जाओगे?
भरतू ने देखा रमेश पलंग पर बैठा था।
कैसे हो मास्टरजी? ‘’
“मैं ठीक हूँ।” रमेश ने कहा फिर बोला-”तुमने ए, बी मां को क्यों लौटा दिए।‘’ भरतू चुप रहा। सच में उसने रमेश से मिली गेंद और सेव सरिता को वापस लौटा दिए थे। बाद में रमेश ने माँ को बता दिया था|
“मास्टरजी, जल्दी ठीक हो जाओ फिर आगे पढ़ाना।” कहकर सेब और गेंद रमेश के हाथ से ले ली और बाहर निकल आया। रमेश की तबियत ठीक देखकर उसका मन खुश हो गया था।
3
अगली सुबह रमेश मां के साथ घर से बाहर खड़ा मिला। भरतू से नजरें मिलते ही रमेश और
उसकी मां मुस्कुरा दिए। भरतू भी हंस दिया।
दोपहर को रमेश को घर छोड़ने आया तो सरिता देवी ने कहा- “भरतू, शाम को पांच बजे आना।‘’
भरतू पांच बजे रमेश के घर के बाहर पहुँच गया। दरवाजा रमेश ने खोला- उसे देखते ही हंस पड़ा। बोला- “आओ भरतू, जब घंटी बजी तो माँ ने कहा ‘देखो भरतू आया होगा’। आओ अंदर चलो” कहकर रमेश ने भरतू का हाथ पकड़ लिया और उसी कमरे में ले गया|
सरिता देवी ने कहा- “भरतू, रमेश बता रहा था तुम पढ़ना चाहते हो?’’
भरतू बोला- “मैडम जी, वह तो मैंने यूं ही मजाक में कह दिया था।‘’
“भरतू, तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?” सरिता देवी ने पूछा। और भरतू उन्हें अपने गांव-घर की बातें बताने लगा। न जाने क्या-क्या बता गया फिर एकाएक रुक गया। बोला- “माफ करना मैडमजी, मैं तो यूँ ही बकवास कर रहा था। भला ये भी कोई बताने की बातें हैं। “
“अरे नहीं-नहीं मुझे तो तुम्हारी बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा है, और बताओ। असल में मैं तो कभी गांव गई नहीं। वहां लोग कैसे रहते हैं क्या करते हैं, उन्हें कैसी परेशानियां उठानी पड़ती हैं- यह सब कभी-कभी किताबों में पता चलता है या फिल्मों से।”
भरतू उठने को हुआ पर सरिता देवी ने रोक लिया। बोली- “मैंने जिस बात के लिए बुलाया था वह तो अभी कही ही नहीं। तुम पढ़ना चाहते हो, सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। रमेश के पापा को भी पसंद आई यह बात। अगर तुम चाहो तो शाम को पांच बजे रोज आ सकते हो , मैं पढ़ाऊंगी तुम्हें।‘’
“पर भरतू तो बड़ा है मां।” रमेश ने कहा।
“पहले बच्चों को पढ़ाती थी तो अब बड़ों को पढ़ाऊंगीं। भरतू से ही शुरु होगा मेरा स्कूल।” कहकर सरिता देवी हंस दीं।
“जी, आप रहने दें। अब पढ़कर क्या होगा? मेरा काम तो चल ही रहा है और फिर फीस… ‘’
भरतू, मैं तुम्हें पढ़ाऊंगी। और तुम मुझे अपने गांव के बारे में बताओगे- वहां के लोग, खेत, जंगल, पहाड़, वहां के परिंदे।” मुझे ये सब बातें कहां पता हैं अभी। वही होगी तुम्हारी फीस।” सरिता हंसकर बोली।
भरतू नमस्ते करके उठ खड़ा हुआ। “तो क्या मुझे आप सचमुच पढ़ाएंगी?” उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।बाहर निकलने से पहले रमेश के सिर पर हाथ रखने से खुद को नहीं रोक पाया भरतू। ऐसा करते समय उसकी आँखे भीग गईं।(समाप्त)
सीखने की इच्छा और जानने की इच्छा का मिलन हो जाए तो कुछ नये की संभावना बन जाती है।आत्मीयता ही इन दोनों इच्छाओं को जोड़ने का काम करती है।
Absolutely