मंगला जी ने अपने घर को क्यों ओल्ड एज होम में बदलने का फैसला ले लिया था। लाखों की प्रापर्टी थी और बच्चों ने जब उसे बेच कर मां का बंटवारा करने का फैसला लिया था कि मां कुछ महीने यहां रहेंगी और कुछ महीने वहां तो ये बात मंगला जी को हजम नहीं हुई थी क्योंकि उनके पड़ोस में रहने वाली सुशीला जी को जब उनके बच्चों ने साथ रखने का वादा करके उन्हें मानसिक रूप से इतना पीड़ित किया था की वो वहां से वापस आ गई थी और तब मंगला जी ने उन्हें अपने पास बुला लिया था और एक कमरा उनको दे कर पूरी उम्र अपने साथ गुजारने का वादा किया था।
हर घर की तरह पति के चले जाने के बाद औरतों को बेबस होकर अपनी घर गृहस्थी को छोड़कर पलायन होना पड़ जाता है।ये उनकी मजबूरी होती है क्योंकि पूरी उम्र उन्होंने दूसरों के सहारे जिंदगी गुजारी होती है और उनको किसी ना किसी सहारे की जरूरत होती जहां वो अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सकें।कई बार तो बच्चे अपने मां बाप का बहुत अच्छी तरह से ख्याल रखते हैं पर कई बार उनकी बहुत ही बेकद्री कर देते हैं। ऐसा नहीं की हर बेटा – बहू सास ससुर को तकलीफ़ देते हैं,कई बार सास – ससुर भी बेटे – बहू की जिंदगी में जहर घोलते हैं।
यहां तो आम बात ही थी। सुशीला जी की कहानी सुनकर मंगला जी ने निर्णय लिया था कि वो खुद ही आसरा देंगी ऐसी महिलाओं को जो किसी ना किसी तरह से असहाय हैं और वो लग गई थी अपने इस काम में। बच्चों ने बहुत समझाया पर उन्होंने अपने निर्णय को आखिरी निर्णय बताया।
पहले तो सुशीला जी और मंगला जी ही थीं और दोनों सहेलियां अच्छी तरह से वक्त बिताया करतीं थीं क्योंकि इस उम्र में दुख – सुख एक ही जैसे थे। एक दिन दोनों सहेलियां बागीचे में बैठीं गपशप कर रही थी कि उनकी निगाह दूर पेड़ के नीचे बैठी एक बुजुर्ग महिला पर पड़ी जो चोरी – चोरी बड़ी ही चालाकी से अपने आंसू आंचल से पोछ रही थी।
मंगला जी उनके करीब गईं और ऐसे ही गुफ्तगू करने लगी।
उन्होंने उनसे बहुत सहज और सरल तरीके से बातचीत शुरू किया तो थोड़ी देर में वो भी अपने आपको को अच्छा महसूस करने लगी। उनके तकलीफ़ की वजह इस उम्र में अकेलापन था।
अब तीनों दोस्त बन चुके थे। करूणा जी भी इनके ग्रुप में शामिल हो गईं थीं। उनको सिर्फ तकलीफ़ इस बात की थी की उनके परिवार में किसी के पास वक्त नहीं था जो उनके साथ बिताए। सबकी अपनी-अपनी जिंदगी और व्यस्तता थी। बच्चे भी क्या करते सुबह का जो निकलते रात होने तक वापस आते। इतना थक हार जाते की खाना खाया और बिस्तर पर चले जाते। करूणा जी का शायद पूरे दिन में मुंह ही नहीं खुलता किसी से दो अक्षर बात हो जाए।खाने रहने की कोई कमी नहीं थी,कमी थी की कोई तो हाल खबर ले कुछ कहे कुछ सुने। बस ये कारवां बढ़ने लगा और तीनों सहेली मिलकर अपनी – अपनी जिंदगी जीने लगीं थीं।सब मिलकर अब ये योजना बनाने लगी थी कि अपने जैसी महिलाओं के लिए कुछ करना होगा क्योंकि आने वाले समय में भले ही दौलत बेशुमार हो पर किसी को किसी के लिए वक्त तो नहीं होगा और ये बात सही थी।
सरकारी तौर पर उन्होंने अपने घर को ओल्ड एज होम में बदलने का फैसला ले लिया था।कई एनजीओ वाले भी उससे जुड़ गए थे और ओल्ड एज होम की जरूरतों का पूरा – पूरा ख्याल रखा गया था।
उसका नाम ” अपना आशियाना” रखा गया था जहां सुख और दुख दोनों ही सांझा किए जाते थे। सचमुच में आने वाले समय में बुजुर्ग माता-पिता को एक ऐसा ठिकाना तलाशना ना पड़ जाए जहां की उनकी जरूरतों के साथ – साथ उनको वक्त भी दिया जाए जहां वो कुछ कह सकें अपनी तकलीफों के बारे में।
धीरे धीरे वहां महिलाओं के साथ – साथ पुरुष भी आने लगे थे। कुछ लोग को मजबूरन आना पड़ता था तो कुछ लोग को मजबूर कर दिया जाता था। सभी खुश रहने की बहुत कोशिश करते थे लेकिन दिल के किसी कोने में दुखों का सैलाब था और आंखों में अपनों की तलाश।
ईश्वर ना करें किसी को भी ऐसा दिन गुजारना पड़े क्योंकि कम खाओ भले ही लेकिन परिवार साथ होना बहुत जरूरी है। अगर माता-पिता अपनी जिंदगी के साथ हजारों समझौते करके बच्चों को पालने पोसने में कोई कमी नहीं रखते तो बच्चों को भी माता पिता की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी फिर शायद भविष्य में ओल्ड एज होम जैसा कांसेप्ट खत्म होने लगेगा।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी