रिटायरमेंट – विनीता सिंह

आज सुबह का मौसम बडा सुहावना धीरे धीरे आसमान में से सूरज निकल रहा था। चारों ओर किरणों अपनी रोशनी फैला रही थी पक्षी की चहचहाहट की आवाज कानों में आ रही थी। एक बड़ा सा स्कूल तभी वहां एक पुरानी सी साइकिल लिए एक धोती कुर्ता और पैरों में चमडे की चप्पल पहन रखी थी अपनी साइकिल लेकर स्कूल के अंदर आये रामनारायण जी तो उन्हें आज से पैंतीस साल पहले जब पहली बार स्कूल में आये वो सब याद आ रहा था।तभी बच्चे उनके पैरों को छूकर प्रणाम कर रहे थे तभी स्कूल की घंटी बजी आज सब प्रार्थना के लिए लाइन लगाकर सब प्रार्थना करने लगे उसके बाद सब अपनी अपनी कक्षा में जा रहे थे जैसे रामनारायण जी कक्षा में पहुंचे ।तो उन्हें देखकर सब बच्चे खड़े हो गए और ब्लैकबोर्ड पर  धन्यवाद मास्टर जी लिखा हुआ था।

उसके बाद एक बड़े हॉल में एक समारोह हुआ जिसमें राम नारायण जी से पढ़े हुए सभी पुराने विद्यार्थी जो आज डॉक्टर इंजीनियर पुलिस अधिकारी बन चुके थे मिलने आए। और उनके मित्र भी उनसे मिलने आए हुए थे । तब प्रधानाचार्य जी ने कहा कि हमारे साथी रामनारायण जी एक अच्छे अध्यापक होने के साथ एक बहुत अच्छे इंसान हैं इन्होंने बच्चों को पढ़ाया नहीं बल्कि ,उन्हें सामाजिक और नैतिक शिक्षा भी दी है बच्चों को अच्छी-अच्छी कहानी सुनाते जिससे उनके अंदर अच्छे संस्कार हो उनके पड़े हुए बच्चे आज डॉक्टर इंजीनियर पुलिस अधिकारी है लेकिन विदेशों में चले गए लोगों ने कई बार उन्हें प्राइवेट स्कूल में बुलाने की कोशिश की ज्यादा सैलरी देंगे लेकिन उन्होंने अपने गांव के इसी स्कूल में पढ़ना बेहतर समझा उन्होंने कहा शहर वाले बच्चों के लिए तो बहुत मास्टर मिल जाएंगे लेकिन मेरे गांव के बच्चों के लिए मेरा यहां रहना जरूरी है प्रधानाचार्य जी ने कहा कि मैं मास्टर जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं आज मुझे यह बात कहते हुए बड़ा गर्व हो रहा है कि रामनारायण जी बहुत अच्छे शिक्षक है 

फिर बोले 

 शिक्षक वो सड़क होता है जो स्वयं तो एक स्थान पर रहता है लेकिन उसे पर चलने वालों को अपनी मंजिल तक पहुंचा देता है मास्टर तो जिंदगी भर मास्टर ही रहते हैं लेकिन उनसे पड़े हुए विद्यार्थी डॉक्टर इंजीनियर पुलिस अधिकारी आई. ए. एस. ,आ. पी.एस. और ऊंची ऊंची पोस्ट पर जाकर पहुंच जाते हैं हैं।

तभी पुराने छात्र एक-एक जाकर मास्टर जी के बारे में बोलने लगे तब एक छात्र ने कहा कि मैं पुलिस में नौकरी कर रहा हूं और सर मास्टर जी ने मुझे सिखाया था किस तरह ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए मैं उनकी बातों का हमेशा पालन करता हूं। उसके बाद छोटे-छोटे बच्चों ने कविताएं कहानी सुनाने की उनकी कविता सुनकर रामनारायण जी थोड़े भावुक हो गए ओर और कांपते हाथों से माइक पढ़ते हुए बोले, कि यह मेरा स्कूल नहीं बल्कि, मेरा परिवार है ।मुझे इसमें पढ़ने वाला हर बच्चा अपना बेटा बेटी ही नजर आता था सभी लोगों ने ताली बजाकर उनका सम्मान किया और उन्हें प्रशस्ति पत्र और साल पहनाईं उसके बाद इसकी स्कूल की घंटी बजी। आज उनके कानों में यह आखिरी घंटी थी टन टन—-

एक-एक कर सब बच्चो ने  उन्हें माला पहनाई।

लेकिन दिल में एक सुकून था कि मैं ने अपनी जिंदगी में कभी कोई गलत काम नहीं किया हमेशा अपना कर्तव्य ईमानदारी और मेहनत से निभाया।जिससे आज मुझे लोगों का इतना प्यार मिला।

 तभी सोचने लगे कि अब मैं आगे क्या करूंगा ।

तभी उनके एक मित्र ने कहा कि रामनारायण जी आप चिंता मत कीजिए मुझे मालूम है आपको लिखने का बहुत शौक था लेकिन आप बच्चों के पढ़ने में इतने व्यस्त रहे कि आप अपने बारे में अ कुछ नहीं सोचा ।लेकिन अब मैं चाहता हूं कि आप अपने लिए कुछ करें  आप अपनी  कहानी कविताएं लिखिए मैं एक प्रकाशक हूं मैं आपकी कहानियों को प्रकाशित करूंगा यह सुनने के बाद रामनारायण जी बोले धन्यवाद जी और फिर साइकिल पर चढ़कर अपने घर की तरफ चल दिए ——-

विनीता सिंह बीकानेर

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