दमयंती जी के घर में आज भागमभाग का माहौल है सुबह मुंह अंधेरे ही दोनों बेटे दोनों बहुओं को लेकर हॉस्पिटल जा चुके हैं।
अरे!अरे… कुछ गलत मत समझ लीजिएगा, यह दोनों अपनी पत्नियों को किसी प्रॉब्लम की वजह से नहीं, अपितु उनकी डिलीवरी होने वाली है, इस वजह से हाॅस्पिटल ले कर गए हैं।
दमयंती जी के दो बेटे हैं -नीलेश और विमल। नीलेश बड़ा है, उसकी शादी आठ साल पहले हुई थी। विमल की शादी को अभी एक साल हुआ है।
नीलेश और विमल शीघ्रता से दोनों को लेकर हाॅस्पिटल पहुंचे। कुछ देर में ही शीतल और माला को भर्ती कर डाॅक्टर दोनों को लेबर रूम में ले गए। फिर विमल झट से घर जाकर थोड़ी देर में जरूरी सामान के साथ दमयंती जी को लेकर हाॅस्पिटल पहुंच गया।
दमयंती जी पहले शीतल,नीलेश की पत्नी के वार्ड में गईं, वहां जाकर देखा कि बच्चे का पालना खाली था, शीतल रो रही थी, नर्स चुप करा रही थीं।दमयंती जी को धक्का लगा, नीलेश ने धीरे से बताया कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ।
दमयंती जी ने रोती हुई शीतल को सीने से लगाकर ढांढस बंधाया।
अपार दुख से उन्हें बहुत पीड़ा हो रही थी। डाॅक्टर साहिबा ने आकर शीतल को नींद का इंजेक्शन लगाया। शीतल को नींद आ गई, डाॅक्टर ने नीलेश और दमयंती जी से कुछ आवश्यक बात की और दूसरे मरीजों को देखने चली गईं।
कुछ देर बाद दमयंती जी माला, विमल की पत्नी के वार्ड में गईं, सुंदर सलोनी बच्ची देखकर उन्हें चैन की सांस आई।
माला से कुछ पल बात कर दमयंती जी बच्ची की देखरेख में लग गईं।
नार्मल डिलीवरी के चलते तीसरे दिन माला को हाॅस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। शीतल को एक दिन अधिक रखा गया।
मू्लों में बच्ची हुई थी तो सत्ताइस दिन बाद नामकरण करना निश्चित हुआ।
धीरे-धीरे शीतल ठीक होने लगी। कुछ कुछ काम बच्ची का करने की कोशिश करती पर माला मना कर देती। शीतल ऊपरी काम करती रहती।
आज बच्ची का नामकरण है, घर में सुबह से चहल-पहल है, शीतल रसोईघर में लगी है, साथ में कामवाली शांति भी है। दमयंती जी पूजा का सामान देख रही हैं, सामग्री, हवन कुंड , फल, सभी रख दिए गए हैं। पण्डित जी का इंतजार हो रहा है।
अपने कमरे में माला भारी बनारसी साड़ी पहन कर बच्ची को तैयार कर रही है। दमयंती जी ने शांति से नीलेश को बुलाया, ” बेटा, पंडित जी को फोन कर पूछो, कब तक आ रहें हैं।”
आंगन के दरवाजे से आते हुए पंडित जी बोले,” नमस्कार दमयंती जी! मैं आ गया हूॅ॑, चलिए पूजा प्रारंभ करें।”
दमयंती जी ने पंडित जी को प्रणाम कर, आसन ग्रहण करवाया।
शीतल को आवाज लगाते हुए दमयंती जी ने कहा,”शीतल, माला और बच्ची को जल्दी ले आओ, पंडित जी आ गए हैं।”
नीलेश और विमल ने आकर पंडित जी को प्रणाम किया। शीतल माला को लेने उसके कमरे में पहुंची तो माला ने उससे कहा कि वह स्वयं आ जाएगी। शीतल अकेले ही आंगन में आ गई। इसके कुछ पलों बाद ही माला बच्ची के साथ वहां आ गई।
पंडित जी ने नामकरण संस्कार की पूजा शुरू कर दी।
दमयंती जी ने नामकरण संस्कार में बस कुछेक रिश्तेदारों को बुलाया था। बच्ची का नाम रखा गया,” दिया”
पूजन सम्पन्न करवाते हुए पंडित जी ने कहा कि अब सभी लोग बच्ची को आशीर्वाद देने आ जाएं।
बच्ची की दादी, नानी, नाना, मामा, मामी ने बच्ची को आशीर्वाद और उपहार दिए ।
बच्ची को आशीर्वाद देने नीलेश और शीतल आगे आए। नीलेश के आशीर्वाद देने के बाद माला ने कहा कि बच्ची को भूख लग गई है, दूध पिलाकर सुला देती हूॅ॑।
दमयंती जी को अजीब लगा, उन्होंने कहा,” माला, दोमिनट की ही तो बात है! शीतल को दिया को आशीर्वाद देने दो, उसके बाद दिया को ले जाना।”
माला ने ऊंची आवाज़ में कहा,” जिनके नसीब में बच्चों का सुख नहीं है, उनसे अपनी बच्ची को आशीर्वाद दिलाने की मुझे जरूरत नहीं है। खुद की गोद सूनी है वो मेरी बेटी को क्या आशीर्वाद देंगी?”
दमयंती जी ने चौंककर कहा,”क्या बोल रही हो बहू?’
“ठीक ही तो कह रही हूॅ॑, मांजी। वो क्या आशीष देंगी जिनके खुद बच्चा नहीं है।”
शीतल वहां से रोते हुए अपने कमरे में चली गई।
दमयंती जी ने कहा,” क्या अनाप-शनाप बोल रही हो?” नीलेश भी शीतल के पीछे पीछे कमरे में चला गया।
इतने में विमल भी माला की हां में हां मिलाते हुए बोला,” सही ही तो कह रही है, माला! माॅ॑, भाभी से क्या आशीर्वाद लेना, उनके कोई संतान नहीं है।”
दमयंती जी बिना कुछ कहे नीलेश के कमरे में जाकर नीलेश और शीतल को लेकर बाहर आ गईं।
शीतल को माला के सामने लाकर उन्होंने माला से कहा,” तुम शीतल से आशीर्वाद दिलवाना अपनी बच्ची के लिए बुरा समझ रही हो।”
“मांजी, कुछ अपशगुन हो गया तो? भाभी को कमरे में भेज दीजिए। इसी लिए मैं अपनी बच्ची को इनसे दूर रख रही थी और अब जब मैंने खुलकर अपनी बात कह दी है तो इनको खुद मेरी बेटी से दूर रहना चाहिए। मैं नहीं चाहती कि कुछ ग़लत हो दिया के साथ।” माला ने कहते हुए दिया का मुंह अपने आंचल से ओट में कर लिया
दमयंती जी के सब्र का बांध अब टूट गया,कहने लगीं,” जिस शीतल से तुम्हें अपनी बच्ची के लिए अपशगुन का भय है, जो अपशगुनी है तुम्हारे हिसाब से। वही शीतल इस बच्ची की माॅ॑ है।”
विमल, माला यह सुनकर अवाक् रह गए।
दमयंती जी को नीलेश और शीतल ने रोकते हुए कहा,” माॅ॑ आप चुप हो जाइए।”
दमयंती जी नहीं रुकीं, उन्होंने बताना जारी रखा,” उस दिन मरा हुआ बच्चा शीतल का नहीं बल्कि माला का हुआ था। यह बच्ची शीतल की है। शीतल दिया की जन्मदात्री है! मेरे वहां पहुंचने से पहले डाॅक्टर ने जब यह बताया कि माला का बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ है और वह अब कभी माॅ॑ नहीं बन पाएगी तब शीतल ने माला के बगल में अपनी बच्ची रख दी। शीतल के त्याग के कारण ही तुम बच्ची का सुख ले रही हों, समझीं!”
“विमल को यह बात इसलिए पता नहीं है क्योंकि वह मुझे लेने घर आया था जब यह सब हुआ।”
दमयंती जी ने तनिक ठहरकर कहा,” आज तुम शीतल को अपशगुनी कह रही हो? जिसने अपनी गोद सूनी कर तुम्हारी गोद में अपनी बेटी डाल दी। एक पल नहींं लगाया जबकि शादी के इतने वर्षों बाद उसे माॅ॑ बनने का सौभाग्य मिला था लेकिन तुम्हारे फिर कभी माॅ॑ नहीं बन पाने का सुनकर उसने तुम्हें और विमल को ना बताने का कहकर अपनी बेटी तुम्हारी गोद में रख दी। उसके त्याग का तुमने आज ये सिला दिया, माला बहू!” “
विमल और माला रोते हुए शीतल के पैरों पर पड़ गए, कहने लगे, “भाभी, आपने हमें दुनिया जहान की खुशी, अपनी बेटी दे दी और हमने आपको इतना गलत समझा।”
शीतल ने माला को उठाकर कहा,” आज के दिन रोते नहीं हैं।”
माला ने दिया को शीतल की गोद में देते हुए कहा,” नहीं भाभी, आप ही दिया की असली माॅ॑ हों। मैं तो इस लायक ही नहीं हूॅ॑।”
“माला, ऐसा नहीं कहते। तुम दिया की माॅ॑ हों और रहोगी।” शीतल ने दिया को माला की गोद में ले दिया
दमयंती जी ने कहा,” माला और शीतल बहू, तुम दोनों मिलकर दिया को पालो। कितनी भाग्यशाली है दिया जिसे दो-दो मांओं का प्यार मिलेगा।”
सधी हुई आवाज़ में दमयंती जी बोली,” माला बहू, बच्चा पैदा नहीं होने से या मरा हुआ पैदा होने से कोई अपशगुनी नहीं हो जाता है। इसी सोच को बदलने की ज़रूरत है,यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए, अच्छा है। तुम शीतल को उल्टा सीधा कह रही थी, उल्टा तुम स्वयं आगे कभी माॅ॑ नहीं बन पाओगी।”
माला ने हाथ जोड़कर सबसे अपनी गलत सोच के लिए माफी मांगी। विमल ने भी सभी से हाथ जोड़कर माफी मांगी।
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#त्याग
धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
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