बालिका – शालिनी दीक्षित

“सुन सो गई क्या?” रामू ने लाली को हिलाते हुए पूछा। प्रसव के बाद बस अभी आँख लगी थी लाली की, लेकिन तभी रामू ने उसे जगा दिया। “क्या हुआ?” लाली ने धीरे से पूछा। अरे पूछ क्या रही हो, जैसे तुम नही जानती क्या हुआ है। यह तीसरी लड़की तुम ने आज पैदा कर … Read more

देखा एक ख्वाब, जो हक़ीकत बन गई – सुषमा यादव

 #ख़्वाब  **** किसी ना किसी का कोई ना कोई ख्वाब जरूर होता है,, जरूरी नहीं कि वो पूरे ही हो जायें,, मैंने भी एक ख्वाब देखा,,बार बार,किराये का मकान बदलना,, कभी मकान मालिक का मकान खाली करने का अनुरोध तो कभी मकान में ही कुछ ना कुछ कमियां,,तंग आ गए थे,,, यहां से वहां भटकते … Read more

“कर्म और भाग्य” – राम मोहन गुप्त

#ख़्वाब  “देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए, दूर तक निग़ाहों में थे गुल खिले हुए” सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं गीत के यह बोल पर हकीकत में स्वप्न का साकार होना, कल्पनाओं का आकार लेना तभी संभव है कि जब किस्मत और कर्म दोनों साथ दें और जब तक ऐसा ना हो तो … Read more

ख्वाब – नीलिमा सिंघल

कोई खुली आँखों से सपने देखता है तो कोई सोते हुए सपने देखता है…….और मैंने शायद दोनों तरह के सपने देखे,,बहुत सपने देखे,,एक के बाद दूसरा,,दूसरे के बाद तीसरा,,,,तीसरे के बाद….बहुत लम्बी लिस्ट है हमारी,,पर कोई भी सपना पूरा नहीं हुआ माँ पापा ने कभी किसी ख्वाब को पर ही नहीं लगने दिए,,,,और ना ही … Read more

कर्म प्रेरित सपना **** – बालेश्वर गुप्ता

   सुनो जी, अब यह सब देखा नही जाता . बच्चों को ठीक से खाना तक भी नही दे पा रहे. इससे अच्छा है कि सब मिल कर जहर खा ले. एक बार में सब दुख खत्म.      तुम क्या समझ रही हो, मै ये सब नही देख रहा. मेरी ही तो जिम्मेदारी हो तुम सब. क्या … Read more

*ऐतबार ज़िन्दगी पर* – सरला मेहता

यश औऱ सुबोध बचपन के दोस्त तो हैं ही, दोनों के परिवार भी अड़ोसी पड़ोसी हैं। लँगोटिया यार व दाँतकाटी रोटी जैसी कहावतें इन पर सौ टके लागू होती हैं। किंतु किस्मत का खेल भी निराला है। सुबोध, वो तो बन गया साला… साहब लंदन का। और यश रह गया बिलासपुर में प्रोफेसर बनकर। वैसे … Read more

आखिरी ख्वाहिश! –  नवल किशोर सोनी

संजू दो भाइयों में अपने घर की सबसे लाडली बहिन थी। पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाइयों ने मिलकर शानदार तरीके से उसको घर से विदा किया था। अब मां की देखभाल की सारी जिम्मेदारी दोनों भाइयों और बहुओं पर आ गई थी। मां ने एक दिन दोनों बेटों को बुलाकर अपनी दिल की … Read more

बेटी – भगवती सक्सेना गौड़

माइक में अपना नाम सुनकर आज कविता विस्मित होकर सबको देखने लगी उसे अपने कानों पर विस्वास नही हो रहा था। तभी पीछे से उसकी बेटी आराध्या ने कहा, ” जाओ मम्मी, बड़ी प्रतीक्षा के बाद ये अनमोल क्षण आपकी झोली में आया है। “ आश्चर्य मिश्रित हर्ष के साथ उसने कला भवन के स्टेज … Read more

बेवा औरत – कंचन श्रीवास्तव

**************** बहुत ढूंढ़ते ढूंढ़ने आज जाके उसे किराए का मकान मिला सच कितना मुश्किल होता है गर अपना घर न हो तो दर व दर की ठोकरें खाते फिरो, हर तीन साल पर मकान बदलते रहो,वो भी दस परसेंट ब्याज के साथ। उसे अच्छे से याद है जब वो  इलाहाबाद आई थी तो पचास रूपए … Read more

*सच हुए सपने मेरे*  – सोनिया मेहता 

#ख़्वाब   एक ज़माना था जब माँएँ बेटों की ही चाह करती थी। एक कुलदीपक ही वंश को तार सकता है। जन्मदात्री का मानो कोई रोल ही नहीं। कौशल्या व देवकी नहीं होती तो राम व कृष्ण कैसे होते ? बालसुलभ रुचियों का, ख़्वाबों का भी एक अनोखा संसार है। नए सपने अजब गजब से, … Read more

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