मैं भी तो एक बेटी ही हूं – मधु वशिष्ठ

निशा का घर दूर मैसूर में था और नीता आगरा की ही थी। क्योंकि कॉलेज की 5 दिन की छुट्टियां थीं तो दिल्ली का लगभग सारा हॉस्टल ही खाली हो रहा था। निशा का मैसूर तक आना और जाना 5 दिनों में तो संभव ना होता इसलिए उसने भी नीता के साथ उसके घर ही … Read more

मै भी एक बेटी हूं – निशा जैन

अरे रश्मि बेटा आज भी इतनी जल्दी उठ गई, आज तो रविवार है , आराम से उठ जाती। रोज़ तो पांच बजे उठती हो बच्चों के स्कूल की वजह से, रश्मि की सास आशा जी बोली मम्मी आपको और पापाजी को उठते ही चाय और गर्म पानी चाहिए इसलिए मैं उठ गई । आज सर्दी … Read more

मै भी तो एक बेटी हूं – विनीता सिंह

आज रमेश जी कुर्सी पर बैठे अपनी मां शन्ति देवी से बात कर रहे थे ।तभी वहां प्रिया आई और बोली पापा मां बुला रही है ।शान्ति देवी ने कहा रमेश बेटा जल्दी जा देख। बहू को परेशानी होगी। इसलिए बुला रही है और फिर शान्ति देवी भगवान के हाथ जोड़कर कहने लगी । भगवान … Read more

घर – खुशी

नियति दो भाइयों में सबसे छोटी और लाडली थी।भाइयों की शादी हो चुकीं है।नीला और संजना उसकी भाभियां और श्रीसागर,आनंद उसके भाई जिनका अपना प्रिंटिंग प्रेस था जो पिता घनश्याम जी ने खोला था उनकी पत्नी दमयंती जो एक ऐसी महिला थी जो हर रिश्ते को बड़े सलीके से निभाती थी । नियति मास्टर्स कर … Read more

मां जी मैं भी आपकी बेटी जैसी हूं – सीमा सिंघी

अरे डोली बहू तुम रसोई का काम देख लो और हां तुम रसोई में दही बड़े, दाल का हलवा पुलाव और थोड़ी पुड़िया तल लेना। तुम्हारी जेठानी बाहर की साफ सफाई सब कर लेगी। वैसे भी रसोई में दो इंसानों का काम तो है नहीं।  मैं तो अपने जमाने में मिंटो में बहुत कुछ कर … Read more

इतना अभिमान सही नहीं – सीमा सिघी

नित्या तुम दिन भर घर में करती क्या हो। बस थोड़ा बहुत घर का और रसोई का काम बाकी अपने घर की साफ सफाई, बर्तन आदि के काम वो काम वाली बाई करके चली जाती है फिर तो तुम दिन भर बैठी ही रहती हो।  मैं तो सुबह का निकला शाम को ही घर आ … Read more

अभागी – लतिका पल्लवी 

निशी विदा होकर ससुराल मे आई तो सभी औरतो नें एक एक करके दुल्हन को सिंदूर लगाकर दुल्हन का मुँह देखा। फिर दादी सास नें पूछा कि सभी नें देख लिया ना? कोई छूटा तो नहीं? बड़ी बहू के कहते ही की नहीं दादी जी सभी नें सिंदूर लगा दिया कोई नहीं छूटा तो दादी … Read more

बेटी की उड़ान – सीमा अग्रवाल ‘जागृति’ 

उस सुबह आसमान कुछ ज्यादा बोझिल था, जैसे बादल मेरे भीतर उठती बेचैनी को समझकर ही ठहर गए हों। घर के आँगन में एक अजीब-सी खामोशी पसरी हुई थी। माँ चौका-चूल्हा करते हुए भी किसी गहरी चिंता में खोई लग रही थीं। पिताजी चाय का कप हाथ में लिए बैठे थे, और उनकी आँखों में … Read more

मैं भी किसी की बेटी हूं – डोली पाठक

बहू ये कैसी चाय बनाई है तूने??? ना चीनी है ना चायपत्ती…  बिल्कुल पतली सी…  शालू के ससुर का हर दिन का एक हीं ड्रामा था..  कभी चाय पतली तो कभी दाल…  कितना भी दिल से वो खाना बना दे उसमें मीन-मेख निकालते रहते थे…  शालू ने कहा – बाबूजी!! कल आपने हीं तो कहा … Read more

आंख भर आना – विमला गुगलानी

   झुगी- झोंपड़ी बस्ती में कोहराम मचा हुआ था। हरिया और उसकी पत्नी भगवती दोनों शहर में बन रही किसी बड़ी इमारत में मजदूरी करते थे। दोनों के अंकुश और सुखी यानि सुखमनी पांच और आठ वर्ष के दो बच्चे थे जो कि पास के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे।घर में हरिया की बूढ़ी मां … Read more

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