चारों देवरानी जेठानियों मे खुसुर पुसुर हो रही थी।
“दीदी, बिल तो अच्छा तगड़ा बना होगा” रीत ने कहा।
“हाँ भई, अब इतने बड़े हॉस्पिटल में इलाज हो तो बिल तो बनना ही है” गोमती ने कहा।
“हाँ, वही तो, मैं तो इनसे कह भी रही थी कि आजकल तो पैसे वालों को ही बीमार पड़ने का हक़ है, अपने जैसे तो मर ही जाऐं, अपने पास कहाँ धरा है पैसा”सुषमा ने अपनी गरीबी का बखान किया।
“पूरे पाँच सात लाख पर उतर गई होगी”सबसे छोटी मीनू ने मुँह बनाकर कहा।
दरअसल चित्रा जो कि,चार भाईयों की इकलौती बहन थी, उसके पति को अचानक हार्ट अटैक हुआ और एंजियोग्राफी करवानी पड़ी।उसकी माली हालत कुछ कमज़ोर थी।
चारों भाभीयों के मन मे ये डर सता रहा था कि कहीं बहन उनके पतियों से कुछ मदद न माँग ले।तभी चित्रा बाहर आ गई।
“दीदी, धैर्य रखिए, सब ठीक हो जाएगा” गोमती ने चित्रा से कहा।
“सही वक्त से इलाज शुरू हो गया है दीदी, घबराईए मत,अब सब ठीक है” रीत ने चित्रा को ढांढस बंधाया।
“भाभी” कहकर चित्रा अपनी भाभीयों से चिपटकर रोने लगी।
“कल डिस्चार्ज मिलेगा शायद”चित्रा ने कहा।
भाभीयों के दिल की धड़कन बढ़ गई, कि अब हो सकता है वो कहेगी भाई कुछ आर्थिक सहायता कर दें।
“चित्रा, डॉक्टर तुम्हें बुला रहें हैं” तभी चित्रा के बड़े भाई सात्विक ने आकर कहा।
“जी भैय्या, “कहकर चित्रा अंदर चली गई।
बाकी तीनों भाई भी एक एक करके बाहर आ गए।
भाभीयों ने जल्दी से पूछा , चलें अब”.
“हाँ-हाँ, चलो”चारों भाई एक साथ बोले।
चारों देवरानी जेठानी मन ही मन खुश थी कि, चलो पैसे वैसे की कोई बात उठी ही नही,, फिर एक धीरे से बोली,
“कैसे भाई हैं ये लोग, अपनी बहन से एक बार भी नही पूछा कि पैसों की ज़रुरत तो नहीं है”
“चलो ,अब तुम चुप ही रहो, क्यों बैठे बिठाए चपत लगवाने पर तुली हो”दूसरी ने उसका हाथ दबाते हुए कहा।
चारों मंद मंद मुस्कुराती हुई एक दूसरे को हाथ हिलाती हॉस्पिटल से निकल गई।
उधर हॉस्पिटल में-
“आपका पूरा पेमेंट हो चुका है, आपके भाई साहब सारा हिसाब कर गए, कल आप इन्हें घर ले जा सकती हैं”डॉक्टर ने चित्रा से कहा।
भाईयों के चेहरे पर संतोष था, वे अपना फ़र्ज़ निभा चुके थे।
*नम्रता सरन”सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश