ये कहानी शुरू होती है एक साधारण सी लड़की से .जिसे ईश्वर शायद रंग रूप देना भूल गए थे, या फिर यूं कहिए कि विधाता ने उस साधारण लड़की मे कुछ असाधारण गुण जड़ दिए थे जो वक्त के साथ उभरते और निखरते रहे.
तीन बहनों मे दूसरे नंबर की सांवली का नाम शायद उसके माता पिता ने उसके रंग के कारण ही रखा था, एक तो सांवली ऊपर से दाँत भी बाहर को निकले हुए, एक दृष्टि में कुरुपता की निशानी.बड़ी और छोटी बहनें ग़जब की खूबसूरत, मानों सांवली के हिस्से का रूप भी ऊपरवाले ने इन्हीं दोनों में बाँट दिया था.
दोनों बहनों मे जैसे एक बदनुमा दाग की तरह दिखने वाली , माता पिता की सुहानुभूति, रिश्तेदारों, परिचितों से मिली उपेक्षा ने सांवली मे एक अद्भुत स्वरूप को उकेरना शुरू कर दिया था.वह था स्वयं से प्यार. बचपन से ही अंतर्मुखी सांवली का दिमाग उम्र से ज़्यादा तेज़ था.छोटी मोटी उलझनों को चुटकी मे सुलझा देना उसके नैसर्गिक गुणों में शुमार था. जहाँ एक ओर उसकी दोनों बहनें घर-घर खेलतीं, सजती संवरती ,वहीं सांवली गणित के सवालों को हल करती दिखती ,
वक्त के साथ तीनों जवान हो गईं, सांवली पढ़ाई में हमेशा ही अव्वल रही .बहनों की खूबसूरती और निखर गई, सांवली अपना संसार बुनती रही, जहाँ उसके अपने सपने थे, अपने दम पर खुद को सिर्फ़ खुद के लिए साबित करना, उसकी प्रतियोगिता किसी और से नही ,स्वयं से थी.जूडो और बॉक्सिंग उसके पसंदीदा खेल थे, स्कूल और कॉलेज स्तरीय कई प्रतियोगिताओं के मेडल उसने अपने नाम कर लिये थे.माता पिता को चिंता खाए जा रही थी कि तीनों का विवाह करना है
और खासकर सांवली को लेकर चिंतित रहते थे कि कैसे होगा इसका विवाह, कौन इसे पसंद करेगा, ज़्यादा दहेज़ देने की हैसियत नही है, क्या होगा? लेकिन सांवली इन सब बातों से बेफ़िक्र थी, उसकी डिक्शनरी मे अभी विवाह नाम का कोई शब्द नही था.उसने तो ठान लिया था कि मरुस्थल मे फूल खिलाना है.
“पता नही, रिद्धिमा के पापा ने लडके वालों से बात की होगी या नही” सांवली की माँ मालती ने अपनी सासु माँ गिरिजा देवी से कहा.
“अब तो आता ही होगा, आकर बताएगा कि क्या बात हुई, फिकर काहे करती हो” गिरिजा देवी ने कहा.
“अम्मा, तीन तीन जवान लड़कियां छाती पर बैठी हो तो फिकर तो होती ही है” मालती बोली.
“अरे रिद्धिमा तो खबसूरत है, निपट ही जाऐगी, फिकर तो सांवली की रहती है, इसका का होगा” गिरिजा देवी माथे पर हाथ रखती हुई बोलीं.
“हमारी फ़िक्र ना करो दादी,हमारा लक्ष्य सिर्फ़ शादी नही है, हम तो वो करेंगे जो कोई दूसरा नहीं करता”सांवली ने तपाक से कहा.
“का मतलब, का तू लड़की नई है, लड़की की जातन को चूल्हा चौका ही सुहाता है, समझी”दादी ने आँखें तरेरकर कहा.
“हाँ दादी, मैं तो समझी, पर आप नही समझी” सांवली बत्तीसी दिखाकर हँस पड़ी,दादी ने मुँह टेढ़ा कर लिया.
“हह..हह..”तभी सांवली के पिता बलराम जी के खखारने की आवाज़ सुनाई दी.
“अरी जा, देख पापा आ गए “मालती ने सांवली से कहा और खुद भी दरवाज़े की ओर दौड़ी.
“हओ, आई जी आई, आ गए” माँ पानी का गिलास लिये दौड़ती हुई चली आई.
“नही, मेरा भूत आया है, अरे ये फिजूल सा सवाल रोज़ ही तुम क्यों करती हो” बलदेव सिंह झुंझलाकर बोले.
“अरे, वो तो अब आदत ही पड़ गई, चलो अब बताओ, क्या लड़के वालों से बात हुई आपकी?”माँ बोली.
“हाँ , परसों आ रहें हैं, समीक्षा को देखने” बलदेव सिंह सोफे पर बैठते हुए बोले.
“अरे, तो अब पूछने पर बता रहे हो, आते ही बताना था न” माँ ने हाथ हिलाते हुए कहा.
“अरे, अभी तो घर में घुसा ही हूँ, तुम तो घोडे पर ही सवार रहती हो” बलदेव सिंह झल्ला कर बोले.
“कौन कौन आएगा ?माँ ने प्रश्न किया.
“अब ये तो नही पूछा, तीन चार लोग तो होंगे ही ” बलदेव सिंह बोले.
“अच्छा, कितने बजे तक आएंगे, ये तो पूछा होगा? “माँ ने अगला प्रश्न किया.
“दोपहर एक बजे, रविवार है, अतः ठीक है, सभी के लिए सुविधाजनक है” बलदेव सिंह ने बताया.
“सांवली ओ सांवली” माँ ने पुकारा.
“हाँ, माँ क्या बात है कहो” सांवली ने बैठक में प्रविष्ट होते हुए पूछा.
“सुन , परसों तेरी समीक्षा जीजी को लड़के वाले देखने आ रहे हैं, तो तू अभी तैयारी शुरू कर दे, क्या बनाएगी, उसके लिए क्या कुछ सामान बाज़ार से लाना है ,ज़रा एक लिस्ट बना ले, तेरे पापा शाम को ले आएंगे, और सुन तू भी ज़रा बेसन का लेप लगा लेना, रंग थोड़ा खुला दिखेगा” माँ ने सांवली को देखते हुए कहा.
“माँsss..अब इसमें मुझे बेसन का लेप लगाने की क्या ज़रूरत आन पड़ी, वो लोग तो जीजी को देखने आ रहे हैं” सांवली ने कंधे उचकाते हुए कहा.
“अरे, ऐसे ही एक के एक रस्ते खुलते हैं, हो सकता है उनकी नजर में तेरे लायक भी कोई रिश्ता हो, चल अब जा, परसों की तैयारियां कर” माँ ने सांवली से कहा.
तैयारियां शुरू हो गई, समीक्षा फेशियल, साडियों के चयन आदि में व्यस्त रही और सांवली किचन की तैयारियों में, जो सूखा नाश्ता जैसे मठरी, गुजिया, चिवडा आदि उसने एक दिन पहले ही बना कर तैयार कर लिये थे, रविवार सुबह से समोसे, मूंग का हलवा और बादाम की खीर की खूशबू से सारा घर महक रहा था.समीक्षा साड़ियों पर साडियां बदले जा रही थी, छोटी बहन सुनीति उसकी मदद कर रही थी.
“समीक्षा, तू कुछ भी पहन ले, सुंदर ही दिखेगी, तुझे तो एक नजर में पसंद कर लेंगे वो लोग, मत चिंता कर, कुछ भी पहन.ले” माँ ने पूर्ण विश्वास से कहा.
“सांवली ओ सांवली” माँ ने सांवली को पुकारा.
“क्या है माँ” किचन से निकलते हुए सांवली बोली.
“सुन तू भी अब मुँह धो ले, और अच्छे से पावडर लगाकर , वो हल्के पीले रंग का जो सूट है न वो पहन ले, उसमे तेरा रंग खुला हुआ लगता है” माँ ने सांवली को ऊपर से नीचे देखते हुए कहा.
“माँ..तुम भी ना…आज तो समीक्षा जीजी को तैयार होने दो, क्यों जीजी…”सांवली ने समीक्षा की चुटकी ली.
“जा, तू भी तैयार हो जा…”समीक्षा ने मुस्कुराते हुए सांवली से कहा.
“ठीक है जीजी” सांवली हँसते हुए बोली.
सवा एक बजे के करीब लड़के वाले तशरीफ़ ले आए, माता पिता, लड़का और उसकी छोटी बहन, कुल चार लोग आए थे.
“आईए भाई साहब, नमस्ते बहनजी, आओ बेटा आओ, आओ..”बलदेव सिंह सबका स्वागत करते हुए बोले.
“बहनजी, आपका घर तो खाने की खुशबूओं से महक रहा है, कितने पकवान बनवा लिए आपने?” लड़के की माँ ने घर में घुसते ही कहा.
“अरे बहनजी, बच्चियों से जो कुछ बन सका, बस यूं ही थोड़ा बहुत” माँ ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा.
सभी लोगों को बैठक में बिठाया गया, जो सांवली की कलाकृतियों से बहुत ही करीने से सजा संवरा, थोड़ा बड़ा सा कमरा था।सांवली पानी की ट्रे लिए बैठक में प्रविष्ट हुई।लड़के की माँ कुछ ज़्यादा ही ध्यान से उसे देखने लगी.
“बहनजी, ये मंझली बेटी सांवली है, समीक्षा , जिसे आप देखने आईं हैं, वो अभी अंदर है” माँ ने लड़के की माँ की नज़रों को ताड़ते हुए कहा.
“ओह, अच्छा.. अच्छा..” लड़के की माँ सोफ़े से पीठ टिकाती हुई बोली.
सांवली ने सभी को नमस्ते कर, पानी का गिलास दिया.
“जा सांवली, जीजी को ले आ ” माँ ने सांवली से कहा . “ये वॉल पीस, हेंगिंग, और ये पेंटिंग्स तो बहुत जोरदार है, बिटिया ने बनाई है क्या ?” लडके की माँ ने चारों तरफ़ नज़र घूमाते हुए पूछा.
“हं..हाँ..हाँ..”माँ ने कहा, पर ये बात गोल कर दी कि किस बिटिया ने बनाया है, क्योंकि अभी तो समीक्षा को निपटाना था.
तभी सांवली अपनी समीक्षा जीजी के साथ बैठक में प्रविष्ट हुई। लड़के की माँ का चेहरा खिल उठा.
“आओ ..आओ, बिटिया…. वाह.. बहुत ही सुंदर, क्यों बेटा है ना? लड़के की माँ ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा.
लड़के ने आँखें उठाकर देखा तो उसकी नज़र सांवली की नज़र से टकराई, जो उसका रिएक्शन देखने के लिए उसे ही देख रही थी।लड़के ने झेंप कर नज़र झुका ली.
“भई मुझे तो बिटिया बहुत पसंद है, अब फैसला तो श्याम के हाथ मे है, मेरे ख्याल से हमे इन दोनों को भी एक दूसरे से खुल कर बातचीत करने के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए, क्यों जी, सही है ना “लड़के की माँ ने लड़के के पिता से कहा.
“हाँ बिल्कुल ठीक है ” लड़के के पिता ने कहा.
“सांवली, जाओ बेटा जीजी को श्याम बाबू को बगीचे की सैर भी करवा दो” माँ ने झट से सांवली को इशारा किया.
“जी ठीक है माँ, आईऐ जीजी..”सांवली ने समीक्षा और श्याम से चलने को कहा.
बगीचे में पहुंच कर सांवली ने कहा- “जीजी, आप लोग बात कीजिए, तब तक मैं बाहर नाश्ते का प्रबंध करती हूँ”.
सांवली भीतर चली गई.
समीक्षा और श्याम करीब पंद्रह मिनट बातचीत करते रहे, फिर वे भी भीतर बैठक में आ गए.
“वाह भई, ऐसा स्वादिष्ट नाश्ता करके मज़ा आ गया, भई अब तो जी चाहता है सारा जीवन ऐसा ही नाश्ता मिलता रहे” लड़के की माँ ने कनखियों से समीक्षा को देखते हुए कहा।समीक्षा मुस्कुरा रही थी.
श्याम और समीक्षा की रज़ामंदी से विवाह पक्का हो गया.
इधर सांवली अपनी परीक्षा की तैयारियों में जुटी थी, उधर समीक्षा का विवाह भी हो गया.
सांवली ने एमबीए के कोर्स मे प्रवेश ले लिया, मेनेजमेंट और एकाउंटेंसी दोनों में ही सांवली का कोई जोड़ नही था, एमबीए पूरा होते होते छोटी बहन भी ब्याह कर ससुराल चली गई.अब माता पिता को सांवली की चिंता थी, हालांकि वे यह भी जानते थे कि सारे घर का दारोमदार अब सांवली के कंधों पर ही था, पिता रिटायर हो चुके थे, उनकी पेंशन और सांवली की कमाई से ही घर का खर्च चलता था, पिता के पेंशन का मेटर भी विभागीय मसले मे उलझ गया था, जिसे सांवली ने ही अपनी सूझबूझ से निपटाया और पेंशन पक्की हो पाई।पिता तो सांवली के ऐसे कायल हो गए थे कि हर समस्या के समाधान के लिए उनके ज़ुबान पर एक ही नाम होता था सांवली.
“अरे बेटा रो मत, सांवली घर आ जाए, मैं उससे बात करता हूँ, दामाद जी को वो इस मुश्किल से चुटकी मे निकाल देगी, तू फ़िक्र मत कर” पिता ने समीक्षा से फ़ोन पर कहा.
“ठीक है पापा, मैं कल श्याम के साथ घर आती हूँ, सांवली को सारा मसला समझा देंगे” समीक्षा ने कहा और फ़ोन रख दिया.
अगले दिन अलसुबह ही समीक्षा अपने पति के साथ घर आ गई, जहाँ सांवली को श्याम ने अपने व्यापार मे हुए भीषण घोटाले और घाटे के सड़क पर आ जाने का पूरा विवरण बताया.सांवली बहुत ही गंभीर मुद्रा में हर बात सुनती रही, फ़िर उसने श्याम से कुछ प्रश्न किए जिनके उत्तरों से उसे समझ मे आ गया कि आखिर चूक कहाँ हुई है, उसने कुछ सुझाव दिए और कहा कि तुम इन पर अमल करो, बाकि मैं संभाल लूंगी.
सांवली ने अपने तेज़ दिमाग से अपने जीजाजी का न केवल घाटा पूरा करवाया बल्कि उसके बाद उनका बिज़नेस जोर पकड़ता गया।अब तो श्याम जैसे सांवली का दीवाना हो गया, कभी कभी मज़ाक मे कह भी देता था कि “इससे तो मैं तुमसे शादी करता तो ज़्यादा अच्छा रहता।ख़ैर आधी घरवाली तो तुम हो ही”.
इस पर सांवली कहती”इस मुगालते मे मत रहना जीजाजी, सांवली सिर्फ़ सांवली है, किसी की घरवाली नही, न आधी न पूरी”.
जीजाजी जैसे मन मसोसकर रह जाते .कई बार कोशिश करने पर भी साँवली ने उनकी दाल गलने न दी। साँवली जानती थी कि, उसका दिमाग और फिट फिगर पुरुषों को बेहद आकर्षित करता है, हर कोई चाहता है कि उसकी बीवी शरीर के साथ एक स्मार्ट माइंड भी रखती हो . वह अब ये भी जानती थी कि आज इस्स समय उससे कोई भी शादी करने के लिए तैयार हो जाएगा , लेकिन अब वह अपनी शर्तों पर जीवन जीना सीख चुकी थी , अब तो पुरुषों को अपनी उंगली पर नचाने मे उसे मज़ा आता था।मन मे एक भड़ास थी कि , कभी उसे रूप के कारण कमतर आँका गया है, बहुत परिश्रम करना पड़ा है उसे, ये मुकाम हासिल करने मे.
“हैलो , क्या मैं साँवली शर्मा जी से बात कर सकता हूँ “ फोन पर किसिने साँवली से कहा.
“ जी , कहिए , मैं साँवली बोल रही हूँ “ साँवली ने जवाब दिया.
“ मैडम, आपसे अपवॉइंटमेंट लेना था, एक प्रॉपर्टी केस के सिलसिले मे आपसे कंसल्ट करना चाहता हूँ, प्लीज बताइये ,मैं आपसे किस समय मिल सकता हूँ” अजनबी ने कहा .
“ आप सारे डॉक्युमेंट्स लेकर परसों मेरे ऑफिस आ जाइए , बाइ दी वे , आपका शुभनाम ?” साँवली ने कहा .
“ओह , आइ एम सॉरी, माइ नेम इज़ ब्रिज माथुर , मैं परसो मिलता हूँ आपसे, थैंक यू सो मच “ फोन कट कर दिया गया.
नियत समय पर ब्रिज माथुर साँवली के ऑफिस पहुंचा.
“गुड मॉर्निंग, म॰॰मिस साँवली “ ब्रिज माथुर ने अभिवादन किया.
“वेरी गुड मॉर्निंग मिस्टर माथुर, टेक यूअर सीट ,” साँवली ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा.
“ ओके , पेपर्स दिखाईये, और केस की डीटेल्स बताइये “ साँवली ने सीट बैक से टिकते हुए कहा.
“ ओके, ये लीजिये पेपर्स , दरअसल मेरी पार्टनर मेरी वाइफ ही थी, उसने अपनी खूबसूरती के जाल मे उलझा कर , मुझसे कहाँ कहाँ साइन करवा लिए, मुझे पता नही चला, मेरा सारा बिजनेस खुद के नाम करके , मुझे डिवोर्स पेपर्स भेज दिये, मैं चाहता हूँ कि उसको इसकी सज़ा मिले , मुझे किसीने आपका नाम सजेस्ट किया, बताया कि ऐसे उलझे मामलों को आपने बड़ी होशियारी से सुलझाया है, मैं चाहता तो किसी वकील के पास भी जा सकता था , लेकिन इस केस को कैसे डील करना है, वो अब आप ही देखिये , वकील तो जो आप कहेंगी उसे कर लेंगे” ब्रिज माथुर एक सांस मे बोल गया.
“ हम्म, ओके ,डोंट वरी, आई विल मेनेज एवरी थिंग , मैं प्लान प्रोग्राम कर आपसे कौंटेक्ट करती हूँ” साँवली ने फिर एक गहरी मुस्कान बिखेरते हुए कहा .
“ओके, थेंक्स, “ कहकर ब्रिज ने हाथ आगे बढ़ाया , साँवली ने अपना हाथ बढ़ाकर शेक हेंड किया.
महीने भर की मशक्कत के बाद आखिर साँवली केस को सुलझाने मे सफल हो गयी , ब्रिज माथुर की बीवी को स्वीकार करना पड़ा कि उसने जालसाजी से ये सब किया था, क्योकि मिस्टर माथुर को उनपर अंधाविश्वास था, इसलिए उन्हे आसानी से बेवकूफ बनाने मे वो कामयाब रही , लेकिन जिन पॉइंट पर वो चूक गयी थी , साँवली ने उन्हे पकड़ कर उसकी जालसाजी पकड़ ली , ब्रिज माथुर को अपनी प्रॉपर्टी वापिस मिल गई , और महीने भर की मुलाकातों ने उसे साँवली के व्यक्तित्व ने इतना प्रभावित किया कि , उसने फैसला कर लिया कि वह साँवली को अपना जीवनसाथी बनाएगा , यही सोच कर वह फूलों का बड़ा सा गुलदस्ता लेकर साँवली के ऑफिस पहुंचा .
“हैलो मिस साँवली” ब्रिज ने साँवली से कहा .
“ हैलो मिस्टर माथुर, बधाई हो आपको, अब तो आप खुश हैं न ?” साँवली ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा .
“हाँ, लेकिन ये खुशी दोगुनी हो सकती है, अगर आप मेरी हमसफर बनने के लिए राज़ी हो जाएँ ?” ब्रिज ने बिना किसी भूमिका के दिल की बात कह दी.
“क्यो, एक धोखा खाकर तसल्ली नही हुई आपको, जो फिर ओखली मे सिर डालने चले हो, अभी तो मैं निकाल लाई आपको, मुझसे कौन बचाएगा आपको? साँवली ने खिलखिलाते हुए कहा.
“अब तुमसे निकलना ही नही है, बिजनेस तुम संभालोगी , मुझे तो बस एक प्यार करने वाली बीवी चाहिए , जिसकी मुस्कुराहट मेरी जिंदगी संवार दे और जो एक बेहतरीन दिल के साथ , शानदार दिमाग की भी मालिक हो , और वह हो तुम , तो कहो मेरी मल्लिका बनने को तैयार हो? ब्रिज ने दिल पर हाथ रख कर कुछ झुकते हुए कहा .
“ यस जहाँपनाह , बा अदब, बा मुलाहिजा ,होशियार ॰॰मल्लिका ए दिमाग ,आपके दिल मे दाखिल होने जा रही है “.
“दिमाग चाहे तो वो हर मुकाम हासिल कर सकता है ,जो रूप के बूते मिलता है ,लेकिन रूप चाहकर भी वो मुकाम हासिल नही कर सकता , जो दिमाग हासिल कर सकता है “.
*नम्रता सरन “सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश