इंसानियत का फ़र्ज़ – रेणु गुप्ता

“मम्मा, मैंने आपसे कल भी कहा था, मैं ऐनी आंटी और उनकी बेटियों को इस हालत में छोड़कर इंडिया नहीं लौटूंगी। फिर आप मुझे यहां से निकालने के लिए इंडियन ऐंबेसी से बार-बार बातें क्यों कर रही हैं? यहाँ अंकल के बिना आंटी की हालत बहुत खराब है। वह बहुत कमजोर दिल की हैं। हर … Read more

माएके का ज़ख्म – अनुपमा

मां बार बार फोन कर रही थी इतने सालों से देखा नही तुझे मालती और बच्चों को , आ जा इस बार फिर पता नही मुलाकात हो या न हो । मालती हां मां आती हूं जल्दी ही ये कह कर फोन रख देती थी ।  ये सिलसिला पिछले दस सालों से चल रहा था … Read more

मैं हूँ न – प्रीति आनंद अस्थाना

***** “अरे तुमने रामेश्वर बाबू के बारे में सुना? बेचारे बहुत परेशान हैं आजकल!” रामेश्वर बाबू? ये नाम तो पुष्कर को  जाना-पहचाना लग रहा था। वही तो नहीं जिन्होंने आज से दस वर्ष पहले उसकी मदद की थी? पूरी कहानी तैर-सी गई आँखों के सामने! उसका इंटरव्यू था दिल्ली में, उसके लिए उसे कुछ सर्टिफिकेट्स … Read more

मन के भाव –  माता प्रसाद दुबे

विधा- संस्मरण – पांच वर्ष पहले की बात है। मैं अपने कार्य से हफ़्ते में दो बार लखनऊ से कानपुर तक सफर करता था। सुबह जाकर शाम को वापस लोकल ट्रेन से आता था।   एक दिन ट्रेन लेट थी। मैं लखनऊ के मानक नगर स्टेशन पर बेंच पर बैठा ट्रेन का इंतजार कर रहा … Read more

मायका -पिंकी नारंग

कब आ रही है हमारी बिटिया रानी? इस बार आओ तो कुछ ज्यादा दिन के लिए आना |यूँ पल मे आना पल मे जाना नही भाता हमें, सुषमा फ़ोन पर बेटी से दुलार करते हुए कह रही थी |      ठीक है माँ ज्यादा दिन की छुट्टी ले कर आउंगी वैसे कभी माँ का मन … Read more

बचपन की चोरी – अंजु पी केशव

 अब बचपन की चोरी को चोरी कहना भी कहाँ तक उचित है भई…. शरारत कहिए,, मुसीबत कहिए, गनीमत कहिए पर चोरी तो मत कहिए। अब कौन सा संविधान की मर्यादा भंग कर दी जो पेड़ से दो-एक अमरूद तोड़ लिए या पेड़ से गिरी हुई अमिया बटोर ली। रहे रास्त कभी किसी के बगीचे के … Read more

बचपन – मीना माहेश्वरी

     “लकी थोड़ा जल्दी_जल्दी हाथ चलाओ , धीरे_धीरे क्या कर रहे हो ?” अंकल जी ने ज़ोर से आवाज़ लगाईं। जी, अंकल जी कहकर लकी फिर से अपने काम में लग गया । लकी और उसका बड़ा भाई हमारे पड़ोस में किराए पर एक रूम लेकर रहते थे। कुछ समय पहले ही कैंसर से उसके पिता … Read more

टॉनिक- पिंकी नारंग

सोनिया का ससुराल मे दूसरा दिन था, सब कुछ अच्छा होने पर भी उसे माँ बहुत याद आ रही थी |उस पर सोने पर सुहागा, ये हुआ की उसका मोबाइल मायके मे ही छूट गया, अब हाथ मे तो रख नहीं सकती थी, विदाई के टाइम रोते हुए हाथ मे सेलफोन, छी कितनी बेकार पिक … Read more

रिश्ता-खट्टा-मीठा सा – कमलेश राणा

चलिये तो आज आपको हम अपनी गृह सहायिका जी से मिलवाते हैं। तो ये हैं हमारी सीमा रानी,,,,अब मन तो कर रहा है,कहें,,टन,,,टना,,,ना,,,पर थोड़ी सी शरम भी आ रही है,कहीं आप ये न सोचने लगें कि परिचय कराते हुए खुशी टपकी ही जा रहा है। इन से हमारा रिश्ता कुछ खट्टा कुछ मीठा सा है।अब … Read more

स्वयं सिद्धा – प्रीती सक्सेना

आज भी समर घर नहीं आए,, रात भर आंखे, दरवाजे पर ही लगी रहीं, देख रही हूं,, कुछ दिनों से न बात करते हैं, न ही मेरी तरफ़ देखते ही हैं, जबसे डॉक्टर ने स्पष्ट कर दिया,, मैं मां नहीं बन सकती,, समर बिल्कुल बेजार से हो गए मुझसे,, एक दिन तो साफ कह दिया,, … Read more

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