श्रवण कुमार – दीप्ति सिंह

मैं मित्रता के नाते हेमंत से मिलने गया ;हेमंत विधुर था तथा एक दुर्घटना की वजह से बिस्तर पर था।

मैं कुर्सी खिसका कर बोला.”अनिल कहाँ है ?” हेमंत बोला  “छत पर अपनी पत्नी रुचि के साथ धूप सेक रहा है।”

“तुम भी धूप में लेट जाते …अनिल से बाहर  फोल्डिंग पलंग बिछवा लेते, वह सहारे से लिटा देता ।”

“अरे वो मुझे क्या सहारा देगा खाना ही वक़्त पर दे दे वही बहुत है….”  हेमंत बोला।

मुझे कानों पर विश्वास नही हुआ। अनिल जब भी मिलता मैं हेमंत  के बारे में पूछता तो ” सही है… अच्छे है…आप घर आइये न.. ” कह देता।. 

हेमंत बोला ” ये आज कल की संतानें माँ-बाप की सेवा करना क्या जाने ? एक हम थे जो माँ बाप की सेवा को अपना धर्म…” वाक्य पूरा नही हो पाया  अनिल अचानक नीचे आ गया शायद उसने मुझे छत पर से घर में प्रवेश करते देख लिया था. बोला…

“हाँ! देखा था आप ने दादा-दादी की कैसी सेवा करी थी ?” फिर अनिल ने हेमन्त द्वारा अपने दादा दादी के प्रति दुर्व्यवहार की सारी गाथा खोल दी कि कैसे हेमंत अपने माँ-बाप को अपशब्द कहता था जबकि हेमंत और उसकी पत्नी उनकी वजह से ही नौकरी कर पाते थे. क्योंकि दादा-दादी ,उसकी और बहन की देखभाल करते थे. उसके चाचा की नौकरी नही थी इसलिए हेमंत उनकी बात भी नही मानता था.

“चाचा की नौकरी के बाद ही हम मकान के ऊपर के हिस्से में रहने लगे. चाचा बोले “अब किरायेदार की जरूरत नही है ..मैं कमाता हूँ।”

मैं बोला” तुम्हारी मम्मी कुछ…”

वाक्य पूरा होने से पहले अनिल फिर बोला “मम्मी चुप रहती थी .बहन उनसे विरोध करने के लिए कहती तो उसे ही डांट देती ..क्या पता इन सब में मम्मी की भी सहमति हो वह अच्छा बने रहने के लिए चुप रहती हो.  जब उनकी मृत्यु हुई थी मैं हॉस्टल में था. यह सब रुचि को भी पता है।”

हेमंत आँखे बंद करे पड़ा था. “मैं अब  चलता हूँ.. ” कहते हुए मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा.

अनिल मुझे बाहर छोड़ने आया .कहने लगा.. “अंकल ! यह सब मैं पापा को अहसास दिलाने के लिए कर रहा था. क्योंकि मैंने दादी को आँसू बहाते देखा है. रुचि मुझे यह सब करने के लिए मना करती है. मैंने एक स्पेशलिस्ट से बात कर ली है. मैं इसलिए मैं आपसे बार- बार घर आने के लिए कहता था. आप पर मुझे बहुत विश्वास है; आप मुझे गलत नही समझेंगे।”

उसने हाथ जोड़ दिये .मैने उसके सिर पर हाथ फेर कर एक सोच के साथ अपने कदम बढ़ा दिए कि ‘ हम अपनी संतान से तो यह आशा रखते है वह श्रवण बन कर हमारी सेवा करे लेकिन क्या हम अपने माता पिता के लिए श्रवण बन सके?’

दीप्ति सिंह ( स्वरचित व मौलिक)

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