एक शहीद का गांव – गीता वाधवानी

भारत के साथ हुई चीन की हिंसक झड़प में सुधा के फौजी पति नंदन  ने बहुत वीरता से दुश्मनों का सामना किया और लड़ते लड़ते शहीद हो गया। 

      यह समाचार सुनकर सुधा रो-रोकर बेहाल हो गई। 8 महीने की गर्भवती थी सुधा। नंदन  अपने बच्चे का मुंह भी नहीं देख पाया। 

     “सुधा, तुम्हारी डिलीवरी के समय छुट्टी लेकर आने की कोशिश करूंगा।”ऐसा कह कर गया था नंदन। 

       उसे अपनी पत्नी सुधा और बारह वर्षीय बहन सपना की बहुत चिंता रहती थी क्योंकि दोनों घर में अकेली थी। 

      नंदन की मां को गुजरे हुए 5 वर्ष हो चुके थे और उसके पिताजी पिछले वर्ष ही सांप के काटने के कारण गुजर गए थे। 

     तिरंगे में लिपटा नंदन का शव गांव पहुंचा। उसके अंतिम दर्शन के लिए पूरा गांव आंखों में आंसू लिए उमड़ पड़ा।”शहीद नंदन कुमार की जय! भारत माता की जय! की आवाज से पूरा गांव गूंज रहा था। 


      नंदन के अंतिम संस्कार के बाद सुधा की मां ने सुधा से कहा-“सुधा, तू मेरे साथ चल, तुझे नौवां महीना लगने वाला है। तुझे किसी बड़े के साथ की जरूरत है। बालक सही सलामत जन्म ले लेगा, तब वापस आ जाना।” 

     सुधा को अपनी मां की सलाह ठीक लग रही थी। सुधा ने अपने  कच्चे मकान की चाबी पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली मालती को दे दी और घर का ख्याल रखने को बोल कर, अपनी ननद सपना के साथ अपने मायके चली गई। 

      आज पूरे 3 महीने बाद गोद में सुंदर सा नन्हा -मुन्ना बालक लिए सुधा अपनी ननद के साथ अपने गांव लौटी थी। 

         अपने छोटे से घर के पास पहुंचते ही वह भौंचक्की रह गई। कच्चे घर की जगह पक्का मकान देखकर उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। वह भागी भागी मालती के घर पहुंची और हांफते-हांफते घर की तरफ इशारा करके पूछने लगी-“मेरा घर? यह कैसे पक्का घर?” 

       मालती ने कहा-“अरे सुधा बैठ, पानी पी, कुछ खा ले फिर बताती हूं।” 

     सुधा ने गिलास उठा कर जल्दी से पानी घटक लिया और बोली-“पानी पी लिया, अब जल्दी बता मालती, जल्दी बता।” 

     तभी मालती का पति राघव अपने बाकी दोस्तों के साथ वहां आ गया, वे लोग सुधा के पति नंदन के भी दोस्त थे। 


      सब ने कहा-“नमस्ते भौजाई, कैसी हो और हमारा भतीजा कैसा है?”ऐसा कहकर वे लोग बच्चे को गोद में लेकर उसके साथ खेलने लगे। बच्चे को कभी कोई गोद में ले रहा था तो कभी कोई। इधर सुधा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। 

     तभी मालती , सुधा के घर की चाबी ले आई और बोली-“यह लो अपने घर की चाबी।” 

सुधा ने चाबी ली और अपने घर की तरफ दौड़ पड़ी।उस ने ताला खोला, अंदर गई तो वह हैरान रह गई। उसका सारा सामान व्यवस्थित तरीके से साफ सुथरा रखा हुआ था। 

      उसने पूछा-“मेरा घर तो कच्चा था, पक्का कैसे हो गया?” 

अब राघव ने कहा-“भौजाई, हमारे दोस्त नंदन ने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी, तो क्या हम गांव वाले मिलकर उसके लिए इतना नहीं कर सकते?” 

      सुधा -“लेकिन इतना खर्चा, इतना पैसा कहां से आया?” 


       राघव-“आपको तो हमारी हालत पता ही है कि हम गांव वाले इतने अमीर नहीं है। किसी ने अपनी तरफ से सीमेंट की बोरी दी, तो किसी ने रेत का कट्टा मंगा दिया। किसी गांव वाले ने पत्थर का इंतजाम कर दिया ,तो किसी ने अपनी मेहनत से दीवारें पक्की करके छत डाल दी। उसके बाद मिलजुल कर रंग रोगन कर दिया और सारा सामान साफ करके ढंग से जमा दिया।” 

      गांव वालों का प्यार देखकर सुधा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए और उसके देवरों की आंखों में नंदन की यादों के आंसू। 

जय हिन्द 

स्वरचित 

गीता वाधवानी दिल्ली

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