रीना के घर जब भी जाती उस छोटी सी सोना को भाग भाग घर कर काम निपटाते देखती,बहुत तरस आता। बारह वर्ष की मासूम उम्र और इतना काम। घर की सफाई से लेकर बच्चा संभालने तक का काम रीना सोना से कराती। बिना किसी शिकायत के सुबह आठ से रात आठ बजे तक सोना खटती रहती।
आज रीना के घर किट्टी का आयोजन हुआ। खाने नाश्ते का सभी ने खूब आनंद उठाया। लेडीज़ किट्टी पार्टीज़ में एक दूसरे से बढ़ चढ़ कर दिखवा करती हैं। वैसे तो मैं भी दिखावे के लियें वहां प्रेजेंट थी एक बार किट्टी जॉइन कर पीछे नहीं हट पाई। सोना,
भूखी प्यासी पहले तो सारे इंतजाम में हाथ बाँटाती रही फिर पार्टी के शुरू होने पर तीन वार्षिक रेशम को संभालती रही। मुझे बार बार उस बच्ची के भूखे होने का अहसास दुःखी कर रहा था। एक प्लेट में कुछ खाने की चीजें रख सोना को दे ही रही थी रीना की नज़र मुझ पर पड़ गई। बस फिर क्या था प्लेट छीन ली।
फिर सोना को डांटने लगी, ‘भूखी मेरी जा रही है क्या।” घबराई सी सोना बालकनी में चली गई।
अब रीना ने बताना शुरू किया कि कैसे सोना का शराबी बाप बस से टकरा कर मर गया। लाली, सोना की माँ पांच बच्चों के साथ रहती है कैसे रीना ने पति ने सोना के भाई की चाय की दुकान पर नौकरी लगवाई। हद तो तब हो गई जब रीना ने बताया
हमारी मेहरबानी के कारण लाली अपने बच्चों के साथ मिलकर पंद्रह, बीस हज़ार रुपये कमा लेती है। उसका कहना था कि ये लोग ग़रीबी के नाम हमें हमेशा बेबकूफ़ बनाते हैं और कामचोर भी होते हैं। सारी सहेलियां हाँ में हाँ मिला कर मानों अपनी सहमति दे रही थीं।
रीना के प्रति मेरा मन खट्टा हो गया। एक तो वो कम उम्र की बच्ची से अधिक काम करा रही है और ऊपर से कितनी बुरी सोंच है। आदर्शवादी सोंच के चलते मन किया बाल मज़दूरी कानून के तहत इस रीना को कुछ सबक सिखाऊं पर चुप रहने में ही समझदारी थी।
आपस में एक दूसरे से लड़ाई तो मोल नहीं ली जा सकती, अब सोना का भाग्य मेरी थोड़ी से दया से बदल तो नहीं सकता। रीना ने काम से हटा दिया तो छोटे भाई बहन भूखे मारेंगें नया काम ढूंढना सोना के लियें आसान नहीं होगा।
कभी कभी चुपके से सोना को बुला कुछ कपड़े और खाने का समान दे मदद करने लगी। ख़ुश हो वो बच्ची मेरा एक आध काम कर कर्ज चुका देती। बस इतने से ही मेरा मन शांत हो जाता। सोंचती हूँ पता नहीं भाग्य भी कैसे किसी के जीवन में सुख दुःख लिखता रहता है।
एक दिन सोना की माँ लाली सुबह सुबह ही आ गई। स्कूल जाने की मुझे जल्दी थी और पूछा,”क्या चाहिए।” रो रो कर वो पांच हज़ार रुपये माँगने लगी। संजय मेरे पति भी घर मे ही थे। उन्होनें मुझे बुलाया और रुपये देने के लियें माना कर दिया।
उसे इशारे से जाने को बोल में अपने स्कूल चली गई। दोपहर में लाली दुबारा आ गई और गिड़गिड़ाने लगी उस पर दया करके उसे पांच हज़ार रुपये दे ही दिये,उसने यकीन दिलाया कि वो सोना की तनख्वाह मिलते ही वापिस कर देगी।
जिंदगी की भाग दौड़ में कब टाइम निकल जाता है देखते देखते एक महीना बीत गयाऔर ना तो सोना ही आई ना ही लाली वापस आई। इस बीच रीना के घर भी जाना नहीं हुआ। मन में लाली को दिए रुपये एक अफसोस बन खटकते रहे और मुझे लगने लगा मैं ही ग़लत थी क्योंकि इतने सारे लोगों की जो इन काम वालों के लियें जो धारणा है वो एक सच्चाई के रूप में सामने आ रही थी।
इस बार की किट्टी खत्म होने पर रोहिणी ने मुझे बताया कि रीना ने अपनी नौकरानी सोना पर चोरी का इल्जाम लगा उसकी छुट्टी कर दी और पैसे भी नहीं दिए क्योंकि सोना ने रीना के पति की किसी नाजायज़ हरक़त के कारण काम पर आना बंद कर दिया था।
आज ये रोहिणी रीना को ग़लत भी बता रही थी। मैं सोचने लगी कैसी मानसिकता है जो इन ग़रीब लोगों को हम नीचे धकेल देते हैं और ख़ुद का चेहरे पर नक़ाब लगा लेते हैं। तभी रीना आज पार्टी में कुछ चुप ही थी ज़्यादा चटक मटक नहीं रही थी।
मैंनें तो खैर उसी समय लाली को दिए रुपये माफ़ कर दिए और अपनी दिनचर्या में लग गई।
अचानक एकदिन लाली अपने बेटे के साथ मुझे मिलने आई पैसे लौटने लगी मैनें पैसे लेने से मना किया पर लाली बोली,
“मैडम पति खोया है पर इज्जत नहीं खोने दूँगी,आप को रुपया देर से वापस दे रही हूँ इस के लिए माफ़ कर देना।” मुझे उसके साफ सुथरे चेहरे पर कोई नक़ाब नज़र नहीं आया।
गीतांजलि गुप्ता