नमक पर भारी पड़ी चीनी! – प्रियंका सक्सेना

मौसम अपने पूरे शबाब पर था। दिन भर बादल और सूरज ने जम कर आँखमिचौली खेली थी। शाम होते  होते सूरज ने थक कर हार मान ली। और अपने घर को प्रस्थान किया। बादल अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए पूरी तैयारियां कर चुके हैं। लाइटनिंग ( बिजली की चमक) के साथ घुमड़ घुमड़ कर आए बादलों ने गरज गरज कर मानो डीजे पार्टी पूरी तरह से शुरू करने की उद्घोषणा कर दी है। देखते-ही-देखते तेज बौछारों के साथ धरा का आंचल भीगने लगा। चपला दामिनी भी रह रह कर झलक दिखला रही है।

लॉकडाउन के चलते सभी घर में रहते हैं। छुट्टियों के साथ साथ बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज भी दिन में होती हैं। बाकी दिन भर एसाइनमेंट भी बच्चे करते हैं। पतिदेव वर्क फ्राम होम पर हैं। ससुर जी और सासुमाँ मार्निंग वाक पर नहीं जा पाते हैं। टेलीविजन देखकर और बातें करके समय बिताते हैं। कभी कभी सब मिलकर लूडो , साँप-सीढ़ी, शतरंज,  कैरम खेल लेते हैं।शुरूआत में सबको उलझन हुई थी। अब आदत हो गई है। इन सब में शुभि का दिन और व्यस्त हो चला है। लॉकडाउन के कारण मेड को नहीं बुला रहे हैं तो रोजमर्रा के काम जैसे खाना बनाना, कपड़ें धोने के अलावा बरतन-झाड़ू-पोंछा का काम भी स्वयं करना पड़ता है। सासुमाँ के भरपूर सहयोग के बाद भी शुभि पर काम का भार बढ़ गया। पतिदेव सुनील और बच्चे मोहित व मान्या भी शुभि की मदद करने की कोशिश करते हैं।

अब बात आज की करते हैं। शुभि के आज सुबह से ही कमर दर्द हो रहा था। लंच निबटाकर वो टेबलेट लेकर लेटी तो उसकी आँख लग गई। 

इतना सुहाना मौसम देखकर घर में सबको गरमागरम पकौड़े खाने का मन कर गया। मम्मी-पापा की इच्छा जानकर सुनील ने बच्चों के साथ रसोई में कमान सम्भाली। मम्मी ने मदद करने को कहा तो उनको मना करते हुए कहा कि आप बैठो हम बनाएंगे। शुभि को सोने दिया। सोचा पकौड़े और चाय बनने के बाद सरप्राइज देंगे।

सुनील और उसकी फौज यानि मोहित व मान्या रसोई में आ चुके हैं।मोहित और मान्या क्रमशः आठ व दस साल के हैं तो सुनील ने उनसे कुछ काम करवाना नहीं है। इसलिए बस ये बरतन उठा दो, ये कढ़ाही कपड़े से पोंछ कर दो, करवाया। बच्चे बहुत उत्साहित हैं कि पापा के साथ मिलकर पकौड़ी बना रहे हैं।



सुनील ने आलू व प्याज गोल गोल काटी और हरी मिर्च लम्बे टुकड़ों में। अब बेसन ढूंढा गया। उसमें लाल मिर्च, भुना जीरा पाउडर, थोड़ा अमचूर पाउडर और नमक डालकर थोड़ा थोड़ा पानी डाला। साथ साथ अच्छे से फेंटते गए। लो पकौड़ी का घोल (बैटर) तैयार हो गया।

अरे! आप किसी भुलावे में न रहें। सुनील पहली बार पकौड़ी बना रहा है। छोटे-मोटे काम जैसे चाय, ब्रेड, आमलेट, मैगी वगैरह तो उसे आती है पर और ज्यादा नहीं। तो इतने परफैक्शन से जो पकौड़ियां बनाई जा रही हैं, वो यूट्यूब  से वीडियो देख देख कर बना रहा है। वैसे भी लॉकडाउन के कारण अचानक से घर घर में शैफ दिखने लगे हैं। 

बच्चों को अब थोड़ा दूर से देखने के लिए कहकर सुनील ने कढ़ाही चढ़ाई। तेल डालकर तेज गरम कर फिर मीडियम फ्लेम पर हाथ से पकौड़ी तेल में छोड़ी गईं। दूसरे  चूल्हे ( गैस बर्नर) पर चाय का पानी चढ़ा रखा है। सब परफेक्ट जा रहा है। और हो भी क्यों न, मौसम भी परफेक्ट है। सुनहरी सुनहरी पकौडियां सर्विंग प्लेट में सजा ली गईं। बड़ों के लिए चाय कपों में लौटी जा चुकी है। बच्चों के हाथ क्वार्टर प्लेट्स डायनिंग टेबल पर रखवा कर सुनील ने चाय व पकौड़ी टेबल पर रख दी। सॉस भी साथ में रख दी। बच्चे बाबा-दादी को बुलाकर लाए और सुनील ने शुभि को जगाया। दीवार घड़ी में समय देख कर वो हड़बड़ाकर उठी। बोली,”आज आँख लग गई थी। आपने उठाया क्यों नहीं?  मैं फटाफट चाय बनाती हूँ।”

“तुम हाथ मुँह धोकर बाहर तो आओ।” कहते हुए सुनील डायनिंग रूम में आ पहुँचा। मम्मी-पापा व बच्चे आ चुके हैं। दो मिनट बाद शुभि भी आ गई। 

डायनिंग टेबल पर पकौड़ी और चाय बनी देख बोली, “मम्मी जी, मैं बना लेती।”

“शुभि, मैंने नहीं सुनील और बच्चों ने बनाया है।” मम्मी जी ने कहा।

“आपने!” शुभि आश्चर्य से बोली।

“हाँ भई मैंने। ” सुनील मुस्कुराते हुए बोला।

“आपको आता है पकौड़ी बनाना?कब सीखी?” शुभि ने पूछा।

“यूट्यूब जिंदाबाद! चलो अब सब खा कर बताओ कैसी बनी हैं?” सुनील ने उत्साह से सबको परोसते हुए कहा।



“आप बैठो, मैं परोसती हूँ।” शुभि बोली।

“मैं बाद में लूंगा। पहले आप लोग खा कर बताओ।”

बच्चे भी बड़े मजे से खाने लगे, उन्हें कम मिर्च की पकौड़ी दी सुनील ने। मम्मी,पापा, शुभि सब ने पकौड़ी खाते ही एक दूसरे को देखा। फिर  सभी एक साथ बोले, “क्या कहने ! बहुत बढ़िया! ऐसी कमाल की पकौड़ियां कभी खाई ही नहीं।

खुश होकर सुनील ने भी पकौड़ी खाई और खाते ही मुँह बनाकर बोला,”ये पकौडियां मीठी कैसे हो गईं।”

मम्मी मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली,”बेटा तुमने नमक की जगह चीनी डाल दी है , ऐसा लगता है।”

” मैंने नमक डाला है , वो साइड वाले शैल्फ में नीले ढक्कन वाले डिब्बे से लिया है।”

“सुनील, वो बूरा है , कल नारियल के लड्डू बनाने के बाद पिसी चीनी बच गई थी। वो उस डिब्बे में रखी थी।” शुभि बोली।

सब एक साथ बोले, “पकौड़ियां लेकिन बहुत बढ़िया बनी हैं, एकदम क्रिस्पी। “

बच्चों ने जोरदार तरीक़े से नारा लगाया,”पापा की मीठी पकौडियां  जिन्दाबाद।”

सब जोर से बोले,”जिन्दाबाद! जिन्दाबाद!

तभी बाहर से तेज चमक के साथ बिजली चमकी और बादल गरजे। ऐसा लगा वो भी मीठी पकौडियों को थम्सअप कर रहे हैं।

चाय नाश्ते के बाद सुनील ने सब से कहा,”चलो सभी बरामदे में बैठकर बातें करते हैं। हम अभी आते हैं।”

और पलक झपकते ही बच्चों के साथ उनके रूम में चला गया।



शुभि, मम्मी और पापा के साथ बरामदे में चली गई। बरामदा शेड से कवर किया हुआ है, उसके आगे लाॅन है। जहां लगातार हुई बरसात के चलते पानी का छोटा मोटा तालाब बन गया। बरामद में कुर्सी पड़ी हुई थीं। 

तीनों बैठ गए और आपस में पूछने लगे कि अब क्या करने वाले हैं, सुनील और बच्चे?

इतने में ही सुनील, मान्या और मोहित के साथ आते हैं, तीनों ने हाथ पीछे किए हुए हैं । खुशी से चिल्लाकर वे बोले,” सरप्राइज!”

सभी उन तीनों को देखते हैं। तीनों ने अपने पीछे छिपे हाथों को आगे किया और उनके हाथों में ढेर सारी कागज़ की नावें देखकर शुभि बच्चों की तरह उछल पड़ी।

शुभि चहक उठी,”वाह! कितनी सारी नावें।”

मम्मी पापा के चेहरों पर भी मुस्कुराहट आ गई।

सुनील बोला,”:चलो मोहित और मान्यता के साथ मिलकर हम सब अपना बचपन जी लें।”

पापा बोले,”आओ, बच्चों नाव चलाते हैं।”

फिर क्या था सभी ने अपने हाथों से नाव बारिश से सामने भरे पानी के तालाब में छोड़ी और हाथों से सही दिशा भी देने लगे। मम्मी की तो दो नावें पानी में उतारते ही डूब गईं। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उनकी तीसरी नाव तैरती देख वो खुशी से ताली बजाने लगीं। सुनील, मोहित और मान्या ने भी तीन चार नावें पानी में चलाईं। कुछ नावें आपस में टकरा कर डूब गईं। सबसे बढ़िया नावें चली शुभि और पापा की , बहुत दूर तक गईं। शुभि, सुनील, पापा और मम्मी ने मिलकर अपने बचपन के बारिश के किस्से और नावें बनाना और चलाने के बारे में मोहित और मान्या को बताया। बच्चे भी आज नावें चलाकर खूब खुश हो गए।

इस तरह खुशगवार मौसम का सबने मिलकर आनंद लिया। सुनील की मीठी पकौड़ियों ने समां तो बांध ही दिया था और उसके बाद बारिश में कागज़ की कश्ती ( नावें) तैराकर सभी बड़ों ने अपने बचपन को पुनः जिया और बच्चों ने भी खुलकर बारिश का आनंद उठाया।

दोस्तों, परिवार के हल्के फुल्के क्षणों को दर्शाती बरसात की बौछारों से मन को सराबोर करती मेरी यह रचना कैसी बन पड़ी है, अपनी प्रतिक्रिया के द्वारा बताइयेगा। कमेंट सेक्शन में राय साझा कीजिये। यदि आपको ये कहानी पसंद आई है तो लाइक और शेयर करना न भूलें। ऐसी ही अन्य मनभावन कहानियों के लिए आप मुझे फॉलो कर सकते हैं। 

धन्यवाद।

#बरसात 

(मौलिक व स्वरचित)

-प्रियंका सक्सेना 

 

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