एक ऐसे परिवार की कहानी जहां पर औरतों को अकेले घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं थी। चाहे वह बेटी हो या बहु। अमरनाथ का परिवार एक ऐसा ही परिवार है।
संयुक्त परिवार होने के कारण घर के सबसे बड़े यानि कि अमरनाथ के पिता सिरोमणी जी का ही आदेश सर्वोपरि होता है। अमरनाथ दो भाई हैं।दूसरे भाई का नाम रघुनाथ है। रघुनाथ अमरनाथ से बड़े है। और उनके एक बेटा और दो बेटियां हैं।
रघुनाथ के तीनों बच्चों का ब्याह हो चुका। अमरनाथ के चार बेटे और एक बेटी। बेटी सबसे छोटी है। अमरनाथ के तीन बेटों का ब्याह तो पहले ही हो गया था।छोटा बेटा हरीश जो कि एक बड़ी कंपनी में मेनेजर है, का ब्याह छह महीने पहले ही हुआ था।
हरीश की बीवी सलौनी भी पढ़ी लिखी थी। वह भी सरकारी शिक्षिका थी।सलौनी जब अपनी ससुराल आई तो उसे यहां का माहौल कुछ अजीब सा लगा। परिवार की महिलाओं पर पाबंदी देख उसका मन क्रोध से भर जाता था। मोहल्ले भर में एक सलौनी ही इतना पढ़ी लिखी थी।
और उस पर शिक्षिका जिसका काम लोगों को शिक्षित करना ।लेकिन ऊपर वाले ने उसे ऐसे माहौल में भेजा जहां ज्यादातर औरतों को अक्षर ज्ञान भी नहीं था । लेकिन वह कुछ बोल भी नहीं सकती थी ।बड़ों के सम्मान की बात थी।
सलौनी गर्मियों की छुट्टी में ससुराल आई थी।सभी उसे मासटराइन कहकर बुलाते थे। वह अपनी ससुराल में औरतों के बीच अंधेरे में रोशनी की किरण की तरह थी। उसकी ननद राखी बहुत चुलबुली थी।बस थोड़ा बहुत अमरनाथ ने उसे घर पर ही अक्षर ज्ञान करा दिया था।
सलौनी को हिंदी इंग्लिश साहित्य पढ़ने का भी बहुत शौक था।जब भी काम से फुर्सत होती तब वह किताबें पढ़ा करती थी। उसकी ननद को यह देखकर उत्सुकता होती थी।एक दिन उसने सलौनी से कहा भाभी मुझे भी सिखाइये न पढ़ना।
तब सलौनी बोली हां-हां क्यों नहीं लेकिन पहले तुम्हें अंग्रेजी पढ़ना सीखना होगा।राखी ने बड़े प्यार से हां में सिर हिलाया।अब जब भी समय मिलता सलौनी राखी को पढ़ाती। यह देख उसकी जेठानियां भी उसके साथ बैठकर कुछ न कुछ सीखने लगी।
अब हर रोज उन सबकी पढ़ाई-लिखाई होने लगी सलौनी को अब बहुत अच्छा लगने लगा।क्योंकि उसके घर की औरतें शिक्षित हो रही थी। ये क्या कर रही हो भाभी ॽ ये कहां की तैयारी हो रही है तुम्हारी ॽ राखी ने सलौनी को अटैची में कपड़े लगाते देख सवाल किया।
सलौनी ने बुझे मन से उसकी तरफ़ देखा। और उसे पकड़कर अपने बगल में बिठाते हुए कहा।मेरी प्यारी सी ननद रानी अब मेरी छुट्टियां खत्म हो गई।कल से मुझे नौकरी पर जाना है। क्या ॽ राखी चौंक कर एकदम से खड़ी हो गई ।
और मां बड़ी भाभी मां सब सुनो कहते हुए बाहर की तरफ भागी।अरे सुन राखी शोर मत करो।कहते हुए सलौनी भी राखी के पीछे-पीछे चली गई।अब तक उसकी जेठानियां व सासू मां भी अपने-अपने कमरे से बाहर आ गई थी। क्या हुआ राखी? सबने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा!
मां देखो ना भाभी कल चली जाएगी। राखी रोते-रोते मां से लिपट गई। अरे पगली तुम्हारी भाभी नौकरी करती है। इसलिए उसे तो जाना ही पड़ेगा।राखी ने सलौनी की तरफ़ देखते हुए कहा। भाभी आप गांव में ही क्यों नहीं पढ़ाती।
यहां पर तो किसी को कुछ पढ़ना-लिखना नहीं आता लड़कियों के लिए तो स्कूल भी नहीं है। लड़कों को तो कुछ लोग बाहर भेज कर पढ़ा लेते हैं।देखो राखी तुम्हारा कहना ठीक है।पर वहां जाकर पढ़ाने के पैसे देती है सरकार हमें।
लो देखो तुम्हारे भईया भी आ गए। मुझे लेने के लिए। मैं कपड़े लगाती हूं। इतना कहकर सलौनी अपने कमरे में चली गई। सुबह होते ही उसने सबसे विदा ली। और जाकर गाड़ी में बैठ गई। सलौनी नौकरी पर जा तो रही थी।पर इस बार उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था ।
बार-बार राखी की कही हुई बात उसे याद आ रही थी।वह भी सोचने लगी उसे अपने गांव की औरतों को शिक्षित करना होगा।
एक दो महीने नौकरी करने के बाद उसने अपने पति से अपने मन की बात को कहा। हरीश ने कहा गांव का माहौल है सलौनी लोग क्या कहेंगे।वे अपने घर की बहु-बेटियों को घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं देंगे। कुछ तो लोग कहेंगे, क्योंकि उनका तो काम ही है कहना।
बस तुम साथ दो तो सब सम्भव हो जाएगा। हरीश कुछ सोचता है फिर ठीक है कहकर मुस्कुराता है। सलौनी का तो दिल गदगद हो गया मानो उसके मन की कोई मुराद ऊपरवाले ने पूरी कर दी हो।हां लेकिन अभी तुम नौकरी छोड़ने के बारे में मत सोचना।
अभी बहुत संघर्ष करना होगा।कई मुसीबतों को झेलना होगा। हरीश ने सलौनी का हाथ पकड़ते हुए कहा। हां हां बाबा जानतीं हूं। सलौनी भी गहरी सांस लेकर बोली।
सलौनी ने अब तीन माह का अवकाश लिया और गांव के लिए चल दी। सलौनी को अकेला देख सबने आश्चर्य से देखा। अरे आप लोग ऐसे क्यों देख रहे हो मेरा मन हुआ आने का इसलिए अकेली ही आ गई वो भी दो-तीन महीने के लिए। सबकों समझ नहीं आ रहा था।
पर उसे देख सब बहुत खुश थे। सलौनी सोच रही थी कि कैसे महिलाओं को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया जाए।तभी बाहर से डाक-बाबू की आवाज सुनाई दी वह पड़ोस के चाचा शेर सिंह को आवाज लगा रहे थे।
फिर उसे चाचा की आवाज सुनाई दी वह कह रहे थे कि डाक-बाबू आप ही पढ दो चिट्ठी। हमारे घर में तो कोई पढ़ा-लिखा नहीं है।यह सुनकर सलौनी ने तुरंत राखी से कहा राखी मेरा एक काम कर दे। क्या भाभी?राखी पास आकर बोली। तुम बाहर जाकर चाचा का पत्र उन्हें जोर जोर से पढ़कर सुना
आओ। राखी ने वैसा ही किया।वह बाहर जाकर झट से डाक-बाबू के हाथ से चिट्ठी छीनकर कहती हैं लाओ मैं पढ़ती हूं। डाक-बाबू, चाचा व अन्य लोग जो वहां खड़े थे उसे अचरज भरी निगाहों से देखने लगे।राखी ने पूरी चिट्ठी पढ़ने के बाद चाचा के हाथ में थमाते हुए कहा ये लो चाचा अपनी चिट्ठी।पर!
सभी कहने लगे तुमने इतने अच्छे से पढ़ना कैसे सीखा यहां तो कोई बहु-बेटी नहीं पढ़ पाती है।राखी ने अपने दोनों हाथों को कमर पर रखकर सिर ऊंचा करके कहा।मेरी सलौनी भाभी से।वो मासटराइन है ना ।बहुत पढ़ी लिखी है।
अंग्रेजी भी आती है उन्हें और अब मुझे भी। अच्छा! सभी विस्मय से बोले आप भी अपनी बहु-बेटियों को पढ़ना-लिखना सिखाओ। सलौनी भाभी सबको पढ़ाएंगी वो भी बिना पैसे के।बात तो बिटिया ने सही कही चाचा बोले फिर
सब अपने अपने घरों के अंदर चले गए।राखी के इस कार्य से सलौनी को उम्मीद की किरण नज़र आई। परिवार बालों को जब पता चला तो उन्हें भी बहुत गर्व महसूस हुआ। उन्होंने ने तो राखी को पढ़ने के लिए कहीं नहीं भेजा।
किन्तु अब उसके हाथों में हिंदी और अंग्रेजी की किताबें देखकर बहुत खुश हुए राखी अब अपनी पढ़ाई के साथ साथ पड़ोस की बहु-बेटियों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती और हर शाम जब सारी महिलाएं फुर्सत में होती तो राखी के घर में कक्षा चलती इस तरह कुछ महिलाएं एवं लड़कियों ने पढ़ना -लिखना सीखा।
लेकिन सलौनी का मकसद कुछ महिलाओं को ही शिक्षित करना नहीं था।उसे तो गांव की सारी बहु-बेटियों को शिक्षित करना था। मुश्किल तो बहुत थी पर उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपने ससुर से कहा। पापाजी अगर गांव में एक स्कूल महिलाओं के लिए खुल जाएं। तो अच्छा होगा।
यहां घर में सभी महिलाएं नहीं आ पाती आप से मेरा विनम्र निवेदन है आप इस कार्य में मेरा सहयोग कीजिए। पहले तो ससुर ने बहुत बातें सुनाई कहने लगे हमारे गांव में बहु-बेटियों को बाहर जाने की इजाजत नहीं है।गांव वाले कैसी-कैसी बातें करते हैं।
इतनी पढ़ी-लिखी बहु लाए कि सारी औरतों को गांव में घुमाने लगी। नहीं नहीं यह नहीं हो सकता। तुम वापस अपनी नौकरी पर जाओ सलौनी खामोशी से अंदर चली गई।उसके पीछे-पीछे राखी व उसकी जेठानियां भी थी।शोर सुनकर सासू मां भी आ गई थी।
सबने उसे दिलासा दिया उदास मत हो मां जी पापाजी को मनाने की कोशिश करेगी है न मां जी ।मां जी ने भी हां में सिर हिलाया और आश्वासन दिया।
तूं जो कर रही है ना बेटा उससे सारे गांव की औरतों का भला होगा अंधविश्वास दूर होगा। राखी बोली हम सब मिलकर इस कार्य को आगे बढ़ाएंगे तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो।
एक महीना निकल गया था। वह सोच रही थी अगर जरूरत हुई तो मै नौकरी छोड़ दूंगी पर अब पीछे नहीं हटूंगी ।
लेकिन अब वह कुछ उदास रहने लगी थी। हालांकि अब उसकी कक्षाएं दिन में शुरू हो गई थी।उसे उदास देख घर के सदस्यों को भी अच्छा नहीं लग रहा था। अगले महीने सलौनी का जन्मदिन था। सबने घर के बड़े सिरोमणी जी यानि की बाबा को मनाने का प्लान बनाया।
बाबा को मनाना मुश्किल था लेकिन वह भी सलौनी के इस कार्य से खुश थे। इसलिए उन्होंने ने हां कर दी।उसके बाद पापाजी को तो मानना ही था। क्योंकि उनके पिता का आदेश था। सबने यह निर्णय लिया कि सलौनी को अभी नहीं बताना।
अगले महीने तक स्कूल को बनाकर तैयार करना। फिर सलौनी के जन्मदिन पर उसे उपहार के तौर पर देना।बाकी की कार्यवाही मासटराइन खुद करेंगी। सभी ठहाका लगाकर हंसने लगे घर में सभी खुश नज़र आते बस सलौनी ही कुछ उदास थी।
राखी कभी-कभी उसे यह कहकर छेड़ देती क्यों भाभी भाई की याद तो नहीं आ रही। सलौनी तब जाकर थोड़ा मुस्कुराती। आज सभी बहुत खुश थे क्योंकि आज सलौनी का जन्मदिन था उसके पति भी गांव आ गए थे।
सलौनी से राखी ने भाभी की आंखों पर पट्टी बांधी और
भाई के साथ गाड़ी में बिठाकर उस स्थान पर लाई जो उसका सपना था। नवनिर्मित स्कूल में गांव के कुछ लोग व परिवार के सभी लोग उपस्थित थे। अच्छी-खासी सजावट थी मिठाई व केक का भी इंतजाम उसके पति ने किया था। सलौनी बार-बार सवाल किए जा रही थी
अरे ये आप मुझे कहा लिए जा रहे हो। बस थोड़ा इंतजार करो भाभी राखी बीच में ही कह देती। वहां पहुंच कर सलौनी की आंखों की पट्टी को खोला गया। सलौनी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था।कि उसका सपना पूरा हो गया है।
विद्यालय का आदर्श कन्या विद्यालय पढ़कर उसकी आंखें झलक आई।तभी वहां उपस्थित सभी ने उसे जन्मदिन की बधाई देना शुरू कर दिया।आज का दिन उसके लिए खास था। उसने परिवार के सभी बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया उसके बाबा व ससुर जी ने कहा बेटा तुम्हारे इस कार्य से हमारे गांव का भला होगा इससे पहले इस कार्य के लिए किसी ने पहल नहीं की।
तुम्हारा विश्वास व हिम्मत तारीफ के काबिल है।ये लो इस स्कूल की चाबी अब आगे की कार्यवाही तुम्हें करना होगा।
सलौनी बहुत खुश थी। उसने सबसे पहले मान्यता ली और कुछ अध्यापिकाओं की व्यवस्था की। कुछ साल बाद उसने अपनी नौकरी छोड़ दी । और सारा जीवन गांव के स्कूल को समर्पित कर दिया।आज हर घर में बहु-बेटियां पढ़ी-लिखी थी।अब उसके गांव में चाचा डाक-बाबू से चिट्ठी नहीं पढ़वाते थे उसने शिक्षा की एक ऐसी ज्योति जलाई जिससे सारा गांव जगमगा रहा था।
निमिषा गोस्वामी
कालपी जिला जालौन उत्तर प्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित