मेरी क्या गलती है – अनुपमा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी , लगता है तूफान आएगा , एक तूफान तो हर वक्त सुमी के भीतर भी चलता रहता है और उसका न कोई वक्त है ना मौसम , बारिश लगातार तेज हुई जा रही है और सुमी की नज़रे बाहर ही लगी है , इतनी रात हो गई है , मौसम इतना खराब हो रखा है , और सुभाष अभी तक आया नही है ,

 एक तरफ कहीं कोने मैं उसका मन चाहता था की वो आए ही नही कभी पर नही नही उसे तो ये सोचने की भी आजादी नहीं है , हमारा समाज कहां आज़ादी देता है औरत को इतनी की वो अपने पति के लिए ऐसा सोच सके , उसको तो सिर्फ यही समझाया जाता है की पति कैसा भी हो पत्नी को निभाना ही है … मायके वाले भी किसी बड़े हादसे के बाद ही चेतते है , उसके पहले तक तो लड़की को सिर्फ यही बताया जाता है की जैसा तुम्हारे भाग्य मैं लिखा है बेटी उसके लिए हम क्या कर सकते है … अजीब लोग होते है .. यही लोग अगर पत्नी कुछ कर दे , बाहर जाए और देर से घर आए तो लाक्षन लगाने से पहले एक मिनट भी नहीं सोचते है , 

बाहर काम करे फिर घर आकर भी दोहरी जिम्मेदारी निभाएं , ना करे तो कोई चूकता नही उसे याद दिलाने से की वो औरत है और उसका फर्ज है ये सब करना … हमारे समाज मैं अभी भी स्त्री जाति को अपनी पहचान के लिए कितना संघर्ष करना बाकी है , 

सुभाष भी तो उसे बात बात पर यही याद दिलाता है , यहां उसका कुछ नही है , उसको उसके हिसाब से ही रहना होगा वरना वो अपने घर जा सकती है … अपने घर ???  



आजतक स्त्री का घर कोनसा है यही जब निश्चित नही हो पाया है तो उसकी आजादी के सही मायने क्या ही है कैसे पता चलेगा , एक स्त्री होना क्या होता है एक उम्र के गुजर जाने के बाद खुद एक स्त्री भूल जाती है जब उसके सामने उसकी बहु के रूप मैं एक दूसरी स्त्री आ जाती है …. उसे अपनी बरसों की दबी कुचली सत्ता को दिखाने का जो अवसर मिलता है उसे अपने हाथ से वो गवाना नही चाहती , शायद ये डर भी काम करता होगा अंदर से की इतने सालों बाद मेरी जगह मैं बना पायी, दूसरी स्त्री के आगमन से मेरी जगह मैं बचा पाऊंगी की नही …. हर स्त्री अपने आप मैं एक तूफान ही तो है जिसके ऊपर पुरुष ने नियम रूपी बांध बना कर उन्हे रोके रखा है और उसमे उसका सहयोग दिया है एक दूसरी स्त्री ने भी …

सुमी के अंदर तुफानों की कमी नही थी और इंतजार करते करते वो उनमें उलझती जा रही थी , नींद भी उसकी आंखों से कोसो दूर थी , भारी बारिश की वजह से फोन का नेटवर्क भी गायब हो चुका था ।

सुमी उठ कर डाइनिंग टेबल के पास आ गई, उसने खाना उठा कर फ्रिज मैं रख दिया , इंतजार करते करते उसकी भूख भी मर चुकी थी । आज भी वो सुभाष का इंतजार करती है और उसके खाने के बाद ही खाती है खाना … जब वो शादी होकर इस घर मैं आई थी ,सास ने हमेशा यही बताया बहुएं सबको खिला कर ही खाती है ,क्या वो नही जानती थी ये , उसकी मां को भी तो देखता उसने ये करते हुए ,जब बाबू जी और हम सब खा लेते थे तब मां खाने बैठती थी खाना और सारा काम करके बाबू जी के पैर दबाने बैठ जाती थी , 

और बेहोश होने तक दबाती ही रहती थी , क्या पुरुष को स्त्री के होने न होने सो कोई फर्क भी पड़ता है … क्या वो कभी फुर्सत मैं सोचता होगा की ये स्त्री भी एक जान होती है … वो कमाती नही है तो क्या उसकी कोई वैल्यू नही है , क्या पुरुष कमा कर नोट खा सकता है … अरे उसकी कमाई को अन्न का रूप तो स्त्री ही देती है ,उसकी कमाई से मकान को घर स्त्री ही तो बनाती है .. फिर स्त्री इतनी बेचारी और फालतू क्यों और पुरुष इतना दंभी क्यों है ..



सुमी एक बार फिर अपने अंतर्मन के युद्ध में फसने लगी थी पर उसने उन सवालों से अपना पीछा छुड़ाने के लिए फोन अपने हाथ मैं ले लिया और एक बार फिर से फोन लगाने की कोशिश करने लगी , एक दो बार कोशिश करने पर फोन नही लगा … सुमी किचन मैं गई और अपने लिए काफी बना कर ले आई … सुमी को शुरू से काफी बहुत पसंद थी पर यहां तो सब चाय पीते थे , और वो कभी कह ही नही पाई की वो चाय नही पीती क्योंकि सबकी पसंद का ध्यान रखना उसका फर्ज था पर उसको खुद क्या पसंद था इसकी न तो उसे याद रखने की जरूरत थी ना फुरसत … और अगर वो याद रखती भी तो क्या करती , अपनी पसंद को प्राथमिकता देना अच्छी मां और पत्नी होने की निशानी बिल्कुल नही होती है  ऐसे ही तो 

साबित होता है ना हमारे समाज मैं की कौन कितनी अच्छी मां है पत्नी है , सुमी को बहुत थकान महसूस होने लगी थी अपनी ही विचारों की दुनिया मैं घूम घूम कर , वो सो जाना चाहती थी पर अगर सुभाष आ गया तो … उसको आवाज नहीं सुनाई दी तो , वो गहरी नींद मैं सो गई तो ? …. बहुत सारे तो तो तो …. की लाइन लगी थी उसके सामने …. जिनके सामने सुमी अपने हथियार डाल चुकी थी , उसमे कभी इतनी हिम्मत नही थी की वो इन सब सवालों के जवाब ढूंढ पाए या विरोध कर पाए … हां चूंकि वो बाहर प्रत्यक्ष मैं नही बोल पायी कभी .. इसलिए ये सब सवालों ने उसके अंदर एक अपनी अलग दुनिया बना ली और वक्त बेवक्त बैठ जाते है अपनी अदालत लेकर … 

सुबह के छः बज गए थे ,सुभाष का कुछ अता पता नहीं था , तभी दरवाजे की घंटी बजी … वो फुर्ती से उठी और दरवाजा खोला , तो सामने कुंती खड़ी थी , इसको भी न चैन नहीं है इतनी बारिश मैं भी सुबह सुबह ही आ गयी,थोड़ी देर से नही आ सकती थी क्या …. 

मेमसाब मेमसाब सुनिए … सुमी ने झुंझलाते हुए कहा क्या है ? वो साहब … हां क्या हुआ वो रात से बाहर ही है शायद ऑफिस मैं जरूरी काम से रुक गए होगे तू एक चाय बना दे बहुत सरदर्द हो रहा है मेरा … 

मेमसाब साहब तो गली के बाहर बेहोश पड़े है उन्हे अभी हॉस्पिटल लेकर गए है , इसलिए तो मैं आपको इत्ती सुबह बताने आई …. क्या क्या हुआ उनको .. मैं तो यहीं थी सोई भी नही , रात भर जागती रही … 

चलो चलो जल्दी से अस्पताल चल … 

अस्पताल गई तो सबकुछ खत्म हो चुका था … बहुत अधिक पीने के कारण , भारी बारिश से जलभराव मैं सुभाष का स्कूटर पत्थर से टकराया और सुभाष संभाल नहीं पाया और उसी वक्त उसके प्राण निकल गए थे … 

सुमी सफेद कपड़ों मैं बैठी थी सभी के बीच .. 

बहुत सी दबी दबी सी खुसर फुसर की आवाजें उसके दिमाग में पहुंच रही थी .. कैसी पत्नी है … रात भर पति बाहर पड़ा था और इसे पता ही नही चला … इसे कोई फिक्र थी भी की नही जो पति आया नही तो खोज खबर ली हो … इतना कैसे पीने देती थी ये अपने पति को … अरे कहां व्यस्त रहती थी जो पति इतना पीता था …..

सुमी के अंदर उसके खुद के विचारों का युद्ध भी चालू हो चुका था …. कहीं सब उसका ही तो दोष नही है , उसके मन मैं ऐसा ख्याल आया ही क्यों , उसने ऐसा सोचा क्या इसलिए ऐसा हुआ … उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ … ये सब लोग क्या कह रहे है , मेरी क्या गलती है इसमें … मेरे बारे मैं कोई क्यों नही सोच रहा … अभी भी सिर्फ सुभाष के बारे मैं ही क्यों ?? जो चला गया वही महत्वपूर्ण है … जो है उसका कोई महत्व नहीं है … 

सुमी चीख रही है चिल्ला रही है …उसके अंदर का तूफान सबकुछ मिटा देना चाहता है , पर कहीं कोई आवाज नहीं है ..

सब कुछ उसके अंदर है … वहां जहां कोई न देख सकता है ना समझ सकता है।

अनुपमा

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